सम्पादकीय

सेहत का मसला

Rani Sahu
21 Feb 2022 7:02 PM GMT
सेहत का मसला
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हिमाचल अपने मुख्यमंत्री को बीमार नहीं देखना चाहता, लेकिन अपनी चिकित्सा व्यवस्था को इतना लाचार भी नहीं देखना चाहता कि सेहत के सारे आदर्श किसी संस्थान में प्रवेश करते ही ढह जाएं

हिमाचल अपने मुख्यमंत्री को बीमार नहीं देखना चाहता, लेकिन अपनी चिकित्सा व्यवस्था को इतना लाचार भी नहीं देखना चाहता कि सेहत के सारे आदर्श किसी संस्थान में प्रवेश करते ही ढह जाएं। प्रसन्नता की बात है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अब स्वस्थ हैं और शीघ्र ही एम्स से वापस लौट आएंगे। यहां उनकी सेहत का मसला प्रदेश के हाल-चाल भी पूछता रहा और उन सभी बीमारों की तहकीकात भी करता रहा, जो इस समय प्रदेश के सेहत महकमा की तीमारदारी में हैं। मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य बुलेटिन हर हिमाचली की चिंता के विषय हो जाते हैं और जब यह पता चलता है कि आईजीएमसी उन्हें यह सलाह दे रहा होता है कि दिल्ली एम्स ज्यादा बेहतर रहेगा, तो विश्वसनीयता के सारा इतिहास विभ्रम में पड़ जाता है। हर हिमाचली को यह सोचने व शंका करने का अधिकार मिल जाता है कि वह तमाम मेडिकल कालेजों और डंके की चोट पर खड़े बिलासपुर के एम्स से पूछ सके कि स्वास्थ्य विभाग की खड़ाऊं अकसर पीजीआई चंडीगढ़ व दिल्ली के एम्स के बाहर क्यों पहुंच जाता है। इसी तरह अतीत में बतौर मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल व स्व. वीरभद्र सिंह को भी प्रदेश के बाहर जाना पड़ा था।

पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने टांडा मेडिकल कालेज पर भरोसा करके अपनी पत्नी की जान गंवाई है और वह तब भाग्यशाली रहे जब उन्होंने खुद को चंडीगढ़ के निजी अस्पताल में शरण ली। आश्चर्य यह कि हिमाचल की स्वास्थ्य सेवाओं के कटु अनुभव के कारण एक हिमाचल रोज या तो अर्थी पर निकलता है या किसी एंबुलेंस पर बाहरी प्रदेश की चिकित्सा संबंधी शरण तलाश करता है। क्या हम मजबूरियों के मुजरिम बन कर अपने चिकित्सा संस्थानों की गुणवत्ता बढ़ा पाएंगे या यह लक्ष्य तय करेंगे कि कोई वीआईपी बन कर प्रदेश के अस्पतालों को कमतर न आंक सके। यह मेडिकल व्यवसाय के मनोबल का प्रश्न भी है कि मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य का बुलेटिन दिल्ली से आ रहा है। ऐसे में क्या मेडिकल यूनिवर्सिटी बना कर राज्य को कोई तमगा मिल गया या आठ मेडिकल कालेज व एम्स की शुरुआत करके हम धन्य हो गए। प्रदेश के चिकित्सा विभाग के लिए कोरोना काल खुद में झांकने का सबब बना, लेकिन क्या इस अनुभव पर कोई गंभीर चिंतन हुआ। कोरोना काल में हर मरीज एक मेडिकल हिस्ट्री रहा है। बहुत सारे कोरोना पीडि़त बच सकते थे अगर केस हिस्ट्री से निजात पाने की चौकसी बरती जाती। सरकार चाहे तो एक सर्वेक्षण करके देख ले कि कोरोना इमरजेंसी के दौरान मरीज क्यों असहाय व व्यवस्था के कसूरवार हो गए। जिन्होंने अपने खोए उनकी यादें हिमाचल के मेडिकल संस्थानों से चस्पा हैं और जिनकी प्रशंसा बाहरी राज्यों के या निजी अस्पतालों को श्रेय दे रही है। ऐसे में क्या अब यह वजह भी ढूंढी जाएगी कि क्यों मुख्यमंत्री की सेहत जांचने में प्रदेश का प्रीमियर अस्पताल हाथ खडे़ कर देता है। माननीय स्वास्थ्य मंत्री थोड़े समय के लिए अपना विधानसभा क्षेत्र छोड़कर सारे प्रदेश की परिक्रमा करके जांचंे कि बडे़-बड़े मेडिकल कालेजों की तख्तियों के पीछे असली दर्द क्या है।
यह विषय मेडिकल मर्यादा और उस वरिष्ठता सूची का भी है, जो अपने वित्तीय अधिकारों की बात तो करती है, लेकिन वचनबद्धता से यह साबित नही कर पाती कि एक दिन पड़ोसी राज्यों के मरीज हिमाचल आकर इलाज कराएंगे। मेडिकल कालेजों की बढ़ती संख्या ने दो काम कर दिए हंै। एक यह कि सर्वप्रथम आईजीएमसी के डाक्टरों को टीएमसी में आने का धन और पद लाभ हुआ। इसके बाद यही डाक्टर चंबा, हमीरपुर, एम्स व नेरचौक घूमते हुए अब बिलासपुर एम्स की विरासत में इमारतें बना रहे हैं। मेडिकल कालेजों ने जिला, क्षेत्रीय व जोनल अस्पतालों का सामर्थ्य भी छीन कर बर्बाद कर दिया है। यह दीगर हैं कि मेडिकल कालेजों के निजी अस्पतालों से नए रिश्ते बन और बंध रहे हंै। टीएमसी की बदौलत कांगड़ा शहर अपने आप में हिमाचल की पहली मेडिकल सिटी बन गया, क्यांेकि इसके दायरे में फोर्टिस सहित कई नामी अस्पताल शुरू हो गए। कल इसी प्रारूप में अन्य मेडिकल कालेज भी नए निजी अस्पतालों की विश्वसनीयता बढ़ा सकते हैं। कहां तो हम यह कहते हैं और जो संभव है कि हिमाचल एक दिन देश की सबसे बड़ी हैल्थ टूरिज्म की जगह स्थापित करेगा और कहां यह हालात है कि हर हिमाचली अपनी जान बचाने के लिए प्रदेश के बाहर का रुख करता है। ऐसे में यह चर्चा और चिंता का विषय है कि यह सोचा जाए कि क्यों हम अपने मुख्यमंत्रियों के इलाज के लिए भी काबिल नहीं हुए।

क्रडिट बाय दिव्याहिमाचल

Rani Sahu

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