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एक दौर था जब नेताओं में जन सेवा की भावना होती थी, पर अब उनका अपना स्वार्थ, अपना हित सबसे ऊपर होता है
एक दौर था जब नेताओं में जन सेवा की भावना होती थी, पर अब उनका अपना स्वार्थ, अपना हित सबसे ऊपर होता है। स्वार्थी नेता हरियाली की तलाश में इस दल से उस दल में भटकते रहते हैं और ऐसा भी हो सकता है कि धनी दल धन का लालच देकर दल बदलने के लिए प्रोत्साहित करते हों ताकि विरोधी दल को नुकसान पहुंचाया जा सके। ऐसे नेताओं को यह जरूरी नहीं होता है कि उन्हें टिकट मिले। गौर करने वाली बात है कि जिन नेताओं का अपने ही दल में सब ठीक ठाक नही चल रहा हो तो वे भला दूसरे दल में कैसे ठीक ठाक चल सकते हैं। कभी ऐसा भी होता है कि दलबदलुओं को नए दल में इज्जत नहीं मिल पाती है और सौतेले व्यवहार के शिकार होते हैं। आज की जागरूक जनता भी स्वार्थी नेताओं की नब्ज पहचान लेती है। ऐसे दलबदलुओं पर विश्वास करना अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होता है।
By: divyahimachal
-रूप सिंह नेगी, सोलन

Rani Sahu
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