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दार्जिलिंग की मशहूर चाय
ज्योतिर्मय रॉय।
2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में दार्जिलिंग, कुर्सियांग, सिलीगुड़ी, कूचबिहार क्षेत्र में बीजेपी के उम्मीदवार जीतने के बाद से ही इन पहाड़ों में तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी कार्यकर्ताओं में टकराव का माहौल बना हुआ है. केन्द्र-राज्य के तनाव पूर्ण संपर्क के कारण मशहूर दार्जिलिंग चाय की चमक कम पड़ती जा रही है. राज्य और केंद्र की उदासीनता का लाभ उठाते हुए कुछ बेईमान व्यापारी नेपाल से आयात सस्ती चाय को दार्जिलिंग चाय के साथ मिलाकर बाजार में बेच रेह हैं. इस मिलावटी चाय को मशहूर दार्जिलिंग चाय कहकर निर्यात भी किया जा रहा है. इसी मिलावट के कारण दार्जिलिंग चाय देश और अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी प्रतिष्ठा खोती जा रही है.
अगर आप "चायों की शैम्पेन" कही जाने वाली पश्चिम बंगाल राज्य के मशहूर दार्जिलिंग चाय के शौकीन हैं तो सतर्क हो जाइए, क्योंकि दार्जिलिंग चाय के नाम से जो चाय आप खरीद रहे हैं वह दरअसल सस्ती नेपाली चाय है, जो दार्जिलिंग चाय के साथ मिलाकर बाजार में बेची जा रही है. आप पैसा तो खर्च कर रहे हैं, लेकिन मिलावटी चाय में दार्जिलिंग चाय के स्वाद और खुशबू दोनों से वंचित हो रहे हैं. इसी मिलावट के कारण दार्जिलिंग चाय देश और अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी प्रतिष्ठा खोती जा रही है. इसका खामियाजा देश के चाय उद्योग को भुगतना पड़ रहा है. दार्जिलिंग चाय दुनिया की सबसे महंगी चायों में से एक है.
मजबूत भौगोलिक संकेतों, चाय प्रसंस्करण इकाइयों में भारी निवेश, निरंतर नवाचार, संवर्धित उत्पाद मिश्रण और रणनीतिक बाजार विस्तार के कारण भारतीय चाय दुनिया में बेहतरीन है. मुख्य चाय उगाने वाले क्षेत्र असम और पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग जिला और डूआर क्षेत्र हैं. दक्षिण भारत में नीलगिरी में भी चाय बड़े पैमाने पर उगाई जाती है. भारत चाय का दुनिया के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है, देश के कुल उत्पादन का लगभग तीन-चौथाई भाग स्थानीय स्तर पर खपत होता है.
दार्जिलिंग में 19,000 हेक्टर क्षेत्र में फैला हुआ कुल 87 चाय के बगीचे हैं, जो औसतन प्रतिवर्ष 90 लाख किलोग्राम चाय का उत्पादन करते हैं. उत्तर बंगाल की बात करें तो छोटे-बड़े मिलाकर 1375 से अधिक चाय के बगीचे हैं. दार्जिलिंग में चाय कि पैदावार का सीज़न मार्च से अक्टूबर के महीने का होता है.
भारत से चाय निर्यात
FY19 में कुल चाय निर्यात 830.90 मिलियन यूएस डॉलर और FY20 में 826.47 मिलियन यूएस डॉलर था.
भारत चाय निर्यात के मामले में केन्या (पड़ोसी अफ्रीकी देशों सहित), चीन और श्रीलंका के बाद चौथे स्थान पर है.
2019 तक, भारत 1,339.70 मिलियन किलोग्राम उत्पादन के साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक था.
अप्रैल 2021 में, भारत में अनुमानित चाय उत्पादन 73.44 मिलियन किलोग्राम था.
अप्रैल 2020 से मार्च 2021 तक कुल चाय का निर्यात 755.86 मिलियन अमेरिकी डॉलर था और मार्च 2021 के लिए यह 53.35 मिलियन अमेरिकी डॉलर था.
अप्रैल 2021 में चाय का निर्यात 49.73 मिलियन अमेरिकी डॉलर था.
देश में सीटीसी चाय, रूढ़िवादी चाय, हरी चाय और जैविक चाय सहित कई प्रकार की चाय हैं. कई अन्य चाय उत्पादक और निर्यात करने वाले देशों के विपरीत, भारत में ग्रीन टी के अलावा सीटीसी और रूढ़िवादी चाय दोनों के लिए एक विनिर्माण आधार है.
भारत दार्जिलिंग, असम ऑर्थोडॉक्स और उच्च श्रेणी की नीलगिरी जैसी उच्च गुणवत्ता वाली विशेष चाय प्रदान करता है, जिसमें एक विशिष्ट सुगंध, ताकत, रंग और स्वाद होता है.
नेपाली घटिया चाय को दार्जिलिंग चाय बनाकर बेचा जा रहा है.
कुछ बेईमान व्यापारी द्वारा पश्चिम बंगाल में नेपाल से आयात किए गए अपेक्षाकृत घटिया क्वॉलिटी और सस्ती नेपाली चाय को दार्जिलिंग चाय के साथ मिलाकर मिलावटी दार्जिलिंग चाय बनाया जा रहा है और देश के कोने-कोने में भेजा जा रहा है. केवल यही नहीं, कुछ व्यापारी इन मिलावटी दार्जिलिंग चाय को निर्यात भी कर रहे हैं. इस मिलावट के कारण दार्जिलिंग चाय की स्वाभाविक खुशबू और स्वाद में आए अंतर के कारण बाजार में दार्जिलिंग चाय की मांग और लोकप्रियता घटने लगी है.
चाय कारोबारियों ने लिखा श्रम मंत्री को पत्र
हाल ही में पश्चिम बंगाल के चाय बागीचों के मालिकों ने इस मिलावटी कारोबार से परेशान होकर पश्चिम बंगाल के श्रममंत्री बेचाराम मान्ना को एक पत्र लिखकर इस मिलावटी व्यवसाय के कारण चाय उद्योग और इससे जुड़ें श्रमिकों और कर्मचारियों के भविष्य पर चिंता व्यक्त की है. केवल यही नहीं, चाय बागीचों के मालिकों के विभिन्न संगठनों ने इस विषय को लेकर केन्द्रीय सरकार की उदासीनता पर भी सवाल उठाए है.
राज्य और देश के पारंपरिक चाय उद्योग के हितों को ध्यान में रखते हुए बंगाल के श्रम मंत्री चाहते हैं कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस मामले में हस्तक्षेप करें.
श्रम मंत्री बेचाराम मान्ना ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लिखा पत्र
इसके लिए बेचाराम मान्ना ने केंद्र की उदासीन भूमिका का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री को एक विस्तृत पत्र भी भेजा. मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में बेचाराम मान्ना ने कहा कि चाय बोर्ड के अनुसार 2009 में भारत-नेपाल मुक्त व्यापार समझौते ने उस देश से मुफ्त में चाय आयात करना संभव बना दिया. नेपाल ने 2017-18 से शुरू होकर अगले तीन वित्तीय वर्षों में 60.35 मिलियन किलोग्राम चाय का आयात किया है. लेकिन 23.43 मिलियन किलोग्राम चाय का पुन: निर्यात किया गया है. यानि शेष 36.92 मिलियन किलो भारत में ही बेचा गया और इस्तेमाल किया गया.
नेपाल से आयात इन चाय की उचित सरकारी पर्यवेक्षण के अभाव में आयात, विपणन, पैकेजिंग और लेबलिंग से संबंधित विभिन्न नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है. इस अवसर का लाभ उठाकर, बेईमान व्यापारियों का एक वर्ग अतिरिक्त लाभ कमाने के लिए निम्न गुणवत्ता संपन्न और सस्ती नेपाली चाय का उपयोग कर रहा है. मिलावट के कारण दार्जिलिंग की चाय की प्रतिष्ठा नष्ट हो रही है और इससे दार्जिलिंग चाय की मांग पर असर पड़ रहा है.
मिलावटी चाय से लोगों को बचाना होगा
चाय उद्योग से जुड़े संस्थाओं ने सरकार को सूचित किया कि घटती मांग के कारण आने वाले दिनों में इस उद्योग से जुड़े कर्मचारी और श्रमिकों कि छंटाई का खतरा है, जिसके कारण श्रमिकों में असंतोष फैल सकता है. केन्द्र-राज्य के तनाव पूर्ण संपर्क के कारण मशहूर दार्जिलिंग चाय की चमक धूमिल होती जा रही है. राज्य और केंद्र की उदासीनता का लाभ उठाते हुए कुछ बेईमान व्यापारी नेपाल से आयात सस्ती चाय को दार्जिलिंग चाय के साथ मिलाकर बाजार में बेचा जा रहा है. इस मिलावटी चाय को मशहूर दार्जिलिंग चाय कहकर निर्यात भी किया जा रहा है. बीजेपी का आरोप है कि इन बेईमान व्यापारियों को राज्य में तृणमूल कांग्रेस का राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है.
केंद्र और राज्य के तनावपूर्ण राजनीतिक कारणों का लाभ उठाते हुए कुछ व्यापारी मिलावटी व्यवसाय के माध्यम से चांदी काट रहे हैं. समय रहते राज्य और केन्द्र सरकार अगर नेपाल से आने वाली चाय के आयात, गुणवत्ता और उपयोग पर नियंत्रण नहीं किया गया तो विदेश में भारत के चाय के निर्यात में बड़ा झटका लग सकता है, जो राज्य और केन्द्र की अर्थव्यवस्था के लिए शुभ नहीं है.
गंभीर बिमारियों को न्यौता है मिलावटी चाय
यह केंद्र सरकार का उत्तरदायित्व है कि निर्यात योग्य सभी चीजों कि गुणवत्ता को सख्ती से जांचा परखा जाए, अन्यथा निर्यात पर इसका कुप्रभाव पड़ेगा और इसके साथ-साथ देश की छवि को भी धक्का पहुंचेगा.
देश में फैले खाद्य द्रव्य की गुणवत्ता और मिलावट की जांच ना के बराबर है. सरकार की इस उदासीनता के कारण मिलावटखोर व्यापारियों की चांदी हो रही है, वहीं खाद्य द्रव्य में मिलावट के कारण आम लोग विभिन्न रोगों का शिकार हो रहे हैं. सरकार आम जनता के स्वास्थ के नाम पर करोड़ों रुपए खर्चा कर रही है, लेकिन सरकार मिलावट के विरोध में कोई भी कार्रवाई करते नहीं दिखती है.
देश की जनता महंगाई से त्रस्त है ऊपर से खाने की चीजों में मिलावट के कारण बढ़ती बीमारियों ने आम जनता का जीवन नरक बना दिया है. इस मिलावट के कारण कैंसर की बीमारी समाज में तेजी से फैल रही है. 2028 में हर घर में कम से कम एक कैंसर रोगी होने की चेतावनी चिकित्सा जगत पहले ही दे चुकी है. इन हालातों में, क्या सरकार व्यापारियों की भोंपू बनकर रहेंगी, या आम जनता के स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए इन मिलावटखोरों के खिलाफ़ अभियान भी छेड़ेगी!
Gulabi
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