सम्पादकीय

सच सामने आ गया?

Gulabi
31 Jan 2022 5:00 AM GMT
सच सामने आ गया?
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जासूसी सॉफ्टेवेयर पेगासस की निर्माता कंपनी तो आरंभ से ही यह कह रही थी
अगर ये खबर सच है, तो सवाल उठेगा कि क्या इसके लिए जवाबदेही तय होगी और क्या इस जासूसी के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को अपने इस कृत्य की कीमत चुकाने के लिए मजबूर किया जा सकेगा? अगर ऐसा नहीं होता है, तो फिर भारत के एक सजीव लोकतंत्र होने के दावे पर गंभीर सवाल उठ खड़ा होगा।
जासूसी सॉफ्टेवेयर पेगासस की निर्माता कंपनी तो आरंभ से ही यह कह रही थी कि उसने अपने इस सॉफ्टवेयर को सिर्फ सरकारों को बेचा है। यानी उसने किसी प्राइवेट एजेंसी को इसकी बिक्री नहीं की। वैसे में जब भारत में बड़ी संख्या में लोगों की जासूसी पेगासस के जरिए हुई, तो आम धारणा यही थी कि भारत सरकार ने ये सॉफ्टवेयर खरीदा। लेकिन भारत सरकार ने इस मामले में रहस्यमय चुप्पी साधे रखी थी। संभवतः वह कोशिश में लगी रही कि समय गुजरने के साथ बात दब जाएगी और सच सामने नहीं आ सकेगा। लेकिन अब अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने सच बता दिया है। उसने अपनी एक खोजी रिपोर्ट में न सिर्फ यह बताया है कि संबंधित इजराइली कंपनी से ये खरीदारी भारत सरकार ने की, बल्कि ये सौदा कब हुआ, यह भी अखबार की रिपोर्ट में दर्ज है। इस बीच भारत के एक अंग्रेजी अखबार की वो खबर फिर से चर्चा में आई है कि साल 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इजराइल यात्रा से ठीक पहले भारत के सिक्युरिटी काउंसिल सेक्रेटेरियट के बजट में दस गुना की वृद्धि की गई थी। जब वो खबर छपी थी, तब कयास लगाए गए थे कि उस रकम का इस्तेमाल पेगासस खरीदने में किया गया।
बहरहाल, यह मुद्दा नहीं है कि किस और कितनी रकम से ये खरीदारी हुई। असल सवाल यह है कि आखिर किसी देश सरकार को अपने देश के विपक्षी नेताओं, आम नागरिकों, निर्वाचन आयुक्त, सुप्रीम कोर्ट के जज और सशस्त्र सेनाओं से जुड़े लोगों की जासूसी क्यों करानी चाहिए? एक लोकतांत्रिक देश में इसे मूल अधिकारों का हनन ही समझा जाएगा। खास कर उस सूरत में जब सुप्रीम कोर्ट अपने एक फैसले से नागरिकों की निजता को उनका मूल अधिकार घोषित कर चुका हो। जाहिर है, सरकार इस खबर को महज एक मीडिया रिपोर्ट बताएगी। लेकिन उसे यह समझना चाहिए कि लोग मीडिया रिपोर्ट पर इसलिए भरोसा कर रहे हैं, क्योंकि उसकी तरफ से इस मामले में पारदर्शिता नहीं बरती गई है। बहरहाल, अगर ये खबर सच है, तो सवाल उठेगा कि क्या इसके लिए जवाबदेही तय होगी और क्या इस जासूसी के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को अपने इस कृत्य की कीमत चुकाने के लिए मजबूर किया जा सकेगा? अगर ऐसा नहीं होता है, तो फिर भारत के एक सजीव लोकतंत्र होने के दावे पर गंभीर सवाल उठ खड़ा होगा।
नया इण्डिया
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