सम्पादकीय

दोस्ती के हाथ

Subhi
8 April 2022 6:00 AM GMT
दोस्ती के हाथ
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भारत-नेपाल के बीच मधुर होते रिश्ते एक अच्छा संकेत है। प्रधानमंत्री मोदी और नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने बिहार के जयनगर को नेपाल के कुर्थी क्षेत्र से जोड़ने वाली यात्री रेलवे सेवा का उद्घाटन किया।

Written by जनसत्ता; भारत-नेपाल के बीच मधुर होते रिश्ते एक अच्छा संकेत है। प्रधानमंत्री मोदी और नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने बिहार के जयनगर को नेपाल के कुर्थी क्षेत्र से जोड़ने वाली यात्री रेलवे सेवा का उद्घाटन किया। इसके साथ ही दोनों नेताओं ने नेपाल में भारत के 'रूपे' भुगतान कार्ड और नब्बे किलोमीटर लंबी बिजली पारेषण लाइन की शुरुआत की।

फिर दोनों देशों ने रेलवे और ऊर्जा क्षेत्रों में सहयोग को विस्तार देने के लिए चार समझौतों पर हस्ताक्षर किए। देउबा ने सीमा विवाद को हल करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी से द्विपक्षीय तंत्र स्थापित करने का आग्रह किया। यह एक बार फिर दोनों देशों के बीच मधुर संबंधों की स्थापना है।

हाल ही में राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि चुनावी घोषणा-पत्रों को बाध्यकारी बनाने के संदर्भ में सभी राजनीतिक दलों को गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए। आज जब श्रीलंका की जर्जर अर्थव्यवस्था का उदाहरण हमारे सामने है, हमारे ही देश के कई ऐसे राज्य जिनकी आर्थिक दशा अच्छी नहीं है, जन कल्याण के नाम पर ऐसी मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाली योजनाएं चला रहे हैं, जिनके कारण इन राज्यों की अर्थव्यवस्था और बिगड़ती जा रही है।

कई बार ये घोषणाएं इतनी अव्यावहारिक होती हैं कि उन्हें अमलीजामा पहनाने को लेकर बड़े-बड़े विशेषज्ञों की बुद्धि भी जवाब दे जाती है। पर राजनीतिक दल चुनाव जीतने की होड़ में ऐसी घोषणाएं कर देते है जो देश और प्रदेश हित में नहीं होती।

निर्वाचन आयोग को ऐसे वित्तीय वादों की व्यावहारिकता पर संबंधित राजनीतिक दलों से स्पष्टीकरण लेकर जनता के सामने रखना चाहिए कि अमुक-अमुक चुनावी वादे राजनतिक दल कैसे पूरा करने वाले हैं। उनके पास क्या योजना है? मसलन इसके लिए पैसा कहां से आएगा? कैसे खर्च होगा? क्या राज्य के वर्तमान खजाने पर इसका कोई अतिरिक्त भार तो नहीं पड़ेगा? इन प्रश्नों का उत्तर सार्वजनिक किया जाना चाहिए। तभी चुनावी घोषणा-पत्रों का कोई औचित्य रह पाएगा।

गर्मी में पानी की किल्लत शुरू हो जाती है। तपती धूप के साथ गर्म हवाएं शरीर को झुलसा रही हैं। गर्मी के कारण पशु-पक्षी भी बेहाल हो रहे हैं। मनुष्य तो किसी तरह पीने के पानी का इंतजाम कर लेता है, लेकिन, पशु-पक्षियों को काफी परेशानी होती है। कई बार तो ये पानी की तलाश में हमारे घर के भीतर तक दाखिल हो जाते हैं। अधिकतर लोग उन्हें भगा देते हैं, बिना यह सोचे कि पशु-पक्षियों में भी प्राण होता है।

हमारी तरह उन्हें भी गर्मी, भूख-प्यास सताती है। हम भले अपने लिए कितनी भी सुविधाएं जुटा लें, मगर जब तक इन निरीह जीवों की सुरक्षा नहीं करेंगे, हम स्वार्थी ही कहे जाएंगे। हमारा कर्तव्य है कि घर के बाहर, छत पर, बालकनी में दाना-पानी रखें, ताकि इनका जीवन बचा रहे। इन्हें भी अपने परिवार के सदस्य की भांति प्यार करें।


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