सम्पादकीय

जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा

Gulabi
11 Feb 2021 12:11 PM GMT
जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा
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11 फरवरी. इंटरनेशनल प्रॉमिस डे. इस पूरे हफ्ते का यह इकलौता ऐसा दिन है

11 फरवरी. इंटरनेशनल प्रॉमिस डे. इस पूरे हफ्ते का यह इकलौता ऐसा दिन है, जिसके मायने प्‍यार से ज्‍यादा गहरे हैं. प्‍यार इसलिए कि बाजार ने ये पूरा हफ्ता ने प्‍यार के नाम कर रखा है. गुलाब से शुरू होता है और 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे पर जाकर खत्‍म. बीच में प्‍यार की गाड़ी चॉकलेट, टेडी, हग, किस जाने कहां-कहां रुकती चलती है. बीच में एक दिन वादों के भी नाम है. वादे जो करना जितना आसान है, उससे कहीं ज्‍यादा आसान है उन्‍हें तोड़ देना.


वादों की गलियों में घूमते हुए मैं ढूंढ रही हूं धरती का सबसे पहला, सबसे आदिम वादा. कोई तो होगा, जिसने सबसे पहले कोई वादा किया होगा. महसूस किए को शब्‍द देना और उन शब्‍दों पर यकीन करना कैसे सीखा होगा इंसान ने. सुदूर यात्रा पर निकल रहे किसी युवक ने वादा किया होगा कि वो लौटकर आएगा. लौटने के वादे में लौटने का इंतजार रहा होगा. दार्शनिकों ने कुछ लिखा, कहा होगा इस वादे पर.

यहूदी दर्शन की कहानी तो ईश्‍वर के किए एक वादे से ही शुरू होती है- 'प्रॉमिस्‍ड लैंड.' दुनिया का कोई ऐसा विषय नहीं, जिस पर प्‍लेटो और अरस्‍तू का कोट न मिले. लेकिन वादे पर उन्‍होंने कुछ भी नहीं कहा. इमानुएल कांट ने पहली बार वादे को जिंदगी की सबसे कीमती चीज बताया. कहा, "वादा निभाने के लिए होना चाहिए." नीत्‍शे के दर्शन में भी वादे की बात आती है, लेकिन उस वादे की तरह कि जिसका टूटना
तय है.

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इतिहास भरा पड़ा है, ऐसे वादों और उन पर वादों पर किए गए यकीन से, जो कभी किए ही नहीं गए. कई हजार साल गुजारे होंगे प्रेमियों ने उस वादे के इंतजार में, जो असल में हुए ही नहीं थे. बिएत्रिस ने नहीं किया था कोई वादा दांते, जिसके यकीन पर उसने डिवाइन कॉमेडी लिख डाली. वादा तो फर्मिना डाजा ने भी नहीं किया था एक दिन लौट आने का, लेकिन फ्लोरंतीनो इंतजार करता रहा. किताबों में ऐसे तो नहीं सुनाई गई कृष्‍ण की कहानी कि कभी उन्‍होंने राधा से वादा किया हो लौट आने का. लेकिन इस अनकहे वादे के इंतजार में ही गुजरी होगी राधा
की उम्र.

जीवन का अंतर्विराेध ऐसा है कि न किए गए वादों पर यकीन तो ठीक, लेकिन किए गए वादों पर यकीन सबसे मुश्किल है. न किए गए वादे टूटते नहीं, किए गए टूट जाते हैं. तोड़ दिए जाते हैं. कभी कोई ऐसे नहीं देता वादा कि अपनी जिंदगी की सबसे कीमती चीज दे रहा हो. कि अब और कुछ भी टूट जाए, ये वादा नहीं टूट सकता. इतने यकीन, इतनी जिम्‍मेदारी से न मांगे, न दिए, न निभाए जाते हैं वादे. कभी करके भूल जाते हैं, कभी याद रह भी जाएं तो निभाना याद नहीं रहता.

लेकिन हर जिंदगी में जरूर होता है कि कोई एक वादा, जिसके लिए यकीन हो कि वो निभाने के लिए ही किया गया है. जैसे उस बच्‍चे ने वादा किया था. जैसे कहा था उसने, "दीदी से वादा किए हैं."

ये बहुत साल पुरानी बात है. मैं एक स्‍टोरी के सिलसिले में आजमगढ़ गई थी. हम शहर से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर हाइवे से गुजर रहे थे. रास्‍ते में एक सफेर रंग का मंदिर पड़ा. मंदिर के पास काफी भीड़ थी. अचानक लगा कि वहां कुछ हो रहा है. मैंने ड्राइवर से कहकर गाड़ी रुकवाई.

मंदिर की सीढि़यों पर एक पांच-छह साल का बच्‍चा बैठा जारो-कतार रो रहा था. कुछ आंसू बह रहे थे, कुछ नाक, गाल पर गिरकर सूख गए थे. नाक कुछ भरी थी, कुछ बह रही थी. बच्‍चे के हाथ-पैर रस्‍सी में बंधे थे. धूल-मिट्टी से सने खुरदरे पैरों पर ढेर सारी फोड़े-फुंसियों के निशान थे. कुछ ताजे, कुछ सूखे हुए. पैरों में बंधी रस्‍सी फोड़े के निशानों के गिर्द लिपटी थी. कहीं ताजे घाव के भी बेहद करीब से गुजर रही थी.

मंदिर का पुजारी बच्‍चे के कान उमेठते हुए पूछ रहा था, "चोरी करेगा, बता, अब करेगा चोरी."

भीड़ में हर उम्र के लोग थे. पांच साल के लड़के से लेकर 50 साल के बूढ़े तक. सब तमाशा देख रहे थे. हंस रहे थे. पुजारी की ओर रजामंदी और गर्व से देख रहे थे. अच्‍छा सबक सिखाया. एक प्रौढ़ ने आगे बढ़कर बच्‍चे को थप्‍पड़ भी रसीद कर दिया.
और तभी इन सबके बीच भीड़ में जगह बनाती मैं बच्‍चे तक पहुंची. उसी के बगल में सीढि़यों पर बैठकर पुजारी से सारा माजरा पूछा. पुजारी ने बताया कि बच्‍चे ने मंदिर में मूर्ति पर चढ़े पैसे चुराए हैं. बच्‍चे की बंद हथेली में अभी भी कुछ सिक्‍के दबे हुए थे. मैंने पुजारी से थोड़ी कड़क आवाज में बच्‍चे की रस्सियां खोलने को कहा.

फिर मैंने बच्‍चे को गाड़ी में बिठाया और कहा कि तुम्‍हें घर छोड़ देती हूं. रास्‍ते में उससे बात की. पूछा, "तुमने चोरी क्‍यों की?" बच्‍चा कुछ नहीं बोला. मेरे इस तरह अचानक आने के बाद जो कुछ हुआ था, वो उससे काफी हकबकाया हुआ था. मैंने बच्‍चे का हाथ अपने हाथ में लेकर उसे सहलाया. उसके सिर पर हाथ रखा और फिर प्‍यार से पूछा, "तुमने चोरी क्‍यों की?" बच्‍चा फिर कुछ नहीं बोला.

फिर मैंने उसे आदर्शों वाला ज्ञान दिया. चोरी करना बुरी बात है. अच्‍छे बच्‍चे चोरी नहीं करते. पता नहीं, इस अच्‍छे बच्‍चे का मतलब उसे मालूम था भी या नहीं. या ये कि वो एक अच्‍छा बच्‍चा है या उसे अच्‍छा बच्‍चा होना चाहिए. कभी कहा होगा किसी ने उससे कि अच्‍छा बच्‍चा बनो.

बच्‍चा पूरे रास्‍ते कुछ नहीं बोला. करीब दो किलोमीटर दूर हाइवे पर ही एक कंस्‍ट्रक्‍शन साइट के पास उसका झोपड़ेनुमा घर था. उसके मां-पिता वहां दिहाड़ी मजदूर थे. गाड़ी से उतरते हुए मैंने उससे कहा, "वादा करो कि अब कभी चोरी नहीं करोगे."

बच्‍चा चुप रहा.

मैंने फिर कहा, "वादा करो मुझसे." मैंने वादे वाली हथेली उसके सामने फैला रखी थी.
"प्रॉमिस मी."

बच्‍चा करीब एक मिनट तक मुझे देखता रहा. पहली बार उसने मेरी आंखों में देखा. फिर अपनी बिखरी, धुंधली सी आवाज में बोला, "हम वादा करते हैं, अब कभी चोरी नहीं करेंगे."

मैं उसे उसके घर तक छोड़ने गई. उसकी मां सड़क पर ही मिल गई. मैं उसकी मां को कुछ बताना नहीं चाहती थी लेकिन लोकल रिपोर्टर ने पहले ही मां को अपडेट कर दिया. उसकी मां मुश्किल से 20-21 साल की एक दुबली-पतली सी लड़की थी, जिसकी गोद में एक छोटा बच्‍चा था और दूसरा थोड़ी देर पहले मंदिर से चोरी करते पकड़ा गया था. ये बात सुनकर मां खीज गई. थप्‍पड़ मारने की मुद्रा में उसका हाथ उठा. मैंने रोक दिया. आप मारिएगा मत. अब कभी नहीं करेगा. मां न चीखी-चिल्‍लाई, न गालियां दी. बिल्‍कुल रुंआसी हो गई.

लड़के का हाथ पकड़कर बोली, "क्‍यों किए चोरी?"
लड़का धीरे से बोला, " अब कभी नहीं करेंगे. दीदी से वादा किए हैं. "

वो क्षण बीत गया, लेकिन उस बच्‍चे का कहा वो वाक्‍य हमेशा के लिए मेरे साथ रह गया- "दीदी से वादा किए हैं."

मुझे यकीन है कि वो निभाने के लिए किया गया वादा था. प्रॉमिड डे मनाने के लिए नहीं.


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