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- सौहार्द के सूत्र
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। देश में जातीय ओर सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ाने के लिए हम सभी भारतीय को अपने राष्ट्रीय मूल कर्तव्य पूरे करने होंगे और साथ मिल कर कदम उठाने होंगे। इसके लिए हमे अपने समाज अपने शहर को ही देश का एक छोटा प्रारूप मानना होगा, क्योंकि शहर और समाज में सौहार्द बढ़ेगा तो देश मे सौहार्द बढ़ेगा। इसके लिए जाती, धर्म के नाम पर भड़काने वाले हर व्यक्ति से दूर रहना होगा। हमें अपने आसपास में रहने वाले अपने मित्र, पड़ोसी से अच्छे व्यवहार रखने होंगे। हमारी संस्कृति ही हमें 'वसुधैव कुटुंबकम' जैसे महान ओर सौहार्दपूर्ण आचरण का पाठ पढ़ाती है। किसी व्यक्ति की लिए कोई राय उसकी जाति, धर्म, रंग, नस्ल के आधार पर नही बनाएंगे। शांति और सौहार्द बिगाड़ने वाली कोई घटना होने पर हमें उसका दोष धर्म, जाति को न देकर उन असामाजिक तत्त्वों को देना होगा और पुलिस को उन पर कड़ी कार्रवाई करनी होगी।
संदेश के बरक्स
कोरोना की दहशत से दुनिया उबर नहीं पाई है। निश्चित रूप से ऐसे में कोई लापरवाही जिंदगी के लिए घातक हो सकती है। बार-बार सरकारी चेतावनियों के बावजूद कुछ लोग अनदेखी पर आमादा हैं। त्योहारी मौसम में बाजारों की भीड़ खतरनाक नतीजे की ओर इशारे करती है। देखा जाए तो आम लोगों से ज्यादा सरकार परेशान है जो संक्रमण के खिलाफ लड़ाई में लगातार लगी है। लोगों को जागरूक करने के हर तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
इस महामारी के खिलाफ मोबाइल ट्यून से आते कोरोना संदेश का भी खासा महत्त्व है। लेकिन यह बात भी काफी हद तक सही है कि मोबाइल पर बार-बार कोरोना संदेश का आना खीझ पैदा करता है। आज के वक्त में मोबाइल आकस्मिक जरूरतों का हिस्सा बन चुका है। ऐसे में किसी अतिआवश्यक संदेश के लेन-देन में पल भर की देरी भी असहनीय हो सकती है। चंद पलों की देरी किसी बड़े हादसे या फिर किसी की जान जाने की वजह बन सकती है। लिहाजा सरकार को संदेश के महत्त्व और मोबाइल की आवश्यकता के बीच सामंजस्य बिठाना होगा, ताकि किसी आवश्यक सूचना की आवाजाही में रुकावट भारी न पड़ जाए।