सम्पादकीय

ताक पर सेहत

Subhi
10 Dec 2021 2:07 AM GMT
ताक पर सेहत
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दिल्ली के अस्पतालों में रेजिडेंट डाक्टरों की हड़ताल का दायरा फैलता जा रहा है। ऐसी स्थिति में यह समझना मुश्किल नहीं है कि जरूरतमंद मरीजों के सामने कैसी त्रासदी खड़ी हो चुकी है।

दिल्ली के अस्पतालों में रेजिडेंट डाक्टरों की हड़ताल का दायरा फैलता जा रहा है। ऐसी स्थिति में यह समझना मुश्किल नहीं है कि जरूरतमंद मरीजों के सामने कैसी त्रासदी खड़ी हो चुकी है। सब कुछ सरकार की निगाह में है, इसके बावजूद डाक्टरों की हड़ताल न केवल पिछले कई दिनों से चल रही है, बल्कि अब उसमें कई अन्य अस्पतालों के डाक्टर भी शामिल हो गए हैं। मुश्किल यह है कि राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा, स्नातकोत्तर या नीट पीजी काउंसलिंग, 2021 में आरक्षण से संबंधित सरकार के एक फैसले के बाद हो रही देरी के जिस मुद्दे पर डाक्टरों ने हड़ताल शुरू की है, वह अभी अदालत में विचाराधीन है।सरकार मामले के अदालत में होने का हवाला दे रही है, तो डाक्टर काउंसलिंग जल्दी कराने की मांग कर रहे हैं, ताकि हजारों नए डाक्टर अस्पताल आना शुरू कर सकें। इस देरी की वजह से मौजूदा समय में अस्पतालों में काम कर रहे डाक्टरों पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। इस तरह एक ओर अतिरिक्त दबाव से उपजी परेशानी की वजह से डाक्टर हड़ताल पर हैं, तो दूसरी ओर अस्पतालों में पहुंचने वाले मरीजों को जरूरी इलाज नहीं मिल पा रहा है।

जिस वक्त स्वास्थ्य सेवाओं के मोर्चे पर सबसे ज्यादा चौकस रहने की जरूरत है, हड़ताल पर जाने वाले डाक्टरों के साथ-साथ सरकार के उदासीन रुख को कैसे देखा जाए! इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि कोरोना में अस्पताल के दरवाजे पर किसी भी वक्त मौत से लड़ता कोई मरीज पहुंच सकता है, लेकिन संभव है कि उसे जरूरी इलाज न मिल पाए। हड़ताल के बढ़ते दायरे के बीच ऐसी खबरें भी आ चुकी हैं, कि किसी मरीज को देखने के लिए डाक्टर उपलब्ध नहीं हैं, तो किसी की मौत सिर्फ इसलिए हो गई कि उसे समय पर इलाज नहीं मिल सका।
सवाल है कि सब कुछ सरकारों के संज्ञान में होने के बावजूद ऐसी नौबत क्यों आ गई! पिछले करीब दो साल से महामारी और इलाज के लिहाज से देश एक बेहद संवेदनशील दौर से गुजर रहा है और उसमें चिकित्सा से जुड़े सभी डाक्टरों और कर्मचारियों की ड्यूटी एक तरह से आपात सेवाओं के तहत ही चल रही है।
यह समझना मुश्किल है कि हड़ताल खत्म करने की कोशिशों के बजाय सरकार ऐसे कामों या अन्य मोर्चों पर व्यस्त है, जिनकी प्राथमिकता स्वास्थ्य सेवाओं के बाद होनी चाहिए। हड़ताल पर गए डाक्टरों को भी अपने रुख पर विचार करना चाहिए कि जो मामला सुप्रीम कोर्ट के जरिए हल हो सकता है, उसे लेकर यह तकरार कितना जरूरी है। विचित्र है कि दिल्ली सरकार की ओर से औपचारिक चिंता जाहिर करने के अलावा कोई ऐसी पहलकदमी नहीं हुई है, जिससे लगे कि वह डाक्टरों को ड्यूटी पर आने के लिए कोई ठोस प्रस्ताव सामने रख रही है।
जिस समय चिकित्सा सेवाएं समूचे देश की जरूरत और फिक्र के केंद्र में हैं, उसमें डाक्टरों की हड़ताल और उसे लेकर सरकार की उदासीनता या टालमटोल का रवैया हैरान करने वाला है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि महामारी का जोर फिलहाल कम जरूर दिख रहा है, लेकिन अब भी यह अपने जटिल स्वरूप में है। इसके अलावा, ओमीक्रान बहुरूप से लेकर तीसरी लहर की आशंका सिर पर मंडरा रही है। ऐसे में सरकार और हड़ताली डाक्टरों को हर हाल में कोई बीच का रास्ता निकालना चाहिए, ताकि पिछले त्रासद अनुभव न दोहराए जा सकें।

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