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सम्पादकीय
Hardik Patel Resigned : हार्दिक पटेल के इस्तीफे ने कांग्रेस पर तो नहीं हैं, लेकिन मौजूदा राजनीति पर कई सवाल उठा दिए हैं
Gulabi Jagat
18 May 2022 8:45 AM GMT
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हार्दिक पटेल का इस्तीफा
अखिलेश अखिल |
गुजरात विधान सभा चुनाव (Gujarat Assembly Election) से मात्र छह महीने पहले गुजरात कांग्रेस (Gujarat Congress) को पार्टी के युवा नेता हार्दिक पटेल (Hardik Patel) ने इस्तीफा देकर झटका दिया है. हर जगह आज इसी की चर्चा है. समाचार पत्रों से लेकर टीवी और डिजिटल प्लेटफार्म पर हार्दिक के इस्तीफे की अलग -अलग कहानी परोसी जा रही है. लेकिन एक खबर कही नहीं दिख रही है कि कांग्रेस का गुजरात इकाई इस पर मौन क्यों है? सूबे के कोंग्रेसी नेता मौन क्यों हैं और सबसे बड़ी बात कि गांधी परिवार के लोग हार्दिक के इस्तीफे से आहत है या नहीं? फिर इस खबर का दूसरा पक्ष ये भी है कि क्या हार्दिक के इस्तीफे से वाकई गुजरात कांग्रेस को झटका लगेगा? क्या हार्दिक पटेल के बीजेपी में जाने की संभावना से बीजेपी को कोई बड़ा लाभ मलेगा? और क्या हार्दिक के चले जाने से गुजरात में कांग्रेस का भविष्य ही दांव पर लग गया? ऐसे और भी बहुत सारे सवाल हो सकते हैं जिसके उत्तर आने वाले समय में मिलेंगे और गुजरात के चुनाव में इसके असर भी दिखेंगे.
लेकिन सबसे अहम बात तो यही है कि हार्दिक की पार्टी छोड़ने की रुदाली क्या अन्य उन नेताओं की रुदाली से भिन्न है जिन्होंने पिछले वर्षों और महीनो में कांग्रेस को छोड़ा है और बीजेपी समेत कई और पार्टियों का हाथ थामा है. क्या हार्दिक के आरोप दूसरे नेताओं से भिन्न हैं जिन्होंने कांग्रेस में स्थापित होकर कांग्रेस को कबाड़ा साबित करने में देरी नहीं की. इस पर भी मंथन करने की जरूरत है. सच तो यही है हार्दिक कांग्रेस नहीं हैं. कोई व्यक्ति किसी पार्टी का भविष्य नहीं होता. किसी भी पार्टी में किसी भी नेता और व्यक्ति की भूमिका अहम हो सकती है लेकिन किसी भी पार्टी की निर्भरता केवल उसी व्यक्ति पर नहीं होती जिसकी भूमिका अक्सर समाज और मीडिया निर्धारित करता रहता है.
ऐसे में हार्दिक द्वारा पार्टी छोड़ने के ऐलान को कोई बड़ी घटना के रूप में देखने की जरूरत मौजूदा कांग्रेस नहीं मान सकती. ऊपर से देखने में यह सब कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा सकता है लेकिन कांग्रेस तो पिछले कई सालों से ऐसी घटनाओं की शिकार है और आदी भी. कई लोग मान रहे हैं कि उदयपुर चिंतन शिविर में कांग्रेस को मजबूत करने की कसमें खाई गई थी ,कई तरह के प्लान बनाये गए थे और बीजेपी को टक्कर देने के लिए कई रणनीतियों पर बात हुई थी. और उसके बाद गुजरात का यह एपिसोड कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है लेकिन वाकई क्या ऐसा कांग्रेस मानती है ? क्या राहुल गांधी और सोनिया गांधी ऐसा मानते हैं ? शायद नहीं.
नेताओं की ऐसी गतिविधियां चलती ही रहती हैं
गुजरात में हार्दिक ने अभी जो किया है वही खेल तो पंजाब में जाखड़ भी कर गए हैं. हो सकता है आगे कुछ और नेता भी करें. सिद्धू जैसे नेता भी करें. इसमें कोई पार्टी क्या कर सकती है. बीजेपी के इतिहास पर भी गौर करें तो इस तरह की घटनाएं आपको मिलती जाएंगी. दर्जनों नेताओं ने बीजेपी का त्याग किया. दर्जनों नेताओं ने सपा ,बीएसपी और वाम दलों का त्याग किया है और आगे भी करते रहेंगे. यह सब राजनीतिक शगल है. ऐसा शगल जो हमेशा लाभ -हानि ,लेन -देन और खरीद बिक्रीपर निर्भर करता है. राजनीति पाखंड और झूठ से भरी होती है. इसका कोई ईमान नहीं होता ऐसे में किसी भी पार्टी से किसी नेता के जाने और आने से पार्टी के भविष्य पर कोई असर नहीं दिखता. एक जाते हैं तो दूसरे आते हैं, एक हारते हैं तो दूसरे जीतते हैं. हार्दिक जा रहे हैं तो कोई और पटेल नेता कांग्रेस में आने को तैयार है. हार्दिक के समर्थक हार्दिक के साथ जा सकते हैं लेकिन किसी और नेता के समर्थक पार्टी में आ भी सकते हैं.
हार्दिक पटेल निश्चित तौर पर गुजरात में कांग्रेस के लिए एक पूंजी थे. युवा नेता होने का एक अलग हनक था उनका. पार्टी ने तब कई नेताओं के खिलाफ जाकर हार्दिक को पार्टी में लाने का खेल किया था. हार्दिक भी खुश थे. पार्टी को सींचने की कस्मे खाई थीं. ऐलान किया था कि बीजेपी के खेल को ख़त्म करेंगे. बीजेपी पर क्या -क्या आरोप नहीं लगाए हार्दिक ! लेकिन यह सब राजनीति का खेल है और इसे किसी तमाशा से ज्यादा नहीं मानना चाहिए. सच तो यही है कि हार्दिक अगर कांग्रेस से विदा होते हैं तो कोई दूसरा युवा नेता कांग्रेस के साथ आएगा भी और पार्टी भीतर ही भीतर सब देखती रहती है और आकलन भी करती है.
हार्दिक के लिए कांग्रेस ने क्या किया इसे भुला भी दिया जाए तो क्या हार्दिक यह बताने की हिम्मत करेंगे कि पार्टी को उन्होंने क्या किया ? जिस समय पार्टी ने उन्हें सूबे का नेता घोषित किया उस समय हार्दिक के विरोधी रहे दर्जनों नेताओं को नाराज करके ही तो पार्टी ने यह सब किया था. ऐसे में हार्दिक अब जहां भी जाएं यह उनकी मर्जी हो सकती है. राजनीति के इस रंगीले खेल की कांग्रेस आदी है तो बीजेपी इस खेल का समझ रखने वाली पार्टी भी. इसलिए सवाल कांग्रेस से नहीं हार्दिक से पूछे जाने की जरूत है. अति महत्वकांक्षा वाली राजनीति के इस दौर में न जाने और कितने हार्दिक कांग्रेस को छोड़ने को तैयार हैं लेकिन इतिहास इनकी राजनीतिक लालच की दास्तान भी तो तैयार करेगा.
खबर आयी कि गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने पार्टी छोड़ दी है. उन्होंने पार्टी के सभी पदों और प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. पाटीदार नेता ने खुद ट्वीट कर इस बारे में जानकारी दी है. उन्होंने अपना यह इस्तीफा तीन भाषाओँमें दिया है. हिंदी, अंग्रेजी और गुजराती में लिखे अपने इस्तीफे का पत्र ट्वीट करते हुए हार्दिक पटेल ने लिखा है 'आज मैं हिम्मत करके कांग्रेस पार्टी के पद और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देता हूं. मुझे विश्वास है कि मेरे इस निर्णय का स्वागत मेरा हर साथी और गुजरात की जनता करेगी. मैं मानता हूं कि मेरे इस कदम के बाद मैं भविष्य में गुजरात के लिए सच में सकारात्मक रूप से कार्य कर पाऊंगा.'
क्या हार्दिक अभी तक गुजरात में नकारात्मक काम कर रहे थे
क्या कांग्रेस में रहकर भी वे कांग्रेस के खिलाफ काम कर रहे थे या कांग्रेस में रहकर बीजेपी या अन्य किसी पार्टी का आधार मजबूत कर रहे थे? इसका जबाब कौन देगा ? किसमे इतनी हिम्मत है ? लेकिन अभी इस पर चर्चा बेमानी है. सच तो यही है कि हार्दिक पटेल लंबे समय से पार्टी से नाराज चल रहे थे और लगातार राज्य के नेताओं और हाईकमान पर सवाल खड़े कर रहे थे. ये सवाल क्या थे ? कौन नहीं जानता ! सवाल वही थे कि हमें ताकतवर करों. हम सब देख लेंगे. सभी नेता तो यही चाहते हैं. तो क्या कोई भी पार्टी ऐसा कर सकती है ? और करती भी है तो उसका खामियाजा उसे भुगतना भी पड़ता है. हार्दिक पटेल ने कहा था कि वह कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जरूर बने हैं, लेकिन उन्हें कोई जिम्मेदीरी नहीं दी गई है और लगातार नेता उन्हें किनारे लगाने में जुटे हैं.
हार्दिक पटेल ने राज्य इकाई के नेताओं पर आरोप लगाया था कि वे चाहते हैं कि मैं कांग्रेस छोड़ दूं. यही नहीं उनका कहना था कि कांग्रेस राज्य में बेहद कमजोर है और चुनाव जीतने की स्थिति में फिलहाल नजर नहीं आती है. ऐसे में सवाल तो कांग्रेस को पूछना चाहिए कि हार्दिक को नेता बनाने के बाद भी गुजरात में पार्टी क्यों मुकाबला में नहीं है? लेकिन अक्सर पार्टियां यह सब नहीं पूछती ,वह तो आगे का प्लान बनाती है ताकि सब कुछ उसके लायक हो. हार्दिक को गुजरात की बागडोर देते समय भी कांग्रेस ने यही सब तो सोचा था. एक बात और, ऐसा नहीं है कि हार्दिक ने अचानक यह सब किया है. कई महीनों से हार्दिक पटेल के बीजेपी में जाने की अटकलें लगाई जाती रही हैं. अपने इस्तीफे से हार्दिक पटेल ने इस बात के संकेत भी दिए हैं कि वे बीजेपी में जा सकते हैं.
वे जाएंगे या नहीं या आगे क्या करेंगे यह सब उनकी समझ हो सकती है. ठीक अब जब वह जाने की तैयारी कर ही चुके हैं तो पार्टी को भी अपनी स्थिति मजबूत करने की तैयारी करनी होगी. और यह क्रम हमेशा चलता ही रहता है. हार्दिक पटेल ने अपने इस्तीफे में राम मंदिर, सीएएए , आर्टिकल 370 और जीएसटी का जिक्र करते हुए कहा कि इन मुद्दों का समाधान देश के लिए जरूरी था, लेकिन कांग्रेस लगातार इनमें बाधा ही बनती रही. उनकी इस टिप्पणी से यह माना जा रहा है कि वह बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. हार्दिक पटेल ने कहा कि भारत हो, गुजरात या फिर मेरे पटेल समाज की बात हो, कांग्रेस का अजेंडा सिर्फ केंद्र सरकार के विरोध का ही रहा है.
हार्दिक के ये बयान बहुत कुछ कहते हैं
क्या हार्दिक अपने पिछले बयान को भूल गए ? क्या हर्दिकी जब जेल में बंद थे और गुजरात सरकार पर हमले करते थे तब उनके बयानों को अगर बीजेपी जोड़कर देखें तो बीजेपी क्या उन्हें स्वीकार कर सकती है? कदापि नहीं. लेकिन अगर बीजेपी में जाने की कोशिश कर रहे हैं तो बीजेपी की मज़बूरी ही होगी. हार्दिक बीजेपी के लिए कितने लाभप्रद होंगे इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता है लेकिन फिलहाल इसका असर कांग्रेस पर पड़ता दिख तो रहा है. लेकिन कांग्रेस इस पर मौन रहेगी? कदापि नहीं. किसी भी व्यक्ति से पार्टी बड़ी होती है. हार्दिक पार्टी से निकलने की दुंदुभी भर रहे हैं लेकिन कोई पार्टी यह दुदुम्भी नहीं सुना करती.
गुजरात में बीजेपी और कांग्रेस की लड़ाई लम्बे समय से है. और एक बात अगर इस लड़ाई में कोई तीसरी पार्टी शामिल होती है तो लड़ाई और भी रोचक होगी. उम्मीद की जा सकती है कि गुजरात का अगला चुनाव काफी मनोरंजक और रोचक होगा जिसमे हार्दिक की भूमिका को भी रेखांकित किया जाएगा. हार्दिक पटेल ने अपने इस्तीफे में कांग्रेस पर अपमान का आरोप भी लगाया है. उन्होंने लिखा, 'राजनीति में सक्रिय हर व्यक्ति का धर्म होता है कि वह जनता के लिए कुछ करता रहे. लेकिन अफसोस की बात है कि कांग्रेस पार्टी गुजरात की जनता के लिए कुछ अच्छा करना ही नहीं चाहती.
इसलिए जब मैं गुजरात के लिए कुछ करना चाहता था तो कांग्रेस ने सिर्फ मेरा तिरस्कार ही किया. मैंने सोचा नहीं था कि कांग्रेस का नेतृत्व हमारे प्रदेश, समाज और विशेष तौर पर युवाओं के लिए इस प्रकार का द्वेष अपने मन में रखता है.' क्या हार्दिक के ये बयान सही है ? क्या इस बयान से ऐसा नहीं लगता कि हार्दिक आगे जो भी कुछ करना चाह रहे हैं वह सत्य से परे है. राजनीति का मौजूदा सच तो यही है कि चाहे पाखंड जैसा भी हो चुनावी खेल में हर पाशा जीत को लक्ष्य करके ही चला जाता है. इस खेल में कुर्बानिया भी होती है और हानि की संभावना भी रहती है लेकिन राजनीति क्या अपने चरित्र से पीछे हटती है?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
Gulabi Jagat
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