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भ्रष्टाचार और घपले-घोटालों के मद्देनजर देश के कई हिस्सों में जो छापेमारी जारी है
By: divyahimachal
भ्रष्टाचार और घपले-घोटालों के मद्देनजर देश के कई हिस्सों में जो छापेमारी जारी है, क्या वे भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक जंग की प्रस्तावना हैं? क्या हमारी जांच एजेंसियां पूरी तरह स्वायत्त हैं और उन्हें कोई भी 'राजनीतिक निर्देश' नहीं दिए जाते? यदि स्वायत्त हैं, तो आपराधिक और गंभीर मामले 10-15 सालों तक क्यों लटकते रहते हैं? कभी तो कोई ठोस कारण देश के सामने पेश किया जाए। सभी कार्रवाइयां अंधेरी गुफाओं में की जाती रही हैं। विभिन्न मामलों के संदर्भ में एजेंसियां और अदृश्य रूप से सत्ताएं 'प्रतिशोधी' क्यों लगती हैं या विपक्ष के ऐसे आरोप पुख्ता लगते हैं? उदाहरण के तौर पर लें। लालू प्रसाद यादव कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार-1 में रेल मंत्री थे। उन्होंने बिहार से 12 आवेदकों को रेलवे के 6 ज़ोन में ग्रुप-डी की अस्थायी नौकरी मुहैया कराई। कोई विज्ञापन नहीं छपा और न ही कोई परीक्षा ली गई। सीधी नियुक्ति कर दी गई। बाद में वे स्थायी कर्मचारी भी बना दिए गए। तत्कालीन रेल मंत्री पर गंभीर आरोप थे कि उन्होंने नौकरी देने के बदले ज़मीनें औने-पौने दाम पर खरीदीं। ऐसी विवादास्पद ज़मीनें लालू की पत्नी राबड़ी देवी, उनकी बेटियों-मीसा भारती और हेमा यादव-के नाम पंजीकृत हैं। 2008-09 का यह केस 2021 में सीबीआई ने प्राथमिक जांच के लिए दर्ज किया।
कारण जो भी रहे हों, लेकिन यह केस आज तक किसी कानूनी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाया है और न ही आरोपितों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई की गई है। लालू यादव पहली बार किसी घोटाले में 1997 में जेल गए थे। तब केंद्र में संयुक्त मोर्चा की सरकार थी। प्रधानमंत्री देवगौड़ा रहे अथवा इंद्रकुमार गुजराल रहे हों, लेकिन मोर्चे का हिस्सा होने के बावजूद लालू को जेल जाना पड़ा। उसके बाद चारा घोटाले में अदालत ने लालू को सजायाफ्ता करार दिया। वह जेल जाते रहे, अस्पतालों में रहे और जमानत पर बाहर भी आते रहे। सवाल यह है कि आपराधिक या घोटालों के केस इतने लंबे क्यों खींचे जाते हैं और उन पर सियासी दख़ल साफ क्यों दिखाई देता है? अब ख़बरें आ रही हैं कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर 100 करोड़ रुपए के अवैध खनन घपले की तलवार लटक रही है। दिल्ली सरकार में शराब नीति के तहत घोटाले में सीबीआई उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के आवास और अन्य बीसियों ठिकानों पर छापे मार चुकी है। दिल्ली के ही स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन ईडी के मामलों में मई माह से जेल में बंद हैं। बंगाल सरकार में वरिष्ठ मंत्री रहे पार्थ चटर्जी के संदर्भ में नकदी के पहाड़ और सोना आदि बरामद किए गए।
सीबीआई और ईडी दोनों ही अलग-अलग ढंग से जांच कर रहे हैं। क्या वह मामला भी किसी निष्कर्ष तक पहुंचेगा अथवा वक्त के साथ-साथ लटक कर भुला दिया जाएगा? बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर आरोप हैं कि वह 53 संपत्तियों के मालिक हैं। जिस शख्स ने कॉरपोरेट में लाखों रुपए की नौकरी नहीं की और न ही कोई औद्योगिक विरासत उनके नाम दर्ज है, लिहाजा ऐसी धन-संपदा पर सवाल स्वाभाविक हैं। कमोबेश यह सामान्य मामला नहीं है। जांच एजेंसियां भ्रष्टाचार के आधे-अधूरे लटकते सत्यों को अंतिम यथार्थ तक कब पहुंचाएंगी? भ्रष्टाचार के मामलों और करोड़ों नकदी की बरामदगी में आईएएस और आईपीएस जैसे शीर्ष अधिकारी भी जेलों में कैद हैं। एक दौर था कि कुछ भाजपा नेताओं के खिलाफ मोटे-मोटे घोटाले सुर्खियों में थे। तब ये नेता कांग्रेस या किसी अन्य विपक्षी दल में थे। उनके खिलाफ सीबीआई और ईडी अचानक खामोश और निष्क्रिय क्यों हैं? देश अब यह स्पष्टीकरण भी चाहता है। विपक्ष का यह गंभीर आरोप रहता है, लिहाजा सरकार और एजेंसियां उन्हें नजरअंदाज़ नहीं कर सकतीं। बहरहाल प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त, स्वतंत्रता दिवस पर, लालकिले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए भ्रष्टाचार, परिवारवाद, वंशवाद के खिलाफ निर्णायक जंग लडऩे के लिए देश का समर्थन, सहयोग मांगा था।
क्या उस संबोधन के गंभीर मायने हैं? प्रधानमंत्री इन प्रमुख जांच एजेंसियों के बिना भी यह जंग नहीं जीत सकते, लिहाजा स्पष्ट किया जाए कि प्रधानमंत्री का दख़ल कितना रहता है या रहेगा? भ्रष्टाचार और घोटालों पर सार्थक परिणति इसलिए भी अपेक्षित है, क्योंकि अंतत: आम करदाता का पैसा ही हजम किया जा रहा है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि सरकार ने अपने विरोधियों को मजा चखाने के लिए ईडी, सीबीआई तथा आयकर विभाग को आगे कर दिया है। सरकारी जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप भी लग रहे हैं। आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल तथा अन्य पार्टियां ऐसे आरोप लगाने वाली नई पार्टियां हैं, जबकि कांग्रेस तो काफी समय से इस तरह के आरोप लगा रही है। क्या सचमुच ही सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग हो रहा है, जनता इसका जवाब चाहती है। सरकार को इस संबंध में जनता को आश्वस्त करना चाहिए कि वह सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग नहीं होने देगी। वैसे कांग्रेस जब सत्ता में थी, तब भाजपा भी इसी तरह के आरोप लगाती थी।

Rani Sahu
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