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'यूनेस्को' ने सन् 1994 से 5 अक्तूबर का दिन 'विश्व शिक्षक दिवस' के तौर पर मनाने की शुरुआत की है। भारत में 5 सितंबर को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस मनाया जाता है। लेकिन प्राचीन में वैश्विक शिक्षा का केंद्र रहे भारतवर्ष के गौरवशाली अतीत में शिक्षक व गुरु सदैव आदरणीय रहे हैं। गुरु के सम्मान में 'गुरु पूर्णिमा' मनाने की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है। शिक्षार्थी के जीवन में उच्च चरित्र का निर्माण करने वाले कई महान् आचार्यों का हमारे धर्म ग्रंथों में वर्णन हुआ है। 'आरुणी' व 'उपमन्यु' जैसे विद्वान ऋषियों के गुरु महर्षि 'आयोदधौम्य', लव-कुश के गुरु महर्षि 'वाल्मीकि' व भीष्म, द्रोण, कर्ण जैसे महान् योद्धा तैयार करने वाले महर्षि 'परशुराम', नेमिषारण्य के कुलपति महर्षि 'शौनक' तथा आचार्य 'बहुश्रुति' जैसे महान् शिक्षक इसी भारतभूमि पर हुए थे। भारत में बालिकाओं के प्रथम विद्यालय की शुरुआत सन् 1840 में साबित्री बाई फुले द्वारा 'पुणे' में मानी जाती है। लेकिन भारत के वैदिक साहित्य में स्त्रियों के शिक्षित व परमज्ञानी होने के कई प्रत्यक्ष प्रमाण मौजूद हैं। अनादिकाल से ही भारतीय नारीशक्ति का ज्ञान अद्भुत रहा है। स्त्री शिक्षा के विकास के लिए राजा 'अश्वपति' की पत्नी 'शकल्य देवी' ने हजारों वर्ष पूर्व बालिकाओं के लिए गुरुकुलों के रूप में शिक्षणालयों की स्थापना की थी।
विदुषी 'सुलभा' व 'मैत्रेयी' जैसी ऋषिकाएं भी महिला शिक्षा की अग्रदूत बनी थी। उन दोनों ऋषिकाओं ने कन्या गुरुकुलों की स्थापना करके बालिकाओं को वेदों के शाश्वत ज्ञान से शिक्षित करने में मुख्य भूमिका निभाई थी। भारतीय शिक्षा के उच्च आदर्शों की बुनियाद गुरुकुलों में ही तैयार होती थी। गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की शिक्षा, शिक्षक व शिक्षार्थियों की अपनी अलग विशेषताएं थीं। गुरुकुल शिक्षा पद्धति ने ही भारत को 'विश्व गुरु' की पदवी दिलाई थी। हमारे पौराणिक ग्रंथों में उशिज, विद्योतमा, भामती, तापती, अरुंधति, अदिति व देव साम्रागी 'सची' जैसी वेदों के गूढ़ रहस्यों का साक्षात्कार करने वाली कई विदुषी महिलाओं का पर्याप्त जिक्र हुआ है। वेदों व योगशास्त्र की प्रकांड ज्ञाता 'सती सतरूपा' तथा शास्त्रार्थ में महर्षि 'मेधतिथि' को चुनौती देने वाली प्रखर पाण्डित्य 'संध्या' जैसे विदुषी महिलाओं का उल्लेख भी ग्रंथों में हुआ है। यज्ञ को सम्पन्न कराने वाली प्रथम महिला पुरोहित का सम्मान भी विदुषी 'संध्या' को ही प्राप्त था। ऋषि पद प्राप्त करने वाली अत्रि वंश की महान् ऋषिका 'विश्ववारा' ने अपने ज्ञान बल से वेदों पर अनुसंधान कर डाला था।
वेदशास्त्र की एक अन्य महान् विदुषी गर्गवंशीय वेदज्ञ 'गार्गी' का भारतीय धर्मग्रंथों में परमज्ञानी होने का विशेष उल्लेख हुआ है। वैदिककाल के महान् ऋषि 'याज्ञवल्क्य' भी वेदों की महाज्ञाता गार्गी के दिव्य ज्ञान के आगे नतमस्तक थे। शास्त्रार्थ में कुशल ऋषिका गार्गी मिथिला में राजा 'जनक' की दरबारी भी थी। उच्चकोटी की उन विदुषी ऋषिकाओं ने अनेक विद्वानों की सभाओं में कई दार्शनिक मुद्दों व शैक्षिक चर्चाओं में भाग लेकर ऋषि मुनियों की शंकाओं का समाधान करके खुद को श्रेष्ठ साबित किया था। भारतवर्ष की वे महान् ऋषिकाएं आज की नारीशक्ति के लिए आदर्श हैं। समाजिक परिवेश में अनुशासन व सकारात्मक बदलाव लाने का माध्यम गुणवत्तायुक्त शिक्षा में ही है। महिला व पुरुषों को समान रूप से शिक्षित करने वाले देश ही उन्नति के शिखर पर पहुंचे हैं। ज्ञान, विज्ञान व संस्कारों का भूखंड रहे भारतवर्ष की शिक्षा व्यवस्था में वैदिक काल से ही नारीशक्ति की सराहनीय भूमिका रही है। कश्मीरी साहित्य की विधात्री 'लल्लेश्वरी' तथा दक्षिण की संस्कृत विदुषी 'शीलाभ_ारिका' भी इसी भारत में हुई थी। मगर मुगल आक्रांताओं के दौर में भारतीय शिक्षा की आदर्श नींव गुरुकुलों व नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों का वजूद मिटाया गया। ब्रिटिश साम्राज्य के दौर में लॉर्ड मैकाले की शिक्षा नीति से भारत में सूर्योदय का आगाज 'गुड मॉर्निंग' व सूर्यास्त 'गुड इवनिंग' से शुरू हुआ जो बद्दस्तूर जारी है। आजादी के बाद शिक्षा विभाग व शिक्षक देश की तालीमी वजारत पर आसीन सियासी हुक्मरानों की इच्छानुसार ही पढ़ाने को मजबूर हुए।
अन्यथा प्राचीनकाल से विश्व की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा व्यवस्था गुरुकुल व तक्षशिला, विक्रमशिला, वल्लभी व पुष्पगिरी जैसे श्रेष्ठ विश्वविद्यालय तथा उनमें पाणिनी, चाणक्य, शीलभद्र, श्रीधराचार्य व आर्यभ_ जैसे विश्व के सर्वश्रेष्ठ आचार्य भी इसी भारतवर्ष में हुए थे। बेशक मौजूदा दौर में देश की बालिकाएं शिक्षा क्षेत्र में नए आयाम स्थापित कर रही हैं, मगर 'मानव कंप्यूटर' के नाम से विख्यात भारतीय गणितज्ञ 'शकुंतला देवी' को सन् 1969 में फिलीपींस विश्वविद्यालय ने 'मोस्ट डिस्टिग्विश्ड वुमन ऑफ दि इयर' के अवार्ड से नवाजा था। इंपीरियल कॉलेज लंदन में गणित विषय पर शानदार प्रदर्शन के बाद सन् 1982 में शकुंतला देवी का नाम 'गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड' में शामिल हुआ था। 'फिंगरिंग द जॉय ऑफ नंबर' शकुंतला देवी की गणित विषय पर चर्चित किताब है। सन् 1956 में भारत सरकार ने छात्राओं की शिक्षा समस्याओं के समाधान के लिए 'दुर्गाबाई देशमुख' के नेतृत्व में 'राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति' का गठन किया था।
उसी समिति की सिफारिश पर शिक्षा मंत्रालय ने सन् 1965 में 'राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद' की स्थापना की थी। दुर्गाबाई देशमुख वही बहादुर महिला थी जिसने बेखौफ होकर अंग्रेजी शिक्षा के विरोध में स्कूल को अलविदा कह कर हिंदी शिक्षा के प्रचार के लिए राजमुंदरी में 'बालिका हिंदी पाठशाला' का शुभारंभ कर दिया था। मगर विडंबना है कि 'ब्रहदारण्यक' उपनिषद् के जरिए विश्व को 'तमसो मां ज्योतिर्गमय' का संदेश देने वाले 'जगत गुरु' भारत के शिक्षण संस्थानों में बर्तानिया की अंग्रेजी तालीम आज भी हुकूमत कर रही है। अंग्रेजी शिक्षा के कारण ही चिकित्सा की शिक्षा महंगी हुई, नतीजतन देश की हजारों प्रतिभाएं डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए यूक्रेन, कैनेडा व आस्ट्रेलिया जैसे देशों में जाने को मजबूर हुई। विद्यार्थियों में राष्ट्रवाद के जज्बात पैदा करने व राष्ट्रीय स्वाभिमान जगाने के लिए शिक्षा व्यवस्था मातृभाषा में होनी चाहिए। प्राचीन से भारतवर्ष का शिक्षा इतिहास गौरवशाली होने के बावजूद देश में 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का नारा बुलंद करना पड़ रहा है। मुल्क के रहबरों को इस पर मंथन करना चाहिए।
प्रताप सिंह पटियाल
लेखक बिलासपुर से हैं
By: divyahimachal
Rani Sahu
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