सम्पादकीय

हंबनटोटा के सामरिक संकेत

Subhi
24 Aug 2022 4:35 AM GMT
हंबनटोटा के सामरिक संकेत
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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में यह साफ किया था कि चीन ‘कभी भी अपने वाजिब समुद्री अधिकारों और हितों की रक्षा से पीछे नहीं हटेगा। हिंद महासागर पर उसका बढ़ता प्रभाव चीन की व्यापक आर्थिक और सामरिक हितों को प्रदर्शित करता है।

ब्रह्मदीप अलूने: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में यह साफ किया था कि चीन 'कभी भी अपने वाजिब समुद्री अधिकारों और हितों की रक्षा से पीछे नहीं हटेगा। हिंद महासागर पर उसका बढ़ता प्रभाव चीन की व्यापक आर्थिक और सामरिक हितों को प्रदर्शित करता है। हिंद महासागर में स्थित देशों में अपने नौसैन्य अड्डे स्थापित कर वह भारत पर सामरिक बढ़त हासिल करने के बहुत करीब पहुंच गया है।

चीन के चमत्कारिक आर्थिक सामरिक विकास के साथ ही उसके मूल हितों का दायरा बढ़ता जा रहा है। हिंद महासागर को लेकर चीन ने किसी आधिकारिक नीति की घोषणा तो नहीं की, लेकिन एशिया में चीन की कोशिश अपनी मर्जी की अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय समुद्री व्यवस्था विकसित करने और उसके संचालन में अग्रणी भूमिका निभाने की लंबे समय रही है। श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन के अत्याधुनिक जासूसी जहाज युआन वांग-5 का कथित शोध अभियान के नाम पर रुकना उसकी सामरिक महत्त्वाकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करता है।

चीन का दावा है कि यह एक अनुसंधान और सर्वेक्षण पोत है। लेकिन युआन वांग-5 जिन अत्याधुनिक उपकरणों से युक्त है, उससे चीन के इरादों पर संदेह होता है। भारत ने श्रीलंका के समक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि जहाज पर लगी अत्याधुनिक प्रणालियां इस क्षेत्र में भारत के तटीय बनावट की जानकारी जुटा सकती हैं और इसका इस्तेमाल चीन की सैन्य पनडुब्बियों व पोतों के लिए भी किया जा सकता है।

दरअसल चीन युआन वांग-5 श्रेणी के पोतों का उपयोग उपग्रहों, राकेटों और बैलिस्टिक मिसाइलों के प्रक्षेपण का पता लगाने के लिए करता है। चीन के पास ऐसे आधा दर्जन पोत हैं जो प्रशांत महासागर, अटलांटिक और हिंद महासागर से संचालित होने में सक्षम हैं। भारत के साथ अमेरिका भी इन जहाजों की गतिविधियों को लेकर संदेह जता चुका है। चीन की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की देखरेख में स्ट्रैटिजिक सपोर्ट फोर्स (एसएसएफ) इन पोतों का संचालन करती है।

यह इकाई पीएलए की रणनीति, साइबर इलेक्ट्रानिक, सूचना, संचार और मनोवैज्ञानिक युद्ध मिशन को देखती है। यहां यह जानना बेहद जरूरी है कि एसएसएफ का स्पेस सिस्टम डिपार्टमेंट चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लगभग सभी अंतरिक्ष संचालन कार्यक्रमों के लिए जिम्मेदार है। अंतरिक्ष अभियानों में अंतरिक्ष प्रक्षेपण, निगरानी और अंतरिक्ष युद्ध शामिल हैं। चीन का यह बल उपग्रहों और अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आइसीबीएम) प्रक्षेपण का पता लगाने के लिए ही युआन वांग पोत का संचालन करता है। इसीलिए भारत ने हंबनटोटा बंदरगाह पर इस जहाज के प्रवेश को लेकर अपना विरोध जताया।

इन सबके बीच श्रीलंका ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को दरकिनार कर चीनी पोत को हंबनटोटा में प्रवेश की इजाजत दे दी। इससे भारत के लिए नया सामरिक संकट खड़ा हो गया। यह संकट ऐसा है जो आने वाले समय में भारत की सुरक्षा रणनीति को बदलने पर मजबूर कर सकता है। श्रीलंका की सरकार पर चीन का कर्ज करीब साढ़े छह अरब डालर है। चीन से कर्ज लेकर ही श्रीलंका ने हंबनटोटा बंदरगाह और मताला हवाई अड्डे का निर्माण किया था। लेकिन कर्ज न लौटा पाने की वजह से श्रीलंका बेजिंग को ये दोनों ही जगहें निन्यानवे साल की लीज पर देने को मजबूर हो गया। आज श्रीलंका चीन के भारी दबाव में है और भारत की चिंताओं को समझने के बावजूद चीन के हितों को मानने के अलावा उसके पास कोई चारा भी नहीं है।

चीन की अति महत्त्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड परियोजना में हंबनटोटा के साथ ही दक्षिण एशिया के कई देशों के बंदरगाह शामिल हैं। जाहिर है, अन्य देश भी भविष्य में किसी चीनी पोत को अपने यहां आने से रोक पाएंगे, इसमें संदेह है। इससे भारत की सामरिक चुनौती और बढ़ गई है। वन बेल्ट वन रोड के सहारे चीन की व्यापक योजनाएं हैं और इसे रोक पाना भारत के लिए बेहद कठिन है। यह परियोजना व्यापारिक रास्तों के समानांतर बंदरगाहों, रेलवे और सड़कों का व्यापक नेटवर्क तैयार करने की चीनी संभावनाओं के दरवाजे खोलती है। चीन बड़े पैमाने पर अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में रेल और सड़क नेटवर्कों का निर्माण कर रहा है। इस परियोजना का प्रमुख उद्देश्य चीन को अफ्रीका, मध्य एशिया और रूस से होते हुए यूरोप से जोड़ना है। इसके प्रभाव में भारत को छोड़ कर दक्षिण एशिया के सभी देश हैं।

गौरतलब है कि पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित ग्वादर बंदरगाह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) का केंद्र बिंदु है और इसे वन बेल्ट, वन रोड और समुद्री सिल्क रोड परियोजनाओं के बीच एक महत्त्वपूर्ण बिंदु माना जाता है। इसे और म्यांमार के क्याउकफियू बंदरगाह को चीन ने ही विकसित किया है। बांग्लादेश के साथ तो चीन की बड़ी सामरिक और आर्थिक भागीदारी है। बांग्लादेश ने 2019 में चीन के दक्षिण-पश्चिम प्रांतों को चटगांव और मोंगला बंदरगाहों का इस्तेमाल करने को दे दिया था।

चटगांव बंदरगाह बांग्लादेश का प्रमुख बंदरगाह है। इसलिए भारत और चीन के लिए चटगांव बंदरगाह का बड़ा महत्त्व है। चीन, बांग्लादेश के लिए हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता भी है। वह बांग्लादेश में कई निर्माण परियोजनाओं में भागीदार भी है। चीन के युन्नान प्रांत से बांग्लादेश की भौगोलिक निकटता के मद्देनजर ऊर्जा संसाधनों की आपूर्ति के लिए इन बंदरगाहों तक आसानी से पहुंच बनाई जा सकती है। इसके अलावा चीन बांग्लादेश को विकास परियोजनाओं के लिए वित्तीय मदद भी देता रहा है। बांग्लादेश चीन की वन बेल्ट वन रोड परियोजना में भी शामिल है और इसके तहत उसने चार अरब डालर का कर्ज चीन से लिया है। ऐसे में युआन वांग-5 जैसे पोत चटगांव बंदरगाह भी आ सकते हैं और भारत इसे रोक पाएगा, इसमें संदेह है।

जाहिर है, चीन के आर्थिक सामरिक विकास के साथ ही उसके मूल हितों का दायरा बढ़ता जा रहा है। चीन की विदेश नीति का मौलिक उद्देश्य प्रचंड सैन्य शक्ति के साथ आर्थिक महाशक्ति बन कर एशिया पर प्रभुत्व स्थापित करना है। अपनी विदेश नीति के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए वह किसी भी साधन का इस्तेमाल करने में हिचकिचाता नहीं है। इसमें आर्थिक सहायता, सैनिक शक्ति का दबाव, राजनीतिक कार्य, अमेरिकी विरोध, कूटनीति, सैन्य और अधिनायकवादी सत्ताओं का संरक्षण, प्रचारात्मक मनोवैज्ञानिक युद्ध और आर्थिक प्रतियोगिता जैसे साधन शामिल हैं।

चीन ने देश के मूल हितों की रक्षा की जिम्मेदारी को बड़ी मजबूती से अपनी सेनाओं के हवाले कर दिया है। उसने यह घोषणा भी कर दी है कि वह सबसे ताकतवर सैन्य बल विकसित करेगा। समुद्री ताकत का विस्तार करने की उसकी गतिविधियों में यह साफ झलक रहा है। क्षेत्रीय स्तर पर भीषण युद्ध के लिए चीनी नौसेना खुद को तैयार कर रही है। इससे यह आशंका गहरा गई है कि चीन, हिंद महासागरीय क्षेत्र से होकर जाने वाले महत्त्वपूर्ण समुद्री व्यापारिक मार्गों के संरक्षण को अपने लक्ष्यों में शामिल करेगा।

हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव का भारत की नौसैनिक गतिविधियों के संचालन पर व्यापक प्रभाव पड़ना निश्चित है। चीन के नौसैनिक उन समुद्री ठिकानों पर अन्य देशों के नौसैनिकों को प्रशिक्षण दे रहे हैं जहां पर चीन की नौसेना ने हाल ही में अड्डे बनाए हैं। इनमें बांग्लादेश और पाकिस्तान शामिल हैं। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में यह साफ किया था कि चीन 'कभी भी अपने वाजिब समुद्री अधिकारों और हितों की रक्षा से पीछे नहीं हटेगा। हिंद महासागर पर उसका बढ़ता प्रभाव चीन की व्यापक आर्थिक और सामरिक हितों को प्रदर्शित करता है।

भारत को घेरते हुए हिंद महासागर में स्थित देशों में अपने नौसैन्य अड्डे स्थापित कर भारत पर सामरिक बढ़त हासिल करने के बहुत करीब पहुंच गया है। इससे निपटने के लिए भारत को दीर्घकालीन नीतियों पर काम करने और आर्थिक व सामरिक साझेदारी बढ़ाने की जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में मारीशस यात्रा के दौरान सागर विजन की शुरुआत की थी। यह समुद्री सुरक्षा, साझेदारी एवं सहयोग के महत्त्व में वृद्धि पर आधारित है। भारत को सागर विजन पर मजबूती से आगे बढ़ना ही होगा, वरना जमीन के साथ समुद्र में भी चीन से सैन्य टकराव बढ़ सकता है।


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