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कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) की पंजाब (Punjab) के मुख्यमंत्री पद से छुट्टी और चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) के नए मुख्यमंत्री के रूप में निर्वाचन के बाद जो बात स्पष्ट रूप से सामने आयी है
अजय झा कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) की पंजाब (Punjab) के मुख्यमंत्री पद से छुट्टी और चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) के नए मुख्यमंत्री के रूप में निर्वाचन के बाद जो बात स्पष्ट रूप से सामने आयी है वह यह है कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ही कांग्रेस पार्टी (Congress Party) के सर्वेसर्वा हैं, और सोनिया गांधी सिर्फ नाम मात्र की ही कांग्रेस अध्यक्ष रह गयी हैं. कांग्रेस पार्टी के लिए यह कोई नई बात नहीं है. बस इतिहास ने अपने आप को दोहराना शुरू कर दिया है. राहुल गांधी भले ही अपने पिता राजीव गांधी की दुहाई देते दिखते हैं, लेकिन उनकी हरकतों को देख कर लगता तो ऐसा है कि वह अपने चाचा संजय गांधी की राह पर चल पड़े हैं.
1974 से 1980 के बीच संजय गांधी कांग्रेस पार्टी के बेताज बादशाह थे. पार्टी और केंद्र सरकार की मुखिया भले ही इंदिरा गांधी होती थीं, पर इंदिरा गांधी की भी हिम्मत नहीं होती थी कि वह संजय गांधी की बात काट पाएं. संजय गांधी को सरकार या पार्टी में कोई पद प्राप्त नहीं था, उसकी जरूरत भी नहीं थी क्योंकि सब कुछ उनके इशारे पर ही चलता था. संजय गांधी के नाम के साथ Extra Constitutional Authority शब्द जुड़ गया था. ठीक अपने चाचा की तरह राहुल गांधी के पास भी अधिकारिक तौर पर कोई पद नहीं है, पर कांग्रेस पार्टी उनके इशारों पर ही चलती है. संजय गांधी की ही तरह राहुल गांधी को भी चाटुकारों से घिरे रहना पसंद है. चाहे कोई कितना भी सीनियर नेता क्यों ना हो, सभी को संजय गांधी के समक्ष नतमस्तक होना पड़ता था. जिसने ऐसा करने से इनकार किया या तो वह इमरजेंसी में जेल की हवा खाते नज़र आया या फिर उसे पार्टी छोड़नी पड़ी, भले ही वह उनके नाना जवाहरलाल नेहरु के ज़माने के नेता क्यों ना हों.
सिद्धू के सिर पर राहुल गांधी का हमेशा से हाथ था
अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटा कर राहुल गांधी ने भी यह सन्देश दे दिया है कि उनके पिता के करीबियों को भी उनके सामने नतमस्तक होना ही पड़ेगा, अगर किसी ने ऐसा नहीं किया तो उसका भी वही हश्र होगा जो अमरिंदर सिंह, जोकि उनके पिता के स्कूल के ज़माने के दोस्त थे, का हुआ है. अगर पूरे कांग्रेस पार्टी पर नज़र डालें तो सिर्फ एक ही ऐसा नेता दिखता है जो राहुल गांधी के सामने अभी भी नतमस्तक होने से इनकार कर रहा है. वह हैं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत. अगर गहलोत ने अमरिंदर सिंह मसले से कोई सबक नहीं सीखा तो उनका भी ऐसा ही कुछ हाल होगा.
दूसरी बात जो स्पष्ट हुई है वह है कि पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू राहुल गांधी की शह पर ही अमरिंदर सिंह पर लगातार गोले दागते रहे थे. और तीसरी बात, राहुल गांधी के अहम् के सामने पार्टी हित का कोई स्थान नहीं है. चुनाव से चार महीने पहले किसी मुख्यमंत्री को हटाना कम से कम यही दर्शाता है.
चन्नी को मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस पंजाब में दलितों को कितना लुभा लेगी
सिद्धू की तरह अमरिंदर सिंह ने कभी भी राहुल गांधी को अपना नेता नहीं माना. राहुल गांधी-प्रियंका गांधी-सिद्धू की तिकड़ी को सफलता तो मिल गयी, पर क्या अमरिंदर सिंह को हटाने से कांग्रेस पार्टी चुनाव में भी सफल हो पाएगी? इतना तो तय है कि चन्नी एक मुख्यमंत्री कम और कठपुतली ज्यादा दिखेंगे जिसकी डोर सिद्धू के हाथों में होगी, और सिद्धू की डोर राहुल गांधी के हाथों में. अभी तक अमरिंदर सिंह की वकालत करते कांग्रेस पार्टी के प्रदेश प्रभारी हरीश रावत ने भी अमरिंदर सिंह का साथ छोड़ दिया और कह डाला कि आगामी चुनाव सिद्धू के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. रावत करते भी तो क्या करते, उन्हें पंजाब के साथ-साथ होने वाले अपने गृह प्रदेश उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी भी तो चाहिए, जो तब ही संभव है अगर राहुल गांधी का उनके सर पर आशीर्वाद रहा तो. चन्नी को भी पता होगा कि अगर कांग्रेस पार्टी चुनाव जीतने में कामयाब रही तो पंजाब के अगले मुख्यमंत्री सिद्धू ही होंगे. चन्नी का मुख्यमंत्री के तौर पर एक ही प्रयोजन है, उनके जरिए पंजाब के दलितों को लुभाना.
राहुल गांधी को अब कांग्रेस की कमान अपने हाथों में ले लेनी चाहिए
सवाल यह है कि अगर राहुल गांधी को अमरिंदर सिंह को पद से हटाना ही था और सिद्धू को ही पंजाब में सर्वोच्च नेता बनाना था तो फिर राहुल गांधी ने यह काम पहले क्यों नहीं किया? सिद्धू और अमरिंदर सिंह की लड़ाई काफी समय से चल रही थी. सिद्धू को पार्टी या सरकार की कमान पहले भी दी जा सकती थी. एकमात्र सम्भावना यही है कि राहुल गांधी अब नींद से जाग गए हैं और उन्होंने ठान ली है कि अभी नहीं तो कभी नहीं का समय आ गया है. अमरिंदर सिंह को पद से हटाने के बाद पंजाब चुनाव में एक नाटकीय मोड़ जरूर आया है पर यह उम्मीद करना कि सिद्धू और चन्नी अगले चार महीनों में कोई चमत्कार कर देंगे, कुछ ज्यादा ही आशावादी होने जैसा है. अगर नयी टीम को पहले ही सामने लाया गया होता तो शायद कांग्रेस पार्टी की चुनाव में स्थिति बेहतर हो सकती थी.
लगता है कि राहुल गांधी को चुनाव में क्या परिणाम होगा उसमें कोई खास दिलचस्पी नहीं है. उनके नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी लगातार इतनी बार चुनाव हार चुकी है कि राहुल गांधी पर अब पराजय का कोई प्रभाव नहीं पड़ता. पार्टी चुनाव बेशक हार जाए पर उन्हें सर्वोच्च नेता के रूप में सभी को स्वीकार करना ही होगा. सवाल यह भी है कि अगर राहुल गांधी को ही पार्टी चलानी है तो यह उनके हित में होगा कि सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ दें और राजनीति से सन्यास ले लें. स्वास्थ्य कारणों से सोनिया गांधी सालों से वैसे भी राजनीति में सक्रिय नहीं है. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को उनके हाल पर छोड़ना भाई-बहन की जोड़ी के भविष्य के लिए ही अच्छा होगा. अगर राहुल गांधी को स्वाभाविक तौर पर नेता के रूप में स्वीकार कर लिया गया तो उनकी स्थिति मजबूत हो जाएगी, और अगर ऐसा नहीं हुआ तो कम से कम कांग्रेस पार्टी पूर्ण रूप से डूबने से तो बच ही जायेगी.
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