सम्पादकीय

सख्ती का समय

Subhi
23 April 2021 2:17 AM GMT
सख्ती का समय
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यह समय सख्ती का है और अगर सरकार के प्रति देश की सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त रुख का इजहार किया है,

यह समय सख्ती का है और अगर सरकार के प्रति देश की सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त रुख का इजहार किया है, तो कोई अचरज नहीं। कोरोना के बढ़ते मामले और उसके साथ ही, इलाज, दवाओं और ऑक्सीजन के बढ़ते अभाव से निपटने के लिए सिवाय सख्त रुख अपनाने के कोई उपाय नहीं है। सर्वोच्च अदालत ने स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके पूछा है कि कोरोना महामारी से निपटने के लिए सरकार के पास क्या योजना है? इस सख्ती के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में ऑक्सीजन की उपलब्धता और इसकी आपूर्ति को लेकर गुरुवार को उचित ही एक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक की है। प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी बयान के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाने, उसके वितरण की गति तेज करने और स्वास्थ्य सुविधाओं तक उसकी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए तेज गति से काम करने की जरूरत पर बल दिया है। ऑक्सीजन की आपूर्ति को अबाध बनाना सबसे जरूरी है। उच्च अधिकारियों को जमीनी हकीकत नजर आनी चाहिए। अब बंद कमरों में बैठकर संवाद करने या भाषण देने का कोई विशेष अर्थ नहीं है। किन्हीं दो-तीन अस्पतालों का भी मुआयना अगर ढंग से कर लिया जाए, तो वस्तुस्थिति सामने आ जाएगी। बडे़ नेताओं को सीधे जुड़कर काम करना होगा। केवल कागजों पर इंतजाम कर देना किसी अपराध से कम नहीं है। आदेशों-निर्देशों को जमीन पर उतारना होगा।

अधिकारियों ने शायद प्रधानमंत्री को यह बताने की कोशिश की है कि ऑक्सीजन की आपूर्ति पूरी तरह से की जा रही है। बताया गया है कि पिछले कुछ दिनों में ऑक्सीजन की उपलब्धता 3,300 मीट्रिक टन प्रतिदिन बढ़ी है। इसमें निजी और सरकारी इस्पात संयंत्रों, उद्योगों, ऑक्सीजन उत्पादकों का योगदान शामिल है। गैर-जरूरी उद्योगों की ऑक्सीजन आपूर्ति रोककर भी ऑक्सीजन की उपलब्धता बढ़ाई गई है। यह अच्छी बात है कि सरकार को जमाखोरी जैसी समस्या का अंदाजा है, इसलिए ऑक्सीजन की जमाखोरी करने वालों के खिलाफ राज्यों को कठोर कार्रवाई के लिए कहा गया है। ज्यादातर ऑक्सीजन बेचने वालों ने मरीजों के परिजन को जिस तरह लूटा है, उसे न भुलाया जा सकता है और न माफ किया जाना चाहिए। अनुभव गवाह है, यदि बड़े अधिकारी क्षेत्र में उतरकर समस्याओं को नहीं देखेंगे, तो समाधान नहीं निकलेगा और न केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय को अपनी योजना बता पाएगी। कोरोना ने बढ़कर यह तो साबित कर ही दिया है कि हमारी अच्छी-अच्छी सरकारें भी मुकम्मल युद्ध के लिए तैयार नहीं थीं। देश में छह से ज्यादा उच्च न्यायालयों में कोरोना से जुड़े मामलों पर सुनवाई चल रही है। मौजूदा सूरतेहाल को राष्ट्रीय आपातकाल के समान बताते हुए ही चीफ जस्टिस एसए बोबडे की खंडपीठ ने जवाब मांगा है। वाकई, यह समय फौरी कोशिशों का नहीं है, समग्र योजना का है। जांच, दवा, इलाज, निगरानी, टीका, लॉकडाउन, लगभग हरेक मोर्चे पर पोल खुल रही है। केंद्र सरकार को माकूल जवाब के साथ सामने आना चाहिए और आम लोगों को यह एहसास कराना चाहिए कि देश में अदालतें और सरकारें वाकई कंधे से कंधा मिलाकर कोरोना के खिलाफ युद्ध लड़ रही हैं। शासन-प्रशासन की सार्थकता इसी में है कि कोई इलाज से वंचित न रहे।


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