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- बारूद के ठिकाने
Written by जनसत्ता: पटाखे बनाने वाले कारखानों में विस्फोट होने की वजह से न जाने कितनी जानें अब तक जा चुकी हैं। मगर उन घटनाओं से सबक लेने की जरूरत शायद आज तक नहीं समझी गई। यही कारण है कि अक्सर ऐसे हादसे होते रहते हैं। भागलपुर में बारूद फटने से चौदह लोगों की मौत इसका ताजा उदाहरण है। इस घटना में बारूद का प्रभाव इतना जबर्दस्त था कि आसपास के तीन-चार मकान भी ध्वस्त हो गए।
हालांकि अभी बारूद फटने की वजह स्पष्ट नहीं हो सकी है। मगर कयास लगाए जा रहे हैं कि वहां काफी मात्रा में बारूद जमा था। जिस जगह यह विस्फोट हुआ वह पुलिस थाने से कुछ ही दूरी पर बताई जा रही है। हालांकि देश में पर्यावरण प्रदूषण के मद्देनजर पटाखों के निर्माण पर प्रतिबंध है। त्योहारों आदि पर हरित पटाखे बनाने और चलाने की ही अनुमति है। मगर शादी-विवाह आदि के मौकों पर भी अब इस कदर आतिशबाजी का चलन बढ़ा है कि साल भर पटाखों की मांग बनी रहती है। ऐसे में पटाखे बनाने वाले कानून की नजर में धूल झोंक कर इनका निर्माण करते रहते हैं। मगर भागलपुर की घटना को लेकर स्वाभाविक ही कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
इतनी भारी मात्रा में बारूद वहां किस तरह और किस लिए इकट्ठा किया गया। भागलपुर यों पटाखे के कारोबार के लिए जाना भी नहीं जाता। दक्षिण के शिवकाशी जैसे कुछ शहरों में पटाखों का उत्पादन भारी मात्रा में होता है और वहीं से पूरे देश में उनकी आपूर्ति होती है। जिन लोगों को पटाखे बनाने के लाइसेंस दिए जाते हैं, उन्हें रिहाइशी बस्तियों से दूर कारखाना स्थापित करने को कहा जाता है। मगर भागलपुर में सघन रिहाइशी इलाके में यह बारूद जमा किया गया था। हालांकि कुछ लोगों ने बताया कि वहां पटाखे बनाए जाते थे।
यानी उसके लिए लाइसेंस नहीं लिया गया होगा, तभी रिहाइशी इलाके में वह कारोबार चल रहा था। मगर चोरी-छिपे इतने बड़े पैमाने पर पटाखे बनाए जा रहे थे और पुलिस को इसकी भनक कैसे नहीं लगी। जांच कर रहे पुलिस कर्मियों का कहना है कि विस्फोट के बाद बारूद के नमूने कई किलोमीटर दूर तक बिखरे पाए गए हैं। इसलिए कुछ लोगों का शक इस बात को लेकर भी है कि इतनी भारी मात्रा में बारूद जुटाने के पीछे मकसद पटाखे बनाना नहीं, बल्कि बम वगैरह जैसे शक्तिशाली विस्फोटक बनाने का था। सरकार ने वहां के पुलिस अधिकारी को निलंबित करके अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है, मगर इसका कितना सकारात्मक असर होगा, दावा नहीं किया जा सकता।
पटाखा निर्माण का काम कई दृष्टियों से हानिकारक और जोखिम भरा है। न केवल इन कारखानों में आग लगने से कई जानें चली जाती हैं, बल्कि उनमें काम करने वालों के फेफड़ों में सांस के जरिए बारूद जमा होने से वे जानलेवा बीमारियों की गिरफ्त में आ जाते हैं। शिवकाशी आदि के पटाखा कारखानों पर अनेक अध्ययन हो चुके हैं, जिनके नतीजे इनमें काम करने वालों की सेहत को लेकर गंभीर चिंता पैदा करते हैं। मगर सरकारें इस धंधे को लेकर कोई कठोर कदम नहीं उठा पातीं। सर्वोच्च न्यायालय के बार-बार आदेश के बावजूद इस कारोबार पर लगाम नहीं लग पाई है। आखिर पल भर की खुशी के लिए फोड़े जाने वाले पटाखे कितनी जिंदगियों को जोखिम में डालते हैं, इस पर कब गंभीरता से विचार किया जाएगा। इसका कोई सुरक्षित और व्यावहारिक तरीका भी तो निकाला जा सकता है।