सम्पादकीय

कुछ नई चीजें सीखनी होंगी; मम्मियों को मिलना चाहिए 'सुपरगृहिणी' का खिताब

Gulabi
5 Jan 2022 11:31 AM GMT
कुछ नई चीजें सीखनी होंगी; मम्मियों को मिलना चाहिए सुपरगृहिणी का खिताब
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मम्मियों को मिलना चाहिए ‘सुपरगृहिणी’ का खिताब
रश्मि बंसल का कॉलम:
मेज़ पर खाना लग चुका है- दाल, चावल, रोटी, सब्जी। कौन-सी सब्ज़ी- उफ, कद्दू! अम्मा, जरा-सा अचार दे दो, आज उसी के साथ रोटी खा लेंगे। (कुछ देर बाद, अंगुली चाटते-चाटते) मेरी रूममेट जो है ना, वो भी आपके अचार की दीवानी है। कहती है अम्मा को बोलो इसको ऑनलाइन डाले, खूब बिकेगा। ऐसी बातें अक्सर डायनिंग टेबल पर होती हैं, हंसी-मजाक में निकल जाती हैं।
मगर एक परिवार ने घर की महिला को प्रोत्साहित किया। आप करो, हम सब साथ हैं। पति ने कुछ पैसों का इंतजाम किया, आईआईटी में पढ़े बच्चों ने कहा वेबसाइट और मार्केटिंग में हम आपकी मदद करेंगे। तब 52 साल की कल्पना झा ने सोचा-क्यों नहीं। मैं भी कर सकती हूं! अब बिजनेस अकेले तो होता नहीं, एक टीम चाहिए। सो कल्पना ने अपनी भाभी उमा को भी साथ ले लिया।
ननद-भाभी की जोड़ी सोनी टीवी के 'शार्क टैंक' प्रोग्राम में शामिल हुई। बड़े कॉन्फिडेंस के साथ उन्होंने अपने व्यापार, अपना प्रॉफिट, अपने आगे का बिजनेस प्लान पेश किया। हालांकि जजेस को उनका अचार और व्यापार बहुत पसंद आया, लेकिन पैसे किसी ने भी इन्वेस्ट नहीं किए। खैर, प्रोग्राम में आने का फायदा फिर भी मिला। टेलीकास्ट के बाद रात भर, उनकी वेबसाइट पर धड़ाधड़ ऑर्डर आते रहे।
पांच लाख रु. की सेल हुई। मतलब जो एक महीने में बिकता था वो एक ही दिन में अचीव हो गया। अब ननद-भाभी की जोशीली जोड़ी अपना बिजनेस एक्सपेंड करने में लगी हुई है। मुझे विश्वास है, उन्हें मनचाही सफलता मिलेगी। सोचने की बात ये है कि कल्पना और उमा के बिजनेस का लाभ सिर्फ उन्हें नहीं, उनके शहर को भी मिलेगा। आज वो 15-20 लोगों को रोजगार देती हैं, जिनमें कई महिलाएं और कई युवा हैं।
जो लड़का काम के लिए मुंबई या दिल्ली में भटकता था, अब वो दरभंगा में रहकर छह-सात हजार कमा सकता है। तो इससे अच्छी क्या बात हो सकती है। मेरा मानना है कि कल्पना-उमा जैसी लाखों महिलाएं हैं, जिनका हुनर दबा हुआ है। जिनकी कद्र ना घर में होती है, ना बाहर। हां, कभी कभार परिवारजन कुछ मीठे शब्द बोल देते हैं पर गृहकार्य कुशल महिला को समाज कोई खास मान-सम्मान नहीं देता।
ऐसी मम्मियों के बच्चे जब पढ़-लिखकर, दूर शहर में नौकरी लेते हैं-घर बसाते हैं, तब अक्ल ठिकाने आती है। किचन का काम कभी खत्म ही नहीं होता। एक पार्ट टाइम नौकरानी के साथ, मम्मी तीन वक्त का खाना, चाय-नाश्ता, बाजार के काम, रिश्तेदारों की आवभगत, उपवास-त्योहार, बच्चों की परवरिश- इतना कुछ कैसे करती थीं? वो भी बिना चिड़चिड़, बिना एहसान जताए।
मुझे लगता है, ऐसी मम्मियों को गृहिणी नहीं 'सुपरगृहिणी' का खिताब मिलना चाहिए। लिमिटेड बजट में महीने का खर्च चलाना, कम समय में ज्यादा काम करने के अनोखे तरीके, घर का माहौल मधुर रखना- ये उनके सुपरपावर्स हैं। तो चाहे ऐसी महिला ने एमबीए की पढ़ाई नहीं की लेकिन पैसा-पीपुल मैनेजमेंट उसे आता है। बस जरूरत है, थोड़े गाइडेंस की। आज कोविड की वजह से लाखों नौजवान होमटाउन लौट गए हैं।
वहीं से ऑफिस में लॉग-इन कर रहे हैं। तो कभी कम्प्यूटर से आंख उठाकर देखिए, वो महिला जो आपके सामने चाय लेकर खड़ी है- वो आखिर कौन है? क्या उनका कोई सपना है, जिसे आज आप पूरा करवा सकते हैं? शायद वो बिजनेस करना चाहती है, या समाज की सेवा। किसी को पढ़ने का शौक है, तो कोई संगीत या चित्रकला में माहिर। बात पैसे कमाने की नहीं, अपनी एक पहचान बनाने की है। आत्मसम्मान की है।
मम्मी की आंखों में जो चमक आएगी, उससे आपकी भी जिंदगी खिल जाएगी। महिलाओं को मैं ये कहना चाहती हूं- हौसला-विश्वास रखें। आपमें क्षमता है। कुछ नई चीजें सीखनी होंगी, थोड़ा डर लगेगा मगर मजा भी है। मुझे याद आती है प्रेमलता अग्रवाल की कहानी, जमशेदपुर की एक हाउसवाइफ, जिन्होंने 48 साल की उम्र में माउंट एवरेस्ट के शिखर पर चढ़कर एक नया रिकॉर्ड बनाया था। आप भी कदम बढ़ाइए, अपना रास्ता बनाइए। सपने साकार करना मुमकिन है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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