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इस सप्ताह देश ने कोरोना महामारी के खिलाफ जंग में एक जबर्दस्त बढ़त दर्ज की। भारत में टीका लगवाने वाले लोगों की संख्या सौ करोड़ के पार चली गई है। निश्चित रूप से यह संतोष और राहत की ही नहीं, गर्व की भी बात है।
इस सप्ताह देश ने कोरोना महामारी के खिलाफ जंग में एक जबर्दस्त बढ़त दर्ज की। भारत में टीका लगवाने वाले लोगों की संख्या सौ करोड़ के पार चली गई है। निश्चित रूप से यह संतोष और राहत की ही नहीं, गर्व की भी बात है।तो इतनी जल्दी इस अहम पड़ाव तक पहुंचना डॉक्टरों, नर्सों और तमाम स्वास्थ्यकर्मियों की लगातार मेहनत और उनके अद्भुत समर्पण के बगैर संभव नहीं था।न
कुछ अपवादों के बावजूद आम देशवासियों के पॉजिटिव नजरिए की भी इसमें बड़ी भूमिका रही है। इन सब कारकों के सम्मिलित प्रभावों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश के एक टीम बन जाने की संज्ञा दी है। निश्चित रूप से यह उदाहरण बताता है कि एक टीम के रूप में देश बड़ी से बड़ी समस्या को चुटकी बजाते हल कर सकता है। मगर यह मौका संतोष महसूस करने के साथ ही यह याद करने का भी है कि इस उपलब्धि तक पहुंचने में कौन-कौन सी बाधाएं हमारे सामने आईं। हमें भूलना नहीं चाहिए कि पहली लहर के उतार के बाद उपलब्धि का कुछ ऐसा ही एहसास हमारे मन में वह निश्चिंतता ले आया था कि कोरोना महामारी कोई बड़ी चीज नहीं है।
इस बेफिक्री के कारण जहां हममें से बहुतों ने टीके लगवाने के मामले में ढीला-ढाला रवैया अपनाया, वहीं भीड़भाड़ से बचने और दूरी बरतने की भावना भी कमजोर हुई। नतीजतन हमने दूसरी लहर की कभी न भूलने वाली विभीषिका देखी। सो ताजा उपलब्धि पर संतोष महसूस करते हुए भी हमें यह ध्यान में रखना होगा कि कोरोना की चुनौती को हलके में लेने की गलती न करने लग जाएं। दूसरी बात यह भी याद रखने की है कि इस उपलब्धि के बाद भी अभी हम आधे रास्ते में ही हैं। संपूर्ण वयस्क आबादी को पूरी तरह टीकाकरण के दायरे में लाने के लिए अब भी 90 करोड़ टीके लगाने की जरूरत है। दो साल से ऊपर के बच्चों की बात करें तो और 80 करोड़ डोज लगाने होंगे। यानी सौ करोड़ टीके लगाने के बावजूद अभी 170 करोड़ टीके लगाने का काम बाकी है।
इस बीच कोरोना वायरस के फिर सिर उठाने की खबरें भी कई देशों से आ रही हैं। खासकर रूस, ब्रिटेन और सिंगापुर से। रूस में दोनों टीके लगवा चुकी वयस्क आबादी हमारी ही तरह 30 फीसदी के आसपास है। मगर ब्रिटेन और सिंगापुर में तो क्रमश: 67 फीसदी और 80 फीसदी लोग टीकाकरण के दायरे में आ चुके हैं। फिर भी वहां कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। जाहिर है, हम न तो टीकाकरण के मोर्चे पर कोई सुस्ती दिखा सकते हैं और न ही कोरोना प्रोटोकॉल के पालन में किसी तरह की असावधानी बरतने का जोखिम ले सकते हैं।
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