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गणित में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ होती है- फॉर्मूला यानि सूत्र. आंकड़े बताते हैं कि बीते कुछ सालों से सक्सेस के फंडे बताने वाली किताबें सबसे ज्यादा बिकी हैं
गणित में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ होती है- फॉर्मूला यानि सूत्र. आंकड़े बताते हैं कि बीते कुछ सालों से सक्सेस के फंडे बताने वाली किताबें सबसे ज्यादा बिकी हैं. रेसिपी तो कॉमन होती है मगर हर शेफ के अनुभव उसमें अनूठा स्वाद घोल देते हैं. यह सीख या तो वक़्त के साथ खुद के अनुभव से आती है या दूसरों के अनुभव से पाठ पढ़ लिया जाता है. भारत गीता का देश है. यह गुरु ज्ञान से संचालित होने वाले समाज का देश है. यह लोक आख्यान और लोक संस्कृति का देश हैं, जहां ज्ञान श्रुति परंपरा व कलाओं से पीढ़ी दर पीढ़ी प्रवाहित होता है. यह देश खलील जिब्रान का महत्व समझ सकता है. यदि आप बहुत दिनों से किसी बेहतर इंसान से नहीं मिले हैं, तो खलील जिब्रान को जरूर पढ़िए. कोरोना काल में यदि निराशा घेर रही है, मन में कोई मलाल है या उलझन कोई तो खलील जिब्रान को पढ़िए. उनके साहित्य में सूत्र वाक्य की पगडंडियां भी हैं तो लोक कथाओं जैसे चौड़े मार्ग भी, जहां हर कोई अपनी तरह का रास्ता पा सकता है.
खलील जिब्रान की बात इसलिए क्योंकि आज 6 जनवरी को उनकी जयंती है. ये खास दिन मौका होते हैं जब हम जरा ठहर कर विशिष्ट व्यक्तियों व उनके सृजन संसार पर गौर कर सकते हैं. अभी बात कवि, लेखक और चित्रकार खलील जिब्रान की. खलील जिब्रान का जन्म सन् 1883 में सीरिया देश के माउंट लेबनान प्रांत के बशीरी नामक नगर में हुआ था. लेबनान वही प्रान्त है, जहां यहूदियों के अनेक पैगम्बर पैदा हो चुके हैं. शायद यह उस भूमि का ही ताप है कि कला व साहित्य की दुनिया में खलील जिब्रान दूत की तरह ही हैं. बारह वर्ष की आयु में ही उनके पिता उन्हें लेकर यूरोप की यात्रा पर गए थे. बीस वर्ष की उम्र में सन् 1903 में वे फिर अमरीका गए और पांच वर्ष वहां रहकर फ्रांस पहुंचे. पेरिस में जिब्रान ने चित्र कला का अध्ययन किया 1912 में वे फिर अमरीका लौट गए और मरणपर्यन्त न्यूयार्क में ही रहे. सीरिया में रहकर उन्होंने अरबी भाषा में अनेक पुस्तकें लिखीं. सन् 1918 के आसपास उन्होंने अंग्रेजी में भी लिखना आरंभ किया.
वे जितने विशिष्ट चित्रकार थे उतने ही प्रभावी लेखक भी. अनोखे ढंग की लेखन शैली ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया. इसी शैली के कारण उन्हें बीसवीं सदी के दांते की संज्ञा मिली है. उनके अरबी व अंग्रेजी साहित्य का दुनिया की तमाम भाषाओं में अनुवाद हुआ है और अब भी जारी है.
अपनी पहली अंग्रेजी पुस्तक 'द मैडमैन' के प्रकाशन से ही जिब्रान की गिनती अमेरिका के स्तरीय साहित्यिकों में होने लगी थी. यह पुस्तक 1918 में प्रकाशित हुई थी. माना जाता है कि 'द मैडमैन' की रचनाएं लेबनानी लोककथाओं पर आधारित हैं. खलील जिब्रान ने इन 34 प्रतीक कथाओं को एक पागल आदमी के माध्यम से कहलवाया है. दुनिया जिसे पागल समझ रही है वास्तव में वह समझदार है क्योंकि वह जागृत हो चुका है.
किताब की शुरूआत पागल के कहन से होती है. वह कहता है, 'तुम मुझे पूछते हो मैं कैसे पागल हुआ. वह ऐसे हुआ, एक दिन बहुत से देवताओं के जन्मने के पहले मैं गहरी नींद से जागा और मैंने पाया कि मेरे मुखौटे चोरी हो गए हैं. वे सात मुखौटे जिन्हें मैंने सात जन्मों से गढ़ा और पहना था. मैं भीड़ भरे रास्तों पर यह चिल्लाता दौड़ा, चोर-चोर. बदमाश, चोर. स्त्री-पुरूषों ने मेरी हंसी उड़ाई. उनमें से कुछ डर कर अपने घर में छुप गए. और जब मैं बाजार मैं पहुंचा तो छत पर खड़ा एक युवक चिल्लाया, 'यह आदमी पागल है.' उसे देखने के लिए मैंने अपना चेहरा ऊपर किया ओर सूरज ने मेरे नग्न चेहरे को पहली बार चूमा. और मेरी रूह सूरज के प्यार से प्रज्वलित हो उठी. अब मेरी मुखौटों की चाह गिर गई. मदहोश सा मैं चिल्लाया, 'धन्य है वे चोर जिन्होंने मेरे मुखौटे चुराए.' इस प्रकार मैं पागल हुआ. और अपने पागलपन में मुझे सुरक्षा और आजादी, दोनों मिलीं. अकेलेपन की आजादी, और कोई मुझे समझे, इससे सुरक्षा. क्योंकि जो हमें समझते हैं, वह हमारे भीतर किसी तत्व को कैद कर लेते हैं. लेकिन मैं अपनी सुरक्षा पर बहुत नाज़ नहीं करना चाहता. कैद खाने में एक चोर भी तो दूसरे से सुरक्षित होता है.'
1920 में 'द फोररनर', 1923 में 'द प्रोफेट', 1926 में 'सैंड एण्ड फोम', 1932 में 'द वाण्डरर' तथा 1946 में 'टीअर्स एण्ड लाफ्टर' प्रकाशित हुई थी. 'द फोररनर' में नैतिक कथाएँ और काव्य कथाएँ हैं. सभी का आधार सूफी मत प्रतीत होता है. 'द प्रोफेट' का प्रकाशन पूर्व नाम 'द काउंसल्स' था. यह जिब्रान की सर्वाधिक चर्चित कृति है. यह न तो पूरी तरह दार्शनिक कृति है और न पूरी तरह साहित्यिक. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सैनिकों में बाँटने के लिए इसका अतिरिक्त संस्करण छापा गया था. 'सैंड एंड फोम' में सूक्तियों व बौद्धिक वाक्-चातुर्य की लघुकाय रचनाएँ संग्रहीत हैं. 'द वांडरर' में बोधकथाएँ, नीतिकथाएँ और सूक्तियाँ हैं. इस कृति को जिब्रान ने अपनी मृत्यु से मात्र 3 सप्ताह पूर्व अन्तिम रूप दिया था. इस कृति में पंचतंत्र की कथाओं की तरह कुत्ते, पेड़, चिड़ियाँ, जल-धाराएँ, घास और तिनके, यहाँ तक कि छाया भी मनुष्यों की तरह बोलती-बतियाती है.
सूक्तियां हों या लघुकथाएं या कविताएं, खलील जिब्रान को पढ़ते वक्त हम नए आकाश की यात्रा करते हैं. वे हम पर हावी नहीं होती मगर उनके प्रभाव से बचे रहना भी आसान नहीं है. उन्हें पढ़ने के बाद निपट कोरा बना रहना सम्भव नहीं है. वे हल्की ही सही प्रभाव की एक रेख जरूर खींच देते हैं. जैसे यह लघुकथा…
एटीओक नगर में अस्सी नदी पर एक पुल बनाया गया, ताकि आधा शहर दूसरे आधे शहर के करीब आ सके. यह पुल बड़े-बड़े पत्थरों से बना था. एटीओक के खच्चरों की पीठ पर लाद कर ये पत्थर पहाड़ों से नीचे लाए गए थे. जब पुल बन गया तो एक खम्भे पर ग्रीक और अरेमिक (एश्म की भाषा) में उकेरा गया, 'यह पुल राजा एंटीओकस द्वितीय ने बनवाया.' सब लोग उस सुंदर पुल के रास्ते से भरी हुई अस्सी नदी पार करते. एक शाम, एक युवक ने, जिसे लोग थोड़ा-सा बावला कहते थे, खम्भे पर चढ़कर उन उकेरे गए शब्दों पर चारकोल लगा दिया और लिख दिया, 'इस पुल के पत्थर पहाड़ों से खच्चर लेकर आए थे. पुल से इधर-उधर जाते हुए आप एंटीओक के खच्चरों की पीठ पर सवार होकर जाते हैं. ये खच्चर इस पुल के निर्माता हैं.' और जब लोगों ने युवक का लिखा पढ़ा तो उनमें से कुछ हंसे औरकुछ हैरान हुए. कुछ ने कहा, 'हां-हां, हमें पता है, यह किसने किया है. वह थोड़ा-सा पागल है.' परंतु एक खच्चर ने हंसते हुए दूसरे कहा, 'तुम्हें याद है न, हमने वे पत्थर उठाए थे. फिर भी आज तक यह कहा जाता रहा कि पुल राजा एंटिओकस ने बनाया था.
ऐसी लघुकथाओं से अलग सूत्र वाक्यों का संसार भी निराला है। कुछ लोकप्रिय वाक्यों को पढ़ा जाना चाहिए. इन्हें पढ़कर कोई बिरला ही बिना विचारे निरापद रह सकता है.
यदि तुम्हारे हृदय में ईर्ष्या, घृणा का ज्वालामुखी धधक रहा है, तो तुम अपने हाथों में फूलों के खिलने की आशा कैसे कर सकते हो?
यथार्थ में अच्छा वही है जो उन सब लोगों से मिलकर रहता है जो बुरे समझे जाते हैं.
यथार्थ महापुरुष वह आदमी है जो न दूसरे को अपने अधीन रखता है और न स्वयं दूसरों के अधीन होता है.
दानशीलता यह है कि अपनी सामर्थ्य से अधिक दो और स्वाभिमान यह है कि अपनी आवश्यकता से कम लो.
इच्छा आधा जीवन है और उदासीनता आधी मौत.
निःसंदेह नमक में एक विलक्षण पवित्रता है, इसीलिए वह हमारे आँसुओं में भी है और समुद्र में भी.
यदि तुम जाति, देश और व्यक्तिगत पक्षपातों से जरा ऊँचे उठ जाओ तो निःसंदेह तुम देवता के समान बन जाओगे.
मैंने बातूनी से चुप्पी सीखी, असहिष्णु से सहिष्णुता और निर्दयी से दया.
अगर आप किसी से प्रेम करते हैं तो उसे जाने दें, क्योंकि अगर वो लौटता है, तो वो हमेशा से आपका था और अगर नहीं लौटता है, तो वो कभी आपका था ही नहीं.
थोड़ा सा ज्ञान जिसे प्रयोग में लाया जाए वो बहुत सारा ज्ञान जो बेकार पड़ा है, उससे कहीं अधिक मूल्यवान होता है.
यदि कोई और आपको चोट पहुंचाता है तो हो सकता है आप उसे भूल जाएं ; लेकिन यदि आप उसे चोट पहुंचाते हैं, तो आप हमेशा याद रखेंगे.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
पंकज शुक्ला पत्रकार, लेखक
(दो दशक से ज्यादा समय से मीडिया में सक्रिय हैं. समसामयिक विषयों, विशेषकर स्वास्थ्य, कला आदि विषयों पर लगातार लिखते रहे हैं.)
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