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- हथकरघा के हाल, बेहाल
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गांधी जी ने चरखा और गुंडी, अर्थात कत्तिन और बुनकर को आजादी के आंदोलन से जोड़ दिया और उसे आजादी की लड़ाई का एक शस्त्र ही बना डाला। यूरोप में औद्योगिक क्रांति के बाद और ब्रिटेन में मैनचेस्टर की कपड़ा मिलों के अस्तित्व में आने के बाद भारत में भी विदेशी वस्त्र का आयात बहुतायत में होने लगा। फलस्वरूप कत्तिन-बुनकरों की हालत बद से बदतर होने लगी। अंग्रेजी हुकूमत ने एक बहुत बड़ी आबादी को कंगाली के रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश ने 'मिश्रित अर्थव्यवस्था' का प्रारूप तैयार किया जहां बड़े उद्योग भी होंगे और छोटे, मझोले उद्योग भी। इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में खादी और ग्रामोद्योगों के माध्यम से बड़ा काम होने लगा। बुनकरों को रोजगार प्राप्त हुए। उनके विकास के लिए अलग से योजनाएं बनाई गईं, परंतु 70 के दशक के अंत तक हैंडलूम और खादी सेक्टर के बुनकरों की हालत खस्ता होने लगी। इसका मुख्य कारण 'पावरलूम' और मिलों में कपड़ा बहुतायत में उत्पादन होने लगा। बुनकरों के पास जो हाथ की कलाकारी थी, कसीदाकारी का जो हुनर था, उसकी नकल पावरलूम में होने लगी। हैंडलूम में जो साड़ी 4-5 दिन में तैयार होती थी, वह पावरलूम में एक दिन में बनने लगी और बहुत सस्ते दामों पर बाजार में उपलब्ध होने लगी।