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साल का एक दिन महिलाओं के नाम कर मर्दों ने बाकी के 364 पर अपना एकछत्र कब्जा कायम रखा है
मनीषा पांडेय।
साल का एक दिन महिलाओं के नाम कर मर्दों ने बाकी के 364 पर अपना एकछत्र कब्जा कायम रखा है. जिस दिन पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाती है, उसके ठीक 7 दिन पहले 1 मार्च को इंटरनेशनल जीरो डिसक्रिमिनेशन डे होता है. शून्य भेदभाव दिवस. सुनकर ही ऐसा लगता है जैसे कोई चुटकुला हो. घर पर, मुहल्ले में, दफ्तर में कोई बोले तो सबको हंसी आएगी. अरबों डॉलर के अंतरराष्ट्रीय बजट वाले दुनिया के सबसे ताकतवर देशों की बनाई सबसे ताकतवर संस्था बोलती है तो लगता है जरूर कोई गंभीर बात होगी. हालांकि उनके मुंह से जीरो डिसक्रिमिनेशन डे सुनते हुए हम भूल जाते हैं कि दुनिया में सबसे ज्यादा डिसक्रिमिनेशन भी उन्होंने ही किया है. ये बात अलग है कि न्याय और बराबरी की बातें भी सबसे ज्यादा वही करते हैं.
ये महज इत्तेफाक भर नहीं है कि दुनिया औरतों के न्याय और बराबरी के आइडिया को समर्पित साल का ये महीना मार्च शुरू ही इंटरनेशनल जीरो डिसक्रिमिनेशन डे से होता है.
फिलहाल 8 मार्च आ चुका है. पूरी दुनिया में महिला दिवस का आयोजन शुरू हो चुका है. इस एक दिन के आयोजन की सारी धूमधाम और चकाचौंध आपकी आंखों पर भ्रम का पर्दा न डाल दे और सच आपको दिखाई देना बंद न हो जाए, इसलिए इन आयोजनों और शोर-शराबे के बीच एक बार जरा इन आंकड़ों पर भी गौर फरमा लेते हैं. ये सारे आंकड़े यूनाइटेड नेशंस के हैं.
1- आज भी पूरी दुनिया में मर्द औरतों से 42 गुना ज्यादा पैसे कमाते हैं.
2- आज भी पूरी दुनिया में 78 फीसदी संपदा पर मर्दों का मालिकाना हक है.
3- आज भी पूरी दुनिया में बड़ी कंपनियों, कॉरपोरेटों में ऊंचे पदों पर महिलाओं का प्रतिशत 1 फीसदी है.
4- अधिकांश देशों में 80 फीसदी से ज्यादा जमीनों पर मालिकाना हक मर्दों का है.
5- पूरी दुनिया में सबसे लो पेड जॉब में महिलाओं की भागीदारी 60 फीसदी है.
6- पूरी दुनिया में हर चौथी स्त्री अपने जीवन में कभी न कभी शारीरिक हिंसा की शिकार होती है.
7. पूरी दुनिया में हर दूसरी औरत अपने जीवन में कभी-न-कभी यौन हिंसा की शिकार होती है.
8. पूरी दुनिया में हिंसा का शिकार 32 फीसदी औरतों के साथ हिंसा करने वाला कोई उनका नजदीकी, परिवार का व्यक्ति और इंटीमेट पार्टनर होता है.
9. पूरी दुनिया में गर्भपात प्रतिबंधित होने के कारण असुरक्षित और गैरकानूनी तरीके से गर्भपात करवाने की कोशिश में 30,000 महिलाएं जान से हाथ धो बैठती हैं.
10. पूरी दुनिया में एक वयस्क स्त्री को वयस्क पुरुष के मुकाबले 16 फीसदी कम स्वास्थ्य सेवाएं मिलती हैं.
11. आज भी पूरी दुनिया की 27 फीसदी महिला आबादी तक सुरक्षित कॉन्ट्रेसेप्शन की पहुंच नहीं है.
12. पूरी दुनिया में 22 फीसदी लड़कियां बाल विवाह की शिकार होती हैं.
13. पूरी दुनिया में आज भी 9 फीसदी लड़कियां फीमेल जेनाइटल म्यूटीलेशन की शिकार होती हैं.
14. 28 फीसदी महिलाएं पूरी दुनिया में आज भी स्कूल जाने और शिक्षा के अधिकार से वंचित हैं.
15. पूरी दुनिया में 24 फीसदी महिलाओं के साथ बलात्कार होता है.
16. पूरी दुनिया में 32 फीसदी महिलाएं कुपोषण की शिकार हैं.
आंकड़े, सर्वे और रिपोर्ट तो इतनी हैं कि दुनिया के सारे पन्ने भर जाएंगे, लेकिन असमानता, गैरबराबरी और क्रूरता के ये आंकड़े खत्म नहीं होंगे. हेल्थ अफेयर्स की पिछले साल की रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका में एक महिला डॉक्टर अपने 40 साल के कॅरियर में पुरुष डॉक्टर के मुकाबले 2 मिलियन डॉलर यानी 15 करोड़, 18 लाख, 32 हजार रु. कम कमाती हैं. पूरी दुनिया में औरतें अपने बराबर के मर्द सहकर्मियों के मुकाबले 40 फीसदी कम कमाती हैं.
ये सब सच का एक पहलू नहीं है. यही सच का सबसे बड़ा और सबसे सच्चा पहलू है. यही सच है, जिस पर आज दुनिया भर के सेमिनारों में दुनिया भर के मर्द बैठकर डिसकशन करेंगे और ज्ञान देंगे. अपने देश का मामला पूरी दुनिया से निराला है. तीन हजार साल पहले यहां मनु लिखकर गए थे- "यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता" और 3 हजार साल से औरतों को मारने, जलाने, अपमानित करने, उन्हें उनके बुनियादी इंसानी हक तक से वंचित रखने के बाद भी हम दिन में 74 बार दोहराते हैं- "यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता". हम औरतों को इंसान तक नहीं समझते और दावा उसकी पूजा का करते हैं.
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट कहती है कि पूरी दुनिया में जेंडर बराबरी का लक्ष्य हासिल करने में अभी 40 साल और लगेंगे. हालांकि सोचकर देखो तो लगता है 40 साल शायद दुनिया को लगेंगे, लेकिन भारत को तो अभी कम से कम 100 साल और लगेंगे. आजादी के 75 साल बाद भी अगर उच्च शिक्षा से लेकर नौकरी तक में स्त्रियों की भागीदारी का प्रतिशत दो दहाई से आगे नहीं बढ़ पाया है तो इस मुल्क इतने कम समय में इतनी ज्यादा उम्मीद पाल लेना तार्किक तो नहीं लगता.
इसलिए आज के दिन जब आप सेलिब्रेशन के मूड में हों, सभा, सेमिनारों में औरतों के हक, आजादी और बराबरी पर भाषण दे रहे हों, औरतों के लिए न्याय और बराबरी की बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हों तो एक बार इन आंकड़ों पर भी गौर कर लीजिएगा और एक सरसरी निगाह अपनी जिंदगी पर भी मार लीजिएगा. इन आंकड़ों के बाद स्त्री स्वतंत्रता, समानता और बराबरी का अगर कोई लिटमस पेपर टेस्ट है तो वो आपकी अपनी जिंदगी है. अगर आपके हाथ में ताकत थी तो औरतों को मजबूत बनाने, उनका हक दिलाने, उन्हें बराबरी की जगह दिलाने के लिए आपने क्या किया?
TagsWomen's Day
Gulabi
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