सम्पादकीय

Gulf Countries: खाड़ी देशों में प्रवासी मजदूरों की पीड़ा, अंतरराष्ट्रीय कानूनों की अवहेलना

Neha Dani
3 Dec 2022 2:52 AM GMT
Gulf Countries: खाड़ी देशों में प्रवासी मजदूरों की पीड़ा, अंतरराष्ट्रीय कानूनों की अवहेलना
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मुआवजा तंत्र भी मौजूद है। -साथ में कैरोलिन हॉयल और लुसी हैरी
राजस्थान के हनुमानगढ़ में मुख्यमंत्री बाल गोपाल योजना के तहत टाउन के सेठ राधाकिशन बिहाणी राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय में दूध पीने से आज 16 बच्चियों की तबीयत बिगड़ गई. दूध पीने के बाद बच्चियों ने घबराहट, सिरदर्द और उल्टी होने की शिकायत की, जिसके बाद बच्चियों को तुरंत जिला चिकित्सालय के ट्रामा सेंटर में भर्ती करवाया गया. जहां उनका उपचार चल रहा है. वहीं इस घटना से जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग के अधिकारियों में हड़कंप मच गया है. बड़ी बात यह है कि हनुमानगढ़ जिले में मुख्यमंत्री बाल गोपाल योजना का शुभारंभ इसी स्कूल से जिला कलक्टर रुक्मणि रियार ने किया था.
योजना शुभारंभ के बाद आज पहली बार ही बच्चियों को दूध पिलाया गया था और पहली बार में ही बच्चियों की दूध पीते ही तबीयत बिगड़ गई. घटना के बाद शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन के अधिकारी भी चिकित्सालय पहुंचे और बच्चियों से मुलाकात की, वहीं जिला चिकित्सालय से नर्सिंग स्टाफ ने भी स्कूल जाकर अन्य बच्चियों के स्वास्थ्य संबंधी जानकारी ली है.
कक्षा एक से आठवीं तक के छात्रों को दिया जाएगा दूध
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंगलवार को सीएमआर से मुख्यमंत्री बाल गोपाल योजना और मुख्यमंत्री निशुल्क यूनिफॉर्म योजना की वर्चुअल शुरुआत की थी. यह कार्यक्रम जिला, ब्लॉक, ग्राम पंचायत मुख्यालय और स्कूल स्तर पर सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग के माध्यम से वीसी के जरिए प्रसारित किया गया था. हनुमानगढ़ में कलक्ट्रेट सभागार में जिला प्रमुख कविता मेघवाल, कलेक्टर रुक्मणि रियार, पंचायत समिति प्रधान प्रतिनिधि दयाराम जाखड़, जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक हंसराज जाजेवाल सहित अन्य जिला स्तरीय अधिकारी और जनप्रतिनिधि वर्चुअल कार्यक्रम में मौजूद रहे थे.
कतर के अधिकारी प्रवासी श्रमिकों को गिरफ्तार करने, हिरासत में लेने या मौत की सजा के लंबित मुकदमों की स्थिति में संबंधित दूतावासों को सूचित न करके अंतरराष्ट्रीय कानूनों की अवहेलना कर रहे हैं। हमारे नए आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2016 और 2021 के बीच कम से कम 21 लोगों को कतर में मौत की सजा दी गई थी। इन 21 मामलों में से केवल तीन मामलों में कतर के नागरिक शामिल थे। शेष 18 विदेशी नागरिक थे: जिसमें सात भारत से, दो नेपाल से, पांच बांग्लादेश से, एक ट्यूनीशियाई और अज्ञात राष्ट्रीयता के तीन एशियाई शामिल थे।
दिसंबर 2017 में, नेपाली प्रवासी श्रमिक अनिल चौधरी को कतर के एक नागरिक की हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी सजा की बीस साल की अवधि से पहले मई, 2020 में फायरिंग दस्ते द्वारा उसे मार दिया गया। हमें पता चला है कि नेपाली दूतावास को केवल एक दिन पहले उसकी निर्धारित फांसी के बारे में सूचित किया गया था, जिससे उन्हें न्यायिक प्रक्रिया के इस अंतिम चरण में सार्थक समर्थन प्रदान करने के लिए अपर्याप्त समय मिला। हालांकि हमें अपराध की परिस्थितियों के सभी विवरण मालूम नहीं हैं, लेकिन हर आरोपी को उसके कथित अपराध की गंभीरता की परवाह किए बिना कानूनी बचाव का अधिकार मिलना चाहिए, जो चौधरी को नहीं दिया गया।
कतर फीफा विश्व कप की मेजबानी के लिए सुर्खियों में है, लेकिन उसे मानवाधिकार रिकॉर्ड के लिए भी सुर्खियों में रहना चाहिए। चौधरी उन अदृश्य कार्यबल में से एक था, जिन्हें नियत न्याय प्रक्रिया से वंचित किया जाता है। कतर ने भी 1998 में विएना संधि को स्वीकार किया था, जिसके तहत यदि किसी विदेशी नागरिक को गिरफ्तार किया जाता है, या हिरासत में लिया जाता है या किसी दूसरे देश में उस पर मुकदमा चलाया जाता है, तो मेजबान देश के अधिकारियों को बिना किसी देरी के उस व्यक्ति को सूचित करना चाहिए कि वे अपने दूतावास को सूचित करने के हकदार हैं और यदि वह व्यक्ति अनुरोध करता है, तो संबंधित देश के वाणिज्य दूतावास को तुरंत सूचित करना चाहिए। लेकिन हमने अपने शोध में पाया कि कतर के अधिकारी व्यवहार में इस समझौते का सम्मान नहीं करते हैं। हमने पाया कि पूरे खाड़ी क्षेत्र में प्रवासी श्रमिकों को अपनी भाषा बोलने वाले वकीलों तक पहुंच के बिना अपराधों का दोषी ठहराया गया और उचित सजा के बाद की समीक्षा प्रक्रियाओं या सहायता के बिना फांसी दे दी गई।
आश्चर्यजनक रूप से, कतर में आबादी के अनुपात में दुनिया के सबसे ज्यादा प्रवासी नागरिक रहते हैं। वहां प्रवासी श्रमिक देश के कुल कार्यबल का 94 फीसदी हैं और देश की कुल आबादी के 86 फीसदी। दरअसल, 2010 में फीफा विश्व कप की घोषणा के बाद से कतर की जनसंख्या में 40 फीसदी की वृद्धि हुई है, जिसमें बड़े पैमाने पर अकुशल प्रवासी श्रमिक हैं। फिर भी वे प्रवासी श्रमिक, जिसमें ज्यादातर नेपाल, भारत और बांग्लादेश के हैं, बेहद अस्थायी और शोषित हैं। हमारे नए सबूत यह भी दर्शाते हैं कि जिन बड़े अपराधों के लिए पूरे खाड़ी क्षेत्र में प्रवासी श्रमिकों को दोषी ठहराया जाता है, वे उनके अनिश्चित प्रवास और आर्थिक स्थितियों से जटिल रूप से जुड़े हुए हैं। प्रवासी श्रमिकों, विशेष रूप से विश्व कप के बुनियादी ढांचे पर काम करने वाले लोगों के दुर्व्यवहार के बारे में भयानक सबूत सामने आए हैं, जिनकी आमतौर पर गर्मी, थकावट, अपर्याप्त भोजन और पानी, अपर्याप्त चिकित्सा प्रावधान और खराब सुरक्षा नियमों के कारण मृत्यु हो गई है।
विदेशों में मौत की सजा का सामना करने पर विदेशी नागरिक विशेष रूप से कमजोर होते हैं। उदाहरण के लिए, कतर के कानून के तहत, केवल कतर के वकील ही आरोपियों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं, और इस प्रकार विदेशी आरोपी अपने देश का वकील नियुक्त नहीं कर सकता है, जो उनकी भाषा जानता हो और उनकी स्थिति से बेहतर परिचित हो। 1950 के दशक के बाद से अल्पकालिक प्रवास की सुविधा के लिए काफला प्रणाली शुरू हुई, जिसमें प्रवासियों के नागरिकता प्राप्त करने की कोई संभावना नहीं थी। इस व्यवस्था के तहत एक प्रवासी श्रमिक को किसी खाड़ी नागरिक (जो उसका कफील बन जाता है) द्वारा प्रायोजित होना चाहिए। मेजबान देश में एक श्रमिक की कानूनी स्थिति उसके रोजगार और कफील के साथ उसके संबंधों पर निर्भर करती है। यह निर्भरता अकुशल श्रमिकों को कठोर काम करने और विकट स्थिति में रहने के लिए मजबूर करती है। कुछ प्रवासी श्रमिक दूसरों की तुलना में अधिक असुरक्षित होते हैं-विशेष रूप से घरेलू कामगार, जो अनियमित घरेलू क्षेत्र में काम करते हैं, और श्रम कानूनों के दायरे में नहीं आते हैं। प्रवासी श्रमिक ट्रेड यूनियनों या हड़ताल में शामिल नहीं हो पाते हैं।
यदि वे नियोक्ता की अनुमति के बिना रोजगार छोड़ते हैं, या अपने अस्थायी वीजा की अवधि के बाद देश में रहते हैं, तो उन्हें जुर्माना, हिरासत, निर्वासन और पुन: प्रवेश पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ता है। कफाला व्यवस्था पूरे क्षेत्र में संचालित होती है और पूरे खाड़ी क्षेत्र में मौत की सजा में प्रमुख भूमिका निभाती है। मृत्युदंड के अन्य मामलों में से अधिकांश सऊदी अरब में थे, जहां विदेशी लोगों को नशीले पदार्थों के अपराध 60 फीसदी (385 में से 221 मामले) मौत की सजा के लिए जिम्मेदार थे। हमने यह भी पाया कि इस अवधि के दौरान सऊदी अरब में 130 विदेशी नागरिकों को मौत की सजा दी गई। संयुक्त अरब अमीरात में हमने पाया कि 114 विदेशी नागरिकों हत्या के आरोप में मौत की सजा का सामना कर रहे थे। इनमें से ज्यादातर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के थे। हमें कम से कम 27 भारतीय पुरुषों का पता चला, जिन्हें शराब की तस्करी से संबंधित हिंसक अपराधों के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी। हमने पाया कि पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान, भारत, ओमान और सऊदी अरब के 31 विदेशी नागरिकों को मादक पदार्थों की तस्करी के लिए मौत की सजा सुनाई गई।
फीफा विश्व कप के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण में शामिल श्रमिकों को टूर्नामेंट शुरू होने से कुछ महीने पहले घर भेज दिया गया। फीफा ने कहा है कि उसे मेजबान देश की ऐसी किसी नीति की जानकारी नहीं है। उसका यह भी कहना है कि कतर में श्रमिकों के अधिकारों और श्रम स्थितियों पर प्रगति हो रही है और मुआवजा तंत्र भी मौजूद है।

सोर्स: अमर उजाला

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