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सरकारें भ्रष्टाचार पर नकेल कसने का प्रयास करती तो दिखना चाहती हैं, मगर अक्सर उनकी दिशा बदले की भावना से भटक जाती है। इस तरह जो कानून अनियमितताओं पर लगाम लगाने के मकसद से बनाए गए थे
सरकारें भ्रष्टाचार पर नकेल कसने का प्रयास करती तो दिखना चाहती हैं, मगर अक्सर उनकी दिशा बदले की भावना से भटक जाती है। इस तरह जो कानून अनियमितताओं पर लगाम लगाने के मकसद से बनाए गए थे, उनका वे हथियार के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर देती हैं। धनशोधन निरोधक कानून का उपयोग भी कुछ इसी तरह होने लगा है। अगर किसी को सबक सिखाना है, तो बिना सोचे-समझे उस पर इस कानून का इस्तेमाल कर दिया जाता है। इसे लेकर लंबे समय से आवाजें भी उठती रही हैं।
कुछ विपक्षी दल खुल कर आरोप लगाते रहे हैं कि सरकार प्रवर्तन निदेशालय का उपयोग उन लोगों के खिलाफ कर रही है, जो उसके विरोधी हैं। इसे लेकर अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी नाराजगी जाहिर की है। उसने कहा है कि अगर सरकार इसी तरह इस कानून का बिना सोचे-समझे इस्तेमाल करती रहेगी, तो यह कानून अपना प्रभाव खो देगा। अदालत ने स्पष्ट कहा कि आप इस कानून का उपयोग हर किसी को सलाखों के पीछे भेजने के लिए नहीं कर सकते। अगर सौ रुपए और हजार रुपए की अनियमितताओं पर भी इस कानून का इस्तेमाल करेंगे, तो यह उचित नहीं है। यह अदालत की तरफ से सरकार को असहज करने वाली एक और टिप्पणी है।
दरअसल, पिछले कुछ सालों में प्रवर्तन निदेशालय ने इतने लोगों पर एक के बाद एक छापे मारे कि लोगों में धारणा घर करती गई कि जो भी सरकार के किसी कदम से असहमति जाहिर करता है, अगले दिन प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग उसके घर छापेमारी शुरू कर देते हैं। पिछले साल के केवल मार्च से सितंबर के बीच एक सौ पचहत्तर सांसदों और विधायकों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून और चौदह के खिलाफ धनशोधन निरोधक कानून के तहत मामले लंबित हैं। यह तथ्य पिछले साल अदालत के समक्ष पेश किया गया था।
अभी जिस मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआइ को फटकार लगाई, उसमें एक कंपनी के खिलाफ धनशोधन का मामला दर्ज किया गया था। आरोप था कि कंपनी ने सरकार की शर्तों का पालन नहीं किया। सर्वोच्च न्यायालय ने कंपनी मालिक की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। छिपी बात नहीं है कि पिछले कुछ सालों में प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग और सीबीआइ की छापेमारियों के चलते उद्योग जगत में खासी नाराजगी दिखाई दी थी। उनका कहना था कि इस तरह उनके लिए कारोबार करना मुश्किल होगा।
राजनेताओं और उद्योगपतियों की कर चोरी, अनियमितता और काले धन को सफेद करने की करतूतें छिपी नहीं हैं। उन पर लगाम लगनी ही चाहिए। मगर चयनित ढंग से की जाने वाली कार्रवाइयां संदेह और सवाल पैदा करती ही हैं। केवल कुछ लोगों को चिह्नित करके भ्रष्टाचार निरोधक कानूनों का उपयोग किया जाएगा, तो इनसे संबंधित महकमों पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं।
कानून कोई भी हो, उसके दायरे में सभी लोग समान रूप से आते हैं। मगर सरकारें इस तकाजे को शायद नहीं समझतीं। यह अकेला कानून नहीं है, जिसका बेजा और बेधड़क इस्तेमाल किया गया है। गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून यानी यूएपीए को लेकर भी ऐसी ही शिकायतें दर्ज कराई जाती रही हैं, जिसके तहत सैकड़ों किसानों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और युवा आंदोलनकारियों को सलाखों के पीछे डाला जा चुका है। उनमें से बहुतों का दोष महज इतना है कि उन्होंने सरकार के किसी फैसले का विरोध किया। कानूनों का उपयोग अन्यायपूर्ण ढंग से होगा, तो सवाल उठेंगे ही।
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