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हिंदुस्तान के लिए रोजगार एक बड़ी समस्या है. बेरोजगारी का आलम यह है
संयम श्रीवास्तव हिंदुस्तान के लिए रोजगार एक बड़ी समस्या है. बेरोजगारी का आलम यह है कि अब आगामी चुनावों में भी यह एक बड़ा मुद्दा बनने वाला है. लेकिन जब कुछ राज्य सरकारें रोजगार को लेकर बेढंगे कानून बनाने लगती हैं तो यह समस्या और भी भयावह हो जाती है. ऐसा ही कानून हरियाणा सरकार ने बनाया है. और अब उसमें अधिसूचना जारी की गई है कि अगले वर्ष 15 जनवरी से निजी क्षेत्र के नौकरियों में 75 फ़ीसदी हरियाणा वालों को आरक्षण मिलेगा. मनोहर लाल खट्टर का यह कदम पूरी तरह से एक राजनीतिक कदम है. सरकारे ऐसा कदम तब उठाती हैं, जब प्रदेश में वह ढंग से काम नहीं करतीं. जब उन्हें लगता है कि अब चुनाव जीतने का कोई रास्ता नहीं बचा तो इस तरह के बेढंगे कानून बना देती हैं.
दरअसल यह कानून साल 2020 में पारित हुआ था. इसके बाद राज्य के उद्यमियों के साथ इस पर चर्चा की गई और अधिसूचना में कुछ संशोधन किए गए. जिसमें वेतन की सीमा को 5,0000 की सीमा से घटाकर 30,000 कर दिया गया. और स्थानीय निवास की अवधि 15 वर्ष से कम करके 5 वर्ष कर दी गई. इससे हुआ यह कि उद्यमियों पर जो स्थानीय लोगों को रोजगार देने का बहुत ज्यादा दबाव था, वह थोड़ा कम हो गया. लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि खट्टर सरकार का यह कानून 'हरियाणा स्टेट एंप्लॉयमेंट ऑफ लोकल कैंडीडेट्स एक्ट 2020', देश में कहीं भी रहने की आजादी के अधिकार और कोई भी पेशा या रोजगार चुनने जैसे बुनियादी संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.
खट्टर सरकार का यह कानून हरियाणा से उद्योग को ही स्थानांतरित कर देगा
सबसे बड़ा सवाल है कि खट्टर सरकार का यह कानून क्या हरियाणा के हित में है. या फिर इससे हरियाणा को और भी ज्यादा नुकसान होने वाला है. क्योंकि जब आप कंपनियों पर इस तरह का दबाव बनाते हैं तो कंपनियां फिर स्थानांतरण की ओर सोचने लगती हैं. अब तो खबर यह भी आने लगी है कि गुड़गांव के तमाम बुनियादी कारोबार यानि आईटी और आईटीईएस कंपनियां अब अपना बोरिया बिस्तर गुड़गांव से समेटकर दिल्ली और नोएडा की ओर स्थानांतरण करने पर विचार कर रही हैं.
बड़े बड़े वाहन कारखाने और उनके पार्ट्स बनाने वाले नेटवर्क भी हरियाणा के औद्योगिक गतिविधियों का दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र हैं. लेकिन इस कानून की वजह से अब वह भी अपने नए निवेश के लिए स्थानांतरण का रास्ता अपना सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो फिर यह खट्टर सरकार के इस नए कानून का सबसे बड़ा फैलियर होगा. क्योंकि ना तो यह कानून हरियाणा के लोगों को संतुष्ट कर पाएगा और ना ही उद्योग जगत को.
खट्टर सरकार के एक फैसले से चली जाएगी हजारों की नौकरी
खट्टर सरकार का यह फैसला पूरी तरह से उस हिंसात्मक जाट आंदोलन से जुड़ा है, जिसकी चर्चा पूरे देश में थी. मनोहर लाल खट्टर के पहले कार्यकाल में ही सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर जाटों ने बड़ा आंदोलन किया था. जिसके बाद जाट और 5 अन्य जातियों को सरकारी नौकरियों में 10 फ़ीसदी आरक्षण देने की बात कही गई. लेकिन मामला अभी तक अदालती निर्देश के कारण बीच में ही लटका हुआ है. अब खट्टर सरकार ने निजी क्षेत्रों में 70 फ़ीसदी हरियाणा वालों को आरक्षण देकर इसी गैप को भरने की कोशिश की है.
लेकिन शायद मनोहर लाल खट्टर यह भूल गए हैं की उनके इस फैसले से उन तमाम लोगों पर क्या बीतेगी जो दशकों से हरियाणा में रहकर अपनी रोजी-रोटी चला रहे हैं. हरियाणा के आईटी और विनिर्माण उद्योग में ज्यादातर बाहर के लोग नौकरी करते हैं. इनमें पूर्वोत्तर भारत के ज्यादातर लोग हैं. इस कानून के आने से एक ही झटके में इन तमाम लोगों के रोजगार पर तलवार चल सकती है.
हरियाणा को इंस्पेक्टर राज की तरफ ले जाएगा यह नया कानून
हरियाणा सरकार के इस नए कानून के मुताबिक यह कानून नियोक्ताओं को अनुमति देता है कि वह गैर स्थानीय कर्मचारियों को नियुक्ति दे सकते हैं, बशर्ते की उसी काम के लिए समान एक्सपीरियंस वाले स्थानीय युवा उपलब्ध ना हों. लेकिन समस्या यह है कि इस काम के लिए रियायत एक निर्धारित अधिकारी दे सकता है और अगर नियोक्ता इसका अनुपालन नहीं करता है, तो उस पर 10,000 से लेकर 50,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. और अगर इस कानून का उल्लंघन बराबर जारी रहा तो हर दिन अतिरिक्त जुर्माना लगेगा. यानि कि सब कुछ एक अधिकारी के हाथ में होगा और बिना उसकी अनुमति के किसी गैर स्थानीय युवा को नौकरी नहीं मिलेगी. इन बातों पर गौर करें तो यह बिल्कुल इंस्पेक्टर राज की तरफ संकेत करते हैं.
किसी के काम नहीं आएगा यह कानून
खट्टर सरकार का यह नया रोजगार कानून किसी के काम नहीं आने वाला है. दरअसल हरियाणा में 30,000 से नीचे तक की नौकरियां ज्यादातर बाहरी लोग किया करते हैं. क्योंकि हरियाणा के स्थानीय लोग 15 हजार 20 हजार की नौकरियां करते कम ही नजर आते हैं. क्योंकि गुड़गांव, फरीदाबाद जैसे इलाकों में 10,000 से लेकर 30,000 तक की ज्यादातर नौकरियां बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के लोग करते हैं. जब यह कानून बना था और वेतन की सीमा 50,000 तक निर्धारित थी तब यह कुछ हद तक हरियाणा वालों के लिए कारगर था. लेकिन अब इसे घटाकर 30000 तक कर देने की वजह से कंपनियों के लिए मुसीबत खड़ी हो जाएगी. क्योंकि 30,000 में हरियाणा के लोग सिक्योरिटी गार्ड, क्लर्क, प्यून जैसी नौकरियां तो करेंगे नहीं और कानून की वजह से कंपनियां बाहर के लोगों को रख नहीं सकती हैं. ऐसे में खट्टर सरकार का यह नया कानून ना तो हरियाणा वालों के लिए मुफीद है और ना ही बाहरियों के लिए.
कितने लोगों को पास है स्थानीय निवास प्रमाण पत्र
हरियाणा सरकार ने कानून में संशोधन कर स्थानीय निवास की अवधि 15 वर्ष से घटाकर 5 वर्ष कर दी है. लेकिन सवाल उठता है कि जो बाहर के लोग बीते 5 वर्ष या उससे ज्यादा समय से हरियाणा में रहकर नौकरी कर रहे हैं. क्या उनके पास हरियाणा का स्थानीय निवास प्रमाण पत्र, वोटर आईडी कार्ड, आधार कार्ड या राशन कार्ड हैं. यह आप भी जानते हैं कि लोग रोजगार के लिए भले ही अपने राज्य से दूसरे राज्य में प्रवेश कर जाते हैं. लेकिन उनके डॉक्यूमेंट अपने ही राज्य के होते हैं. बहुत कम लोग ही अपने डाक्यूमेंट्स बनवा पाते हैं. ऐसे में हरियाणा सरकार की रियायत भी उन लोगों को काम नहीं आएगी जो बीते 5 वर्षों या उससे अधिक समय से हरियाणा में रह रहे हैं.

Rani Sahu
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