सम्पादकीय

क्या पंजाब में कांग्रेस पार्टी चुनाव हारने की तैयारी में जुट गयी है?

Gulabi
13 May 2021 6:16 AM GMT
क्या पंजाब में कांग्रेस पार्टी चुनाव हारने की तैयारी में जुट गयी है?
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अभी हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में शर्मनाक हार के बाद उम्मीद की जा रही

अजय झा। सुष्मिता सिन्हा। अभी हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में शर्मनाक हार के बाद उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस पार्टी शायद सबक सीख कर अगले वर्ष की शुरुआत में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट जाएगी. पर जो दिख रहा है, खासकर पंजाब में, वह ठीक इसके विपरीत है. पंजाब में कांग्रेस पार्टी चुनाव हारने की तैयारी में जुट गयी है. जिन पांच राज्यों में फरवरी-मार्च के महीने में चुनाव होना है उनमे से कांग्रेस पार्टी सिर्फ पंजाब में ही सत्ता में है. उत्तर प्रदेश के अलावा बाकी के चार राज्यों में कांग्रेस पार्टी जीत सकती है इसकी सम्भावना फिलहाल बेहद कम ही नजर आ रही है.


अन्य राज्यों के मुकाबले पंजाब में जीत की सम्भावना सबसे ज्यादा दिख रही थी, पर जिस तरह से प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के दो गुटों में जंग छिड़ी है, उससे कांग्रेस पार्टी का सपना चकनाचूर भी हो सकता है. किसी भी दल में मतभेद होना सामान्य बात है. अंदरूनी खींचातानी भी चलती रहती है. पर जब एक महत्वपूर्ण चुनाव सिर्फ सात महीने दूर हो तो उम्मीद की जाती है कि सभी नेता अपने आपसी मतभेद भुला कर पार्टी हित में एक जुट हो जायेंगे. पर पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के बीच आर-पार की लड़ाई शुरू हो गयी है, जो कांग्रेस पार्टी के लिए घातक साबित हो सकता है.

दो गुटों में छिड़ गई है लड़ाई
जहां सिद्धू लगातार अमरिंदर सिंह पर हमले तेज करते जा रहे हैं, वहीं मुख्यमंत्री ने चार मंत्रियों का एक गुट बनाया है जिसे सिद्धू पर पलटवार करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है. ये मंत्री हैं बलबीर सिद्धू, विजय इन्दर सिंगला, भरत भूषण और गुरप्रीत सिंह कांगड़. खबर है कि सिद्धू भी अब अपनी फौज बनाने में जुट गए हैं, जिसमे कैप्टन सिंह से नाराज कांग्रेसी विधायक और नेता शामिल होंगे. यानी जो लड़ाई अभी तक दो बड़े नेताओं के बीच थी, अब वह दो गुटों के बीच की लड़ाई बनने वाली है.

सिद्धू और अमरिंदर सिंह के बीच पुरानी रंजिश है
सिद्धू और कैप्टन सिंह के बीच मतभेद काफी पुराना है. दो वर्ष पहले सिद्धू ने मंत्रीमंडल से त्यागपत्र दे दिया था, क्योंकि मुख्यमंत्री ने सिद्धू से कुछ महत्वपूर्ण मंत्रालय छीन लिए थे. सबसे दुखद बात है कि कांग्रेस पार्टी, चाहे वह राष्ट्रीय स्तर पर हो या प्रदेश स्तर पर, मूक दर्शक बन कर बैठी हुई है. उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, जिनके जिम्मे पंजाब है, ने दोनों के बीच सुलह कराने की थोड़ी कोशिश की थी पर लगता है कि रावत ने हार मान ली है. समझा जा रहा है कि रावत की रुचि पंजाब के साथ-साथ होने वाले उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में ज्यादा है और वह पंजाब की जगह दिल्ली और देहरादून में ज्यादा व्यस्त हैं.

कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को दोनों नेताओं में सुलह कराना चाहिए
ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए थी कि कांग्रेस के आलाकमान दोनों नेताओं को दिल्ली तलब करें और गाँधी परिवार दोनों में सुलह करवाए. पर पार्टी को कोरोना और कृषि कानूनों की राजनीति से फुर्सत मिले तब तो पंजाब की बारी आए. कांग्रेस आलाकमान का सारा फोकस सिर्फ 2024 में राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री बनाने पर है. कैप्टन सिंह और सिद्धू के बीच मध्यस्थता कर पार्टी अपना कीमती समय जाया नहीं करना चाहती.

पार्टी को पुरानी गलतियों से सबक लेने की जरूरत
कांग्रेस पार्टी ने पांच राज्यों के हार के कारणों को पता लगाने के लिए एक कमिटी का गठन कर दिया है, जो एक खानापूर्ति के अलावा कुछ नहीं है. अगर सबक सीखने की इच्छा होती तो कांग्रेस पार्टी पंजाब के पड़ोसी राज्य हरियाणा में हुए 2019 विधानसभा चुनाव से सबक ले लेती. हरियाणा में भी पार्टी कई गुटों में बंटी हुई थी, जो सिर्फ एक दूसरे के खिलाफ लड़ने में व्यस्त थी. चुनाव की घोषणा के बाद पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने सभी गुटों के नेताओं को दिल्ली बुलाया, सुलह करायी, पर तब तक काफी देर हो चुकी थी. हाँ, इतना तो ज़रूर साफ़ हो गया था कि हरियाणा में अगर आतंरिक कलह को समय रहते सुलझा लिया गया होता तो वहां शायद कांग्रेस की सरकार होती.

कांग्रेस ने ठोस कार्रवाई नहीं की तो हाथ से फिसल जाएगा पंजाब
अगर पार्टी यह मानती है कि कैप्टन सिंह और सिद्धू के बीच सुलह-समझौता नहीं हो सकता तो फिर उसे कोई कठोर कदम उठाना चाहिए, ताकि यह लड़ाई पार्टी की हार का कारण ना बन जाए. सिद्धू की बयानबाज़ी पार्टी को खोखला बनाती रहेगी. प्रतीत ऐसा होता है कि जब 2017 के विधानसभा चुनाव के पूर्व राहुल गाँधी सिद्धू को कांग्रेस पार्टी में ले कर आये थे तो कुछ ऐसा वादा किया था जिसे अब वह पूरा करने की स्थिति में नहीं है. शायद यही कारण हो सकता है गाँधी परिवार की चुप्पी का.

पंजाब में कांग्रेस पार्टी यह मान कर चल रही है कि सिद्धू या तो आम आदमी पार्टी में शामिल हो जाएंगे या फिर वापस भारतीय जनता पार्टी में चले जायेंगे. अगर कांग्रेस पार्टी में सिद्धू को रोकने की क्षमता या इच्छा शक्ति नहीं है तो बेहतर यही होगा कि सिद्धू से समय रहते छुटकारा पा लें, क्योंकि जितनी देरी होगी कांग्रेस पार्टी पंजाब में उतनी ही कमजोर होती चली जायेगी.


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