सम्पादकीय

हेट स्पीच और उन्मादी हिंसा देश के भविष्य के लिए खतरनाक

Rani Sahu
20 April 2022 9:11 AM GMT
हेट स्पीच और उन्मादी हिंसा देश के भविष्य के लिए खतरनाक
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यह किस तरह का राष्ट्रवादी उन्माद है जो अपने ही देश के नागरिकों के खिलाफ हिंसा के वातारण को एक राष्ट्रीय उभार के बतौर स्थापित कर रहा है

Faisal Anurag

यह किस तरह का राष्ट्रवादी उन्माद है जो अपने ही देश के नागरिकों के खिलाफ हिंसा के वातारण को एक राष्ट्रीय उभार के बतौर स्थापित कर रहा है. क्या यह माहौल किसी भी देश की आर्थिक प्रगति,वैज्ञानिक अन्वेषण और कलात्मक सृजनता के खिलाफ नहीं है. एक ऐसा परिदृश्य बन रहा है जिसमें हिंसा और मृत्यु को उत्सव बनाया जा रहा है. जानेमाने टिप्पणीकार प्रवीण स्वामी ने द प्रिंट के अपने एक ताजा लेख में चिंता प्रकट की है "" भारत में हिंदुत्ववादी हिंसा की जानबूझकर अनदेखी करना कहीं देश के लिए एक बड़ा खतरा न बन जाए.

विपक्ष की तेरह पार्टियों ने हिंसा के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाया है. इंडियन एक्सप्रेस में लिखे गए एक लेख में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लेख में सवाल किया है कि ऐसा क्या है, जो प्रधानमंत्री को स्पष्ट और सार्वजनिक रूप से 'हेट स्पीच' के खिलाफ खड़े होने से रोकता है, चाहे यह 'हेट स्पीच' कहीं से भी आए?एक ही पैर्टन की हिंसा देश के सात से अधिक राज्यों में हुयी. इसे नजरअंदाज करना वास्तव में भारतीय सांस्कृतिक चेतना के मानवीय सरोकार और समाज के बीच के सद्भाव को गहरे रूप से नुकसान पहुंचाना है.

भारत यदि दुनिया में लोकतंत्र के बड़े केंद्र के रूप में सम्मानित है तो इसका प्रमुख कारण धार्मिक, सामाजिक सद्भाव,सभी नागरिकों की स्वतंत्रता,खानपान,पहनावा और धार्मिक स्वतंत्रता के मूलभूत अधिकार की गारंटी रहा है. लेकिन प्रवीण स्वामी ने ठीक सवाल उठाया है ""आज भारत के बड़े हिस्से में हत्या का जश्न मनाने की यही संस्कृति जिसे सेलफोन पर रिकॉर्ड किया जाता है और सोशल मीडिया के माध्यम से सर्कुलेट किया जाता है खतरनाक ढंग से हावी होती जा रही है. छोटे शहरों और गांवों के गली-कूचों की सत्ता वास्तव में विचाराधारा के आधार पर काम करने वाले गैंगस्टर चला रहे हैं, न कि राज्य की संस्थाएं.

अमेरिका की तरह, यहां पर भी बात यह नहीं है कि किसी निशक्त अल्पसंख्यक को प्रताड़ित किया जा रहा है, बल्कि यह सब खून के बलबूते पर बहुसंख्यकों को एक नए वैचारिक बंधन में बांध रहा है."" दरअसल यह एक नए तरह का राष्ट्रवाद है जिसकी जड़े उस राजनीति में अंतरनिहित है जो अपने वर्चस्व के इर्दगिर्द बहलुतावादी सांस्कृतिक अवधारणा को एकरूपता में बदलने के लिए बेचैन हैं.

विपक्ष के 13 नेताओं की चिंता बताती है कि देश एक गहरे संकट में है और केंद्र सरकार इस पर पूरी तरह खामोश है. संयुक्त बयान में विपक्ष के नेताओं ने कहा, 'हम प्रधानमंत्री की चुप्पी को लेकर स्तब्ध हैं जो कि ऐसे लोगों के खिलाफ कुछ भी बोलने में नाकाम रहे, जो अपने शब्दों और कृत्यों से कट्टरता फैलाने और समाज को भड़काने का काम कर रहे हैं. यह चुप्पी इस बात का तथ्यात्मक प्रमाण है कि इस तरह की निजी सशस्त्र भीड़ को आधिकारिक संरक्षण प्राप्त है.'

एकजुट होकर सामाजिक सद्भाव को मजबूत करने का अपना संयुक्त संकल्प जताते हुए विपक्षी नेताओं ने कहा, 'हम उस जहरीली विचारधारा से मुकाबला करने संबंधी अपने संकल्प को दोहराते हैं जो कि हमारे समाज में फूट डालने की कोशिश कर रही है.' इन 13 नेताओं में सोनिया गांधी,ममता बनर्जी,शरद पवार, एमके स्टालिन, हेमंत सोरेन, तेजस्वी यादव,डी राजा, सीतरारम येचुरी शामिल हैं.

विपक्ष की चिंता बताती है कि वक्त ऐसा आ गंया है जब सुप्रीम कोर्ट को भी स्वत:संज्ञान लेने की जरूरत है.प्रवीण स्वामी जैसे टिप्पणीकार मूलत: भारतीय जनता पार्टी खास कर नरेंद्र मोदी के पक्षकार माने जाते हैं. उनके जैसे अनेक लोग हैं जो अखबारों में लेख लिख कर गहरी चिंता प्रकट कर रहे हैं. हिंसक माहौल को एक स्थायी ध्रवीकरण के बतौर तब्दील कर देना भारत के उस विचार के खिलाफ होगा जिसे कविगुरू टैगोर से लेकर स्वतंत्रता संग्राम के नायकों ने गढ़ा और उसी आधार पर भारत एक आधुनिक,सेकुलर,संवैधानिक लोकतंत्र बन दुनिया में महत्वपूर्ण बना.
Faisal Anurag
यह किस तरह का राष्ट्रवादी उन्माद है जो अपने ही देश के नागरिकों के खिलाफ हिंसा के वातारण को एक राष्ट्रीय उभार के बतौर स्थापित कर रहा है. क्या यह माहौल किसी भी देश की आर्थिक प्रगति,वैज्ञानिक अन्वेषण और कलात्मक सृजनता के खिलाफ नहीं है. एक ऐसा परिदृश्य बन रहा है जिसमें हिंसा और मृत्यु को उत्सव बनाया जा रहा है. जानेमाने टिप्पणीकार प्रवीण स्वामी ने द प्रिंट के अपने एक ताजा लेख में चिंता प्रकट की है "" भारत में हिंदुत्ववादी हिंसा की जानबूझकर अनदेखी करना कहीं देश के लिए एक बड़ा खतरा न बन जाए.
विपक्ष की तेरह पार्टियों ने हिंसा के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाया है. इंडियन एक्सप्रेस में लिखे गए एक लेख में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लेख में सवाल किया है कि ऐसा क्या है, जो प्रधानमंत्री को स्पष्ट और सार्वजनिक रूप से 'हेट स्पीच' के खिलाफ खड़े होने से रोकता है, चाहे यह 'हेट स्पीच' कहीं से भी आए?एक ही पैर्टन की हिंसा देश के सात से अधिक राज्यों में हुयी. इसे नजरअंदाज करना वास्तव में भारतीय सांस्कृतिक चेतना के मानवीय सरोकार और समाज के बीच के सद्भाव को गहरे रूप से नुकसान पहुंचाना है.
भारत यदि दुनिया में लोकतंत्र के बड़े केंद्र के रूप में सम्मानित है तो इसका प्रमुख कारण धार्मिक, सामाजिक सद्भाव,सभी नागरिकों की स्वतंत्रता,खानपान,पहनावा और धार्मिक स्वतंत्रता के मूलभूत अधिकार की गारंटी रहा है. लेकिन प्रवीण स्वामी ने ठीक सवाल उठाया है ""आज भारत के बड़े हिस्से में हत्या का जश्न मनाने की यही संस्कृति जिसे सेलफोन पर रिकॉर्ड किया जाता है और सोशल मीडिया के माध्यम से सर्कुलेट किया जाता है खतरनाक ढंग से हावी होती जा रही है. छोटे शहरों और गांवों के गली-कूचों की सत्ता वास्तव में विचाराधारा के आधार पर काम करने वाले गैंगस्टर चला रहे हैं, न कि राज्य की संस्थाएं.
अमेरिका की तरह, यहां पर भी बात यह नहीं है कि किसी निशक्त अल्पसंख्यक को प्रताड़ित किया जा रहा है, बल्कि यह सब खून के बलबूते पर बहुसंख्यकों को एक नए वैचारिक बंधन में बांध रहा है."" दरअसल यह एक नए तरह का राष्ट्रवाद है जिसकी जड़े उस राजनीति में अंतरनिहित है जो अपने वर्चस्व के इर्दगिर्द बहलुतावादी सांस्कृतिक अवधारणा को एकरूपता में बदलने के लिए बेचैन हैं.
विपक्ष के 13 नेताओं की चिंता बताती है कि देश एक गहरे संकट में है और केंद्र सरकार इस पर पूरी तरह खामोश है. संयुक्त बयान में विपक्ष के नेताओं ने कहा, 'हम प्रधानमंत्री की चुप्पी को लेकर स्तब्ध हैं जो कि ऐसे लोगों के खिलाफ कुछ भी बोलने में नाकाम रहे, जो अपने शब्दों और कृत्यों से कट्टरता फैलाने और समाज को भड़काने का काम कर रहे हैं. यह चुप्पी इस बात का तथ्यात्मक प्रमाण है कि इस तरह की निजी सशस्त्र भीड़ को आधिकारिक संरक्षण प्राप्त है.'
एकजुट होकर सामाजिक सद्भाव को मजबूत करने का अपना संयुक्त संकल्प जताते हुए विपक्षी नेताओं ने कहा, 'हम उस जहरीली विचारधारा से मुकाबला करने संबंधी अपने संकल्प को दोहराते हैं जो कि हमारे समाज में फूट डालने की कोशिश कर रही है.' इन 13 नेताओं में सोनिया गांधी,ममता बनर्जी,शरद पवार, एमके स्टालिन, हेमंत सोरेन, तेजस्वी यादव,डी राजा, सीतरारम येचुरी शामिल हैं.
विपक्ष की चिंता बताती है कि वक्त ऐसा आ गंया है जब सुप्रीम कोर्ट को भी स्वत:संज्ञान लेने की जरूरत है.प्रवीण स्वामी जैसे टिप्पणीकार मूलत: भारतीय जनता पार्टी खास कर नरेंद्र मोदी के पक्षकार माने जाते हैं. उनके जैसे अनेक लोग हैं जो अखबारों में लेख लिख कर गहरी चिंता प्रकट कर रहे हैं. हिंसक माहौल को एक स्थायी ध्रवीकरण के बतौर तब्दील कर देना भारत के उस विचार के खिलाफ होगा जिसे कविगुरू टैगोर से लेकर स्वतंत्रता संग्राम के नायकों ने गढ़ा और उसी आधार पर भारत एक आधुनिक,सेकुलर,संवैधानिक लोकतंत्र बन दुनिया में महत्वपूर्ण बना.
Rani Sahu

Rani Sahu

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