सम्पादकीय

आधे मुख्यमंत्री

Subhi
14 April 2022 5:44 AM GMT
आधे मुख्यमंत्री
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पंजाब में सत्ता परिवर्तन के बाद नौकरशाहों के दिल्ली चक्कर लगाने पर वहां के प्रशासनिक क्षेत्र में मुख्यमंत्री भगवंत मान को अंदरखाने ‘दि हाफ सीएम’ कहा जाने लगा है। मामला यह है

Written by जनसत्ता; पंजाब में सत्ता परिवर्तन के बाद नौकरशाहों के दिल्ली चक्कर लगाने पर वहां के प्रशासनिक क्षेत्र में मुख्यमंत्री भगवंत मान को अंदरखाने 'दि हाफ सीएम' कहा जाने लगा है। मामला यह है कि भगवंत मान और बिजली मंत्री हरभजन सिंह की अनुपस्थिति में पंजाब के मुख्य सचिव, बिजली विभाग के सचिव और ऊर्जा निगम (पावरकाम) के मुख्य प्रबंध निदेशक ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, वहां के मंत्री सत्येंद्र जैन और राघव चड्ढा के साथ बैठक की। आम आदमी पार्टी ने विधानसभा चुनाव से पहले तीन सौ यूनिट निशुल्क बिजली देने का वादा किया था।

इसी को लेकर केजरीवाल ने पंजाब के उक्त अधिकारियों की बैठक बुलाई। भले केजरीवाल सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक हैं, पर पंजाब में चुनी गई सरकार वैधानिक सीमा में बंधी है। राज्य के संवैधानिक मुखिया या उनके चुने हुए प्रतिनिधि की अनुपस्थिति के इस तरह की बैठक पूरी तरह से अवैध, राज्य के मामलों में हस्तक्षेप और देश के संघीय ढांचे के विरुद्ध है।

हाल ही में पंजाब में पांच सीटों के लिए हुए राज्यसभा चुनावों में भी जिस तरह सदस्यों की घोषणा हुई, उसमें भी संदेह पैदा होने लगा है कि आम आदमी पार्टी की पंजाब इकाई की कम और हाईकमान की ज्यादा चली है। 'आप' ने जालंधर के रहने वाले क्रिकेटर हरभजन सिंह, फगवाड़ा स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के कुलपति अशोक मित्तल, पार्टी के पंजाब सह प्रभारी राघव चड्ढा, लुधियाना से उद्योगपति संजीव अरोड़ा और दिल्ली आईआईटी के प्रोफेसर डा. सन्दीप पाठक को राज्यसभा भेजा है। पार्टी पर केवल विपक्ष ने ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर उसके कार्यकतार्ओं ने ही आरोप लगाया कि ये नाम राज्य की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं हैं।

विधानसभा चुनावों के दौरान भी 'आप' के राजनीतिक विरोधियों ने आरोप लगाया था कि केजरीवाल परोक्ष रूप से पंजाब की राजनीति और प्रशासन पर नियंत्रण चाहते हैं। सब जानते हैं कि बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भांति केजरीवाल भी आम आदमी पार्टी के अघोषित एकछत्र सर्वेसर्वा हैं। पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक होने के चलते अरविंद केजरीवाल का पूरा अधिकार है कि वे अपनी पार्टी की सरकार पर कड़ी नजर रखें और उसका मार्गदर्शन करें, पर संविधान के दायरे में रह कर।

देश के इतिहास में पहली बार हुआ है जब किसी राष्ट्रीय नेता ने अपने सत्ताधारी राज्य के संवैधानिक मुखिया या उसके प्रतिनिधि की अनुपस्थिति में उसके अधिकारियों के साथ बैठक की। मुख्यमंत्री मान को अपने अधिकारियों से इसके बारे में पूछताछ करनी चाहिए कि आखिर वे किस के आदेश से बैठक में गए। पंजाब की जनता उन्हें पूर्णरूपेण मुख्यमन्त्री के रूप में देखना चाहती है न कि 'दि हाफ सीएम' के रूप में।


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