सम्पादकीय

हैडलाइन चोरी हो गई

Rani Sahu
13 March 2022 7:01 PM GMT
हैडलाइन चोरी हो गई
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अचानक देश के सबसे बड़े अखबार के दफ्तर में अलार्म बज गया

अचानक देश के सबसे बड़े अखबार के दफ्तर में अलार्म बज गया। पता चला कि अखबार की सबसे महत्त्वपूर्ण हैडलाइन चोरी हो गई है। अखबार के दफ्तर से हैडलाइन चोरी होना उतना ही बड़ा मुद्दा था जितना सरकार के प्रोपेगंडा का चुनाव में खो जाना। संपादक भी बेचैन हुए, हालांकि आजकल उन्हें अपनी सुर्खियों की ही चिंता ज्यादा रहती है। फिर भी वह घबराए क्योंकि आजकल सुर्खी ही रेवेन्यू जनरेट करती है। चिंता हुई, 'कहीं मुख्यमंत्री की सुर्खी ही तो चोरी न हो गई हो।' वह सोच ही रहे थे कि फोन आने शुरू हो गए। बाहर सोशल मीडिया ने यह बात फैला दी थी कि अमुक राष्ट्रवादी अखबार से हैडलाइन चोरी हो गई है। सरकार के सूचना विभाग के प्रभारी ने विज्ञापन का हवाला देते हुए संपादक से धमकी के स्वर में पूछा, 'अगर मुख्यमंत्री की हैडलाइन खोने लगेगी, तो हम आपका बजट छोटी अखबारों में बांट देंगे।' सफाई देने से पहले ही फोन कट चुका था, लेकिन अब लाइन पर कर्मचारी नेता था, 'क्या मेरी हैडलाइन चोरी हुई है।' फिर नेताओं के फोन भी आने लगे। हर कोई जानना चाहता था कि कहीं उसकी सुर्खी ही तो चोरी न हुई हो।

हालांकि जब उन्हें इत्मीनान हो रहा था, तो वे यह पूछने से गुरेज नहीं कर रहे थे कि क्या उनके किसी प्रतिद्वंद्वी की हैडलाइन गायब हुई है। यह इच्छा स्वाभाविक है और हर नेता चाहता है कि विरोधी की हैडलाइन का या तो बीच बाजार में वस्त्रहरण हो जाए या उसे कोई सदा-सदा के लिए चुरा ले जाए। वैसे समाचार संपादक को मुख्य संपादक की हिदायत थी कि सारा दिन हैडलाइन की गिनती करके रखे। इस काम में विज्ञापन व प्रसार विभाग भी मदद करते हैं। दरअसल सारी अहम सुर्खियां अब विज्ञापन और सर्कुलेशन के हिसाब से ही बनती हैं, इसलिए छानबीन में यह पता लगाया गया कि कहीं कोई कमाई की सुर्खी ही तो चोरी न हो गई हो। ऐसा नहीं हुआ था, बल्कि अगले कुछ दिनों की सुर्खियां भी तय थीं और ये सुरक्षित थीं। संपादक ने राजनीतिक संपादक से पूछा कि कहीं उसकी कोई सुर्खी तो चोरी नहीं हुई। राजनीतिक संपादक ने जवाब दिया, 'जनाब! संसद में तो सिर्फ सत्ता की ही चलती है, तो इस सुर्खी को चुराने से किसी को क्या मिलेगा। विपक्ष के काम को देखते हुए हैडलाइन की जरूरत ही नहीं बची है।
आप निश्चिंत रहें, इसकी चोरी तो यकीनन नहीं हुई, लेकिन हैडलाइन चोरी की भरपाई में हम दर्जनों नई फड़फड़ाती सुर्खियां बना देंगे।' अब संपादक सिर खुजला रहे थे कि आखिर उनकी अखबार में ऐसा कौनसा वर्ग बचा है, जिसकी औकात में कोई हैडलाइन ऐसी रही होगी, जिसे कोई सरेआम चुरा कर ले गया। अंततः समाचार संपादक से पूछा गया कि कहीं उसने ही तो भूलवश किसी सही खबर को अंटी में छुपा लिया है। वह आदर्श भाव में किसी सुर्खी की तरह बोला, 'यह सही है कि मुझे हर दिन कुछ खबरें छुपानी पड़ती हैं, लेकिन ये वही खबरें हैं जिनका हिसाब प्रबंधन के पास पहले से ही होता है। हां, पहले 'अच्छे दिन आएंगे' जैसी सुर्खी को बचा-बचा कर लगाते थे, लेकिन अब तो इसे देखते ही पाठक नजरें चुरा लेते हैं। अब तो धार्मिक विद्वेष की खबरों को चुराने वाले भी नहीं बचे।' संपादक अब तक सत्तारूढ़ दल की तरह से हैडलाइन चुराने की घटना को विपक्ष मानकर देखने लगा था। उसे लगा कि कहीं कोई विपक्ष समर्थक समाचार कक्ष में तो नहीं पहुंच गया या कांग्रेस के जी-23 की तरह कोई हमारा खेल तो खराब नहीं कर रहा। उसे संदेह हुआ कि कोई साहित्य चोर ही तो बिकने वाली रचना समझ कर ही, तो उड़ा कर न ले गया। अंततः खबर संस्थान के मालिक तक पहुंची तो वह भी पहुंच गए। आखिर धंधे की बात थी, जहां एक-एक हैडलाइन अब तो लाखों की हो सकती है। अब तक संपादक को विश्वास हो चुका था कि पहले की तरह मालिक ही हैडलाइन का चोर होगा। मालिक मुस्कराया, 'मूर्खो, आपके द्वारा की गई हैडलाइन की गिनती गलत है। जिस सुर्खी के खोने का हड़कंप आपने मचाया है, उसकी अनुमति तो अभी सरकारी कार्यालय से आई ही नहीं है। दरअसल सरकार का दफ्तर यह फैसला नहीं कर पा रहा है कि देश इस वक्त किस मोर्चे पर आगे बढ़ रहा है। इंतजार करो, हैडलाइन बन-संवर कर आ रही है।'
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक


Rani Sahu

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