सम्पादकीय

भारत के पास S-400 मिसाइलें होना अमेरिका के लिए भी रहेगा फायदेमंद!

Gulabi
28 Oct 2021 6:07 AM GMT
भारत के पास S-400 मिसाइलें होना अमेरिका के लिए भी रहेगा फायदेमंद!
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भारत के पास S-400 मिसाइलें

विष्णु शंकर.

अमेरिका के दो सीनियर सीनेटर्स ने राष्ट्रपति जो बाइडेन से कहा है कि है कि वह भारत के खिलाफ CAATSA यानि Countering America's Adversaries Through Sanctions Act लगाने से बचें. अमेरिका और भारत में आपस की बातचीत में लगातार यह मुद्दा उठता रहा है कि अगर भारत रूस से S-400 मिसाइलें खरीदता है, तुर्की की तरह उस पर भी प्रतिबन्ध लगाए जाने का ख़तरा है. ये दोनों अमेरिकी सीनेटर्स मार्क वॉर्नर और जॉन कोर्निन, जो अमेरिकी संसद के इंडिया कॉकस के संयुक्त प्रधान भी हैं, दोनों ने पत्र लिख कर कहा है कि भारत को CAATSA प्रतिबन्ध के दायरे से बाहर रखा जाए.


भारत ने रूस के साथ S-400 मिसाइलों की 5 रेजिमेंट ख़रीदने का 5.43 अरब डॉलर का सौदा अक्टूबर 2019 में किया था, क्योंकि भारत की भौगोलिक स्थिति में दुश्मनों से निपटने के लिए इसे ज़रूरी माना गया. भारत को इन मिसाइलों की सप्लाई इसी साल यानि 2021 के अंत तक शुरू हो जाने की आशा है. दोनों अमेरिकी सांसदों का कहना है कि वे मिसाइलों की इस खरीद को लेकर अमेरिकी प्रशासन की चिंता से वाक़िफ़ हैं, लेकिन नोट करने वाली बात यह है कि भारत और रूस के बीच ऐसे सौदे अब कम होते जा रहे हैं.

भारत के लिए इतनी ज़रूरी क्यों हैं S-400 मिसाइलें
अब आपको यह भी बता देते हैं कि S-400 मिसाइलें भारत के लिए इतनी ज़रूरी क्यों हैं. S-400 मिसाइलें ज़मीन से हवा में निशाना लगा कर प्रतिद्वंद्वी का शिकार करती हैं. इन्हें विशालकाय ट्रकों पर जगह-जगह तैनात किया जाता है और एक जगह से दूसरी जगह आसानी से ले जाया जा सकता है.

S-400 मिसाइलें जंगी जहाज़, ड्रोन और अन्य UAV, क्रूज़ मिसाइलों और बैलिस्टिक मिसाइलों से सीमाओं की रक्षा करती हैं. ये रूस द्वारा निर्मित S-200 मिसाइलों और S-300 मिसाइलों का चौथा और ज़्यादा मारक वर्जन है. SIPRI यानि Stockholm International Peace Research Institute के अनुसार सभी उपलब्ध Air Defence Systems में यह अभी दुनिया में सबसे बेहतर वायु प्रतिरक्षा प्रणालियों में से एक है.

चीन से बेहतर भारत को मिलेंगी S-400 मिसाइलें
उपलब्ध जानकारी के अनुसार S-400 मिसाइलों की 20 बटालियन रूस ने साल 2015 तक अपनी सीमाओं पर तैनात कर दी थीं और अंततः उसका इरादा S-400 की 56 बटालियन तैनात करने का है. साल 2019 में रूस ने चीन को S-400 मिसाइलों की 2 रेजिमेंट सप्लाई कीं. इसी साल रूस ने तुर्की को भी S-400 की पहली खेप मुहैया कराई. अब यह देखते हैं कि चीन और भारत को रूस द्वारा सप्लाई की जा रही S-400 मिसाइलों में कोई फ़र्क़ है क्या? चीन के पास S-400 मिसाइलों की जो रेजिमेंट हैं वह एक समय में 144 मिसाइलें फायर कर सकती हैं.

लेकिन MTCR यानि Missile Technology Control Regime के अनुसार इस संधि का सदस्य किसी ऐसे देश को यह ऐसी कोई मिसाइल नहीं बेच सकता जो MTCR का सदस्य न हो. ऐसे देश को बेची जाने वाली मिसाइल की रेंज भी 300 किलोमीटर से कम होनी चाहिए. इसका मतलब है कि रूस चीन को ऐसी मिसाइल ही बेच सकता है जिसकी रेंज 250 किलोमीटर से ज़्यादा नहीं हो. यानि चीन के पास जो S-400 मिसाइलें हैं वह 40 से 250 किलोमीटर तक ही मार कर सकती हैं.

जबकि भारत के पास जो S-400 मिसाइलों की 5 रेजिमेंट हैं, वे एक समय में 160 मिसाइलें फायर कर सकती हैं. भारत MTCR का सदस्य देश भी है, इसलिए इसकी S-400 मिसाइलें 40 से 400 किलोमीटर की दूरी तक मार कर सकती हैं. मतलब भारत के S-400 सिस्टम एक समय में चीन के मुकाबले ज़्यादा मिसाइलें और ज़्यादा दूर तक जाने वाली मिसाइलें दाग़ सकते हैं. तो साफ़ है कि भारत के लिए S-400 का सौदा फायदे का है. लेकिन इसके साथ साथ और भी वजह हैं जिनको देखते हुए भारत को अमेरिका के दबाव में
S-400 के सौदे से पीछे नहीं हटना चाहिए.

भारत को S-400 के सौदे से पीछे नहीं हटना चाहिए
यह जग जाहिर है कि अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए S-400 मिसाइलें भारत के लिए सबसे सही हथियार हैं, अमेरिका के पास भी इनके मुकाबले खड़ा होने वाली कोई मिसाइल नहीं है. इसलिए इस सौदे पर पुनर्विचार भारत के राष्ट्रहित में नहीं है. हालांकि भारत और अमेरिका के बीच प्रतिरक्षा सम्बन्ध पिछले वर्षों में काफी मज़बूत हुए हैं, लेकिन अभी भी भारत का 60 फीसद रक्षा साज़ोसामान रूस से ही सोर्स किया जाता है. अगर भारत S-400 सौदे से पीछे हटता है तो रूस भारत के पास पड़े रूसी रक्षा साज़ोसामान के लिए स्पेयर पार्ट्स देने में आनाकानी या देरी कर सकता है. ये प्रतिरक्षा तैयारी के लिए घातक हो सकता है. यही नहीं, रूस ऐसे हथियार पाकिस्तान को देने का प्रस्ताव भी कर सकता है. यह भी भारत के हित में नहीं होगा.

हाल के दिनों में इंडो पैसिफिक क्षेत्र में QUAD समूह में भारत की भूमिका की भी काफी चर्चा हो रही है. इस इलाके में अमेरिका के बाद भारत की सैन्य शक्ति सबसे ज़्यादा है. यह बात अमेरिका भी समझता है. तो अगर अमेरिका चीन को इंडो पैसिफिक में काबू करना चाहता है तो उसे भारत के राष्ट्रीय हितों का भी ध्यान रखना पड़ेगा. अगर अमेरिका भारत को CAATSA लागू करने की धमकी देता है वह एक भरोसा करने सकने वाले मित्र देश का विश्वास खो देगा.

इसके साथ साथ विगत में भारत पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगा कर अमेरिका देख चुका है कि भारत ऐसे क़दमों के चलते अपने राष्ट्रहितों से समझौता नहीं करता. ऐसी स्थिति में भारत पर CAATSA लगाना अमेरिका के लिए नुकसानदेह रहेगा. CAATSA के बारे में अंतिम फैसला अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन अपने विदेशमंत्री एंथनी ब्लिंकन की सलाह से करेंगे. उम्मीद की जानी चाहिए कि उनका फैसला भारत और अमेरिका दोनों के राष्ट्रहित में ही होगा.


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