सम्पादकीय

हवाला, हालात और हवालात

Gulabi
22 Sep 2021 5:36 AM GMT
हवाला, हालात और हवालात
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हिमाचल की खिड़कियां अब सूर्योदय के साथ सूर्यास्त भी देखती हैं

दिव्याहिमाचल.

हिमाचल की खिड़कियां अब सूर्योदय के साथ सूर्यास्त भी देखती हैं, इसलिए तस्वीरों के शीशे टूट रहे हैं। मंडी पुल के नीचे दो नवजात बच्चियां तड़प-तड़प कर जान दे देती हैं। मां शब्द का उच्चारण जिनके तालू पे अटका होगा या जिनके ओंठों की नन्हीं मुस्कराहट को मां ने समझा होगा, वे हालात दुश्मन हैं या ये हालात अब समाज को ही हवालात तक ले जाएंगे। तर्कों की शेखियों में जो समाज अपने आईने तोड़ता रहा हो, वहां सरेआम पुल के नीचे अपनी ही औलाद की अर्थी सजाती मां की घिनौनी तस्वीर को कौन तोड़ेगा। हर दिन के अपराध की चित्रकथा में, समाज का खोखलापन बारूद बन कर जलता है और इस तरह हिमाचल के वजूद से 'भोलेपन' का बहाना भी गायब हो जाता है। बैजनाथ के एक स्कूल का मुख्याध्यापक अपने काम के दबाव में खुदकुशी कर लेता है, तो प्रश्नों के चबूतरे पर अकालग्रस्त विभाग की छवि को अपराधी माना जाए या हम खुश हैं कि वहां मरने वाला कोई अपना नहीं था। हम खुश हैं कि तकीपुर कालेज में विज्ञान की कक्षाएं शुरू हो गईं या गांव तक बिना सवारियों के भी बस चल पड़ी। रोजाना खबरों की सुर्खियां हिमाचल के कान खींचती हैं, लेकिन हमने राजनीतिक अखाड़ों की संगत में सामुदायिक संवेदना की आवाज ही सुनना बंद कर दी। सोशल मीडिया के जरिए बढ़ता अपराध हमारे रिश्तों को तार-तार करने लगा है या जीवन भर की कमाई को झाड़ने लगा है। शिमला में दो बच्चों की मां की फेसबुक के माध्यम से हुई दोस्ती अगर बीच चौराहे में लुट जाती है, तो प्रगतिशीलता के द्वंद्व में परिवारों की हैसियत कितनी बचेगी। हर दिन रिश्तेदारी के आंगन में किसी नन्हें से फूल के खिलाफ शारीरिक और मानसिक अत्याचार की डोरी पहन कर हिमाचल केवल अपने अपराध जगत को बढ़ा रहा है। जब घर की दीवारें भी अपराध में संलिप्त हो जाएं, तो प्रदेश की अमानत में कितना भोलापन बचेगा। खुदा के लिए हिमाचल को अब भोलेपन के तख्त पर मत देखिए। सोलन के पहाड़ों से पूछना कि जब उनकी आत्मा चीर कर इमारतों के खंजर उगाए थे, तो क्या हिमाचल भोला था।
ऊना, सिरमौर, कांगड़ा व हर जिला की खड्डों व नदियों से पूछना कि हर दिन अवैध खनन करने वाले कितने भोले हैं। हर दिन बीबीएन की फैक्ट्रियों में बनती दवाइयों से जब कोई घटिया निकलती है, तो क्या हमारा औद्योगीकरण भोला नजर आता है। आश्चर्य तो यह है कि राज्य के खजाने को अधिक से अधिक शराब बेच कर चलाना पड़ता है और इसलिए हमने तो कोविड काल में भी लाखों-करोड़ों पैग डकार लिए। हम इतने भोले हैं कि भोले की चिल्म यहीं भरी जाती है। मलाणा क्रीम का जनक किस भोलेपन से हुआ, हमें सोचने की फुर्सत नहीं। आश्चर्य यह कि मरने पर भी हिमाचल ने अपना भोलापन खो दिया। बड़सर की पंचायत सेठवीं में श्मशानघाट के कंधे अब अर्थी उठाने से मना करते हैं। एक सेवानिवृत्त अधिकारी अपनी मिलकीयत की पैमाइश में इतना आगे बढ़ जाता है कि वहां लाश को जलाने की परंपरा गिड़गिड़ाने को मजबूर हो जाती है। हम कैसा समाज बन गए कि हमारी आंखों के सामने बच्चियों के रेप की घटनाएं घूरती हैं और इसी श्रृंखला में खुद मां ही अगर अपने दूध में जहर घोल कर बच्चों को जन्म देने लगे, तो मंडी का निर्जीव पुल भी कहीं रोता होगा। हम हिमाचली काबिल हो गए। हम रिश्वत देकर किसी भी सरकारी प्रक्रिया खरीद सकते हैं, लेकिन यह नहीं सोचते कि रिश्वतखोरी के मामले में जब कोई पकड़ा जाता है, तो हमारे हाथ भी अपराध से सने होते हैं। कभी कुल्लू के अपराध की पोटली खुलती है, तो किसी युवा के हाथ पर दो ढाई किलो चरस के सौदे में हम सब बिक जाते हैं। नशा हमारी गलियों तक आ पहुंचा है। अतः हम अपराध तंत्र को नजरअंदाज करके भोले नहीं हो सकते।
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