सम्पादकीय

गुलशन का कारोबार

Subhi
16 Jun 2022 5:14 AM GMT
गुलशन का कारोबार
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युग बदल गया। युग के बदलने के साथ-साथ ऊपर से नीचे तक के लोगों के रंग भी कुछ इस तरह से बदले कि गिरगिट भी उन्हें अपनाने से शरमाने लगे। मगर शर्मिंदगी क्यों? संघर्ष नहीं, आज तो समझौता-परस्ती की आवाज है। कर्म नहीं, आज तो राहत और रियायत संस्कृति के लिए फैले हुए हाथ हैं।

सुरेश सेठ: युग बदल गया। युग के बदलने के साथ-साथ ऊपर से नीचे तक के लोगों के रंग भी कुछ इस तरह से बदले कि गिरगिट भी उन्हें अपनाने से शरमाने लगे। मगर शर्मिंदगी क्यों? संघर्ष नहीं, आज तो समझौता-परस्ती की आवाज है। कर्म नहीं, आज तो राहत और रियायत संस्कृति के लिए फैले हुए हाथ हैं। भूखे को मरने न देने की कसमें हैं, लेकिन उसे काम देने की बात न कीजिए। उसे काम मिलेगा तो डिजिटल संस्कृति में स्वचालित मशीनों का भविष्य कहीं खो न जाए। इसलिए आइए, आम लोगों के लोक से अधिक उनके परलोक की चिंता करें। जी हां, यही नया सच है।

नई सदी आ गई है, लोगों की समझ बदल गई है। बात का लहजा बदल गया है। जीने का तौर-तरीका बदल गया है। आज वही कामयाब है जो मौका देख कर केंचुल बदल जाए। गरीब का हित साधने की बात तो ऐसा टकसाली सिक्का है, जो हर पैंतरा बदलता उसे बैसाखी के रूप में अपनाता है। फिर सरकार का दायित्व, प्रशासन में असमंजस को खत्म करना और क्रांति के लिए देर आयद दुरुस्त आयद की नई शब्दावली सामने आ जाती है।

भक्तजनों के झांझ मंजीरों के स्वर तेज हो जाते हैं। हर बार ऐसा होता है। जो क्रांतिधर्मी नेता सरकार-विरोधी लहर का परचम लहरा रहे थे, उन्होंने चुनाव परिणाम देख कर अपने धुर-विरोधी को विजेता बनते देख उसका चंवर डुलाने लगते हैं। इतिहास के नए पन्ने खुल जाते हैं। बताया जाता है कि बाप-दादा के जमाने से ही वे लोग एक साथ चलने का इतिहास जी चुके हैं। सवाल अब नया इतिहास बनाने का है। जो विजेता है, वही त्राता है। हम तो अपने भले के लिए ही उनके हाथ बिक गए। वादा करते हैं कि हम रंग बदलने के बाद भी रियाया का ध्यान रखेंगे। जनाब अकबर इलाहाबादी भी फरमा गए हैं, 'हाकम को बहुत फिक्र है रियाया की, लेकिन अपना डिनर खाने के बाद।'

जन-हितैषी पुरानी घोषणाओं के मृत होते ही नई घोषणाएं जन्म ले लेती हैं। 'आया राम गया राम' का चलन पुराना हो गया। समझौता-परस्ती सुविधाजनक ही नहीं, सम्मानजनक बन गई। दावों और घोषणाओं का क्या है? फैशन बदल जाने के साथ जैसे पुराने कोट उतर जाते हैं, और नए उनका स्थान ले लेते हैं, इसी तरह नए दावे और नई घोषणाएं हवा में तैरने लगती हैं। सब में किसान, मजदूर और आम आदमी के जीवन के कायाकल्प की बातें हैं। महंगाई नियंत्रण के वादे हैं। भ्रष्टाचार उन्मूलन की कसमें हैं।

कोई नहीं पूछता कि साब कल तो आप यही नारे कोई और झंडा उठा कर लगा रहे थे? परिणाम आते ही झंडे का रंग बदल गया। समझते नहीं आप, नाम में क्या रखा है? झंडे का रंग बदल गया तो क्या, इसमें सत्ता की तासीर तो है, जो हमारी ही नहीं, आपकी सेहत के लिए भी माफिक है। अब सबके छोटे-बड़े काम आसानी से हो जाएंगे। आपके भी, और हमारे भी। जनता जय-जय चिल्लाती है। जीते हुए की विजय यात्रा में शरीक हो जाती है। कल जो उनके विरुद्ध भाषण करते थकते नहीं थे, आज उनके गले का हार हो गए।

पूछो, यह गिरगिटिया अंदाज क्यों अपनाया? तो कह देंगे, आपको त्रिशंकु सभा से बचाया। यह गरीब देश बार-बार चुनावों का बोझ नहीं सह सकता। लेकिन केवल राजनीति रंग नहीं बदलती। आज वायु प्रदूषण इतना नहीं बढ़ा, जितना फिजाओं में समझौता-परस्ती बढ़ गई है। वह कहानी तो आपने सुनी ही होगी। एक जुझारू कामगार अपनी तंगदस्ती से परेशान हो कु्रद्ध तेवर के साथ अपने मालिक के पास गया। चिल्लाया, 'मालिक, मेरी तन्ख्वाह बढ़ा दीजिए। नहीं तो…। 'नहीं तो…', मालिक तो मालिक था, उसने भी आंखें दिखाई। कामगार तुतलाने लगा, 'नहीं तो, नहीं तो मालिक मैं इसी तन्ख्वाह पर काम कर लूंगा।'

बात पुरानी है, लेकिन इसका नया असमाजवादी तेवर यह है, कि जो राजा हंै वे राजा रहेंगे, और जो रंक हैं वे रंक रहेंगे। यह राजा को फैसला करना है कि उसे रंक के साथ कैसा व्यवहार करना है। उसे रखना है कि निकालना है। रंक का काम जवाब में गदगद होना है। वह आज के कामगार बखूबी निभा रहे हैं। सरकार भी उनकी सुविधा का पूरा-पूरा ध्यान रखती है। पिछले दिनों कानून बना था, कि उत्सव त्योहारों पर जनता अधिकारियों को तोहफों की डलिया भेंट नहीं करेगी।

भेंट करोगे तो भ्रष्टाचार निरोधक कानून के अंतर्गत मुजरिम कहलाओगे। मगर आई दीवाली, तो कानून में एक समझौता-परस्त संशोधन हो गया। नहीं-नहीं, हर उत्सव की गरिमा होती है। आपको देना ही है, तो दे दीजिए। मगर, उपहार की कीमत पांच हजार रुपए से अधिक न हो। लीजिए, तोहफा लेने और देने वालों ने राहत की सांस ली। नेपथ्य में बजती संगीत धुन से गजल उभरी, 'चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले।' चलिए साहब, गुलशन का कारोबार चल रहा है।

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