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लगभग 108 वर्ष पूर्व प्रथम विश्वयुद्ध के तुरंत बाद 1915 में पंजाब के गांव गुलेर वासी (अब हिमाचल प्रदेश) चंद्रधर शर्मा गुलेरी द्वारा लिखी विश्व प्रसिद्ध हिन्दी की श्रेष्ठ कहानी ‘उसने कहा था’ जिस पर 1960 में हिन्दी फिल्म का निर्माण भी हो चुका है, जिसमें मोनी भट्टाचार्य के निर्देशन में सुनील दत्त तथा नंदा सरीखे फिल्मी सितारों ने अदाकारी की थी, करीब 50 वर्ष पूर्व इस विलक्षण प्रेमकथा को पढऩे के उपरान्त मेरे मन में गुलेर गांव जाकर नतमस्तक होने की तीव्र उत्कंठा पैदा हुई थी जिस गांव के सपूत ने कालजयी कहानी का सृजन किया था। गुलेर गांव हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में स्थित है। अपने गांव गुलेर से गुलेरी उपनाम को जोड़ा तो गुलेरी शब्द समस्त दुनिया में मान-सम्मान का प्रतीक बन गया। यह कहानी अमृतसर की तंग गलियों तथा व्यस्त बा•ाार में तांगा चलाने वाले के पंजाबी में बोले गये संवादों से आरम्भ होती है। गांव गुलेर भ्रमण की मेरी चिरकालिक इच्छा हिमाचल के प्रसिद्ध लेखक राजेन्द्र राजन के सौजन्य से पूरी हो सकी। प्राकृतिक हसीन न•ाारों से सराबोर अपने में ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत समेटे गांव गुलेर जाने का सुखद संयोग बन गया।
चंद्रधर शर्मा गुलेरी का जन्म 7 जुलाई, 1883 तथा मात्र 39 वर्ष की आयु में 12 सितम्बर, 1922 को निधन हो गया। 1995 में उनकी लिखी शाहकार रचना, ‘उसने कहा था’ प्रसिद्ध पत्रिका ‘सरस्वती’ में प्रकाशित होते ही चर्चा का विषय बन गई। यह कहानी देश-विदेश के विद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल है तथा इस पर अनेकों शोध कार्य हो चुके हैं। 1405 में तत्कालीन राजा हरिचंद ने गुलेर रियासत की नींव रखी थी तथा हरिपुर को इसकी राजधानी बनाया था। यहां की संस्कृति विशेषकर चित्रकला ने 17-18वीं सदी में कांगड़ा चित्रकला के रूप में विश्वख्याति अर्जित की। इस ऐतिहासिक गांव को विरासती गांव का दर्•ाा प्राप्त हो चुका है। गुलेर गांव आज राजा हरि चंद तथा ‘उसने कहा था’ के लेखक चंद्रधर शर्मा के कारण विश्व प्रसिद्ध है। गुलेर गांव, पठानकोट से वाया जोगेन्द्रनगर नैरोगे•ा रेलवे लाईन से जुड़ा हुआ है। 1928 में यहां रेलवे स्टेशन स्थापित हुआ। 18वीं सदी में यहां के कलाकारों ने पेंटिंग की एक ऐसी शैली विकसित की जो अध्यात्मिकता की भावना से ओत-प्रोत है। हरिपुर गुलेर की पहाडिय़ों में राजा हरिचंद द्वारा निर्मित किले के खंडहर, मन्दिर तथा गुफाएं मौजूद हैं, जिनका सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक रूप से बहुत महत्व है। गांव गुलेर में लगभग चार सौ परिवार रहते हैं। वर्तमान में यहां की जनसंख्या 1700 के लगभग है। हम गुलेर में रहते चंद्रधर शर्मा गुलेरी के पौत्रों डॉ. नंद किशोर परिमल तथा बृजेश गुलेरी से मिले। उनका सलेटों तथा कच्ची मिट्टी की दीवारों वाला पुश्तैनी मकान आज भी सुरक्षित है, जहां चंद्रधर शर्मा गुलेरी का बचपन बीता था। यहां उनके पूर्वज सांझे परिवार के रूप में रह रहे थे। उस कच्चे घर की बगल में दो मंजिला ‘चंद्रभवन’ भी उनके पड़पौत्र विकास गुलेरी द्वारा निर्मित किया गया है जहां चंद्रधर शर्मा गुलेरी अपने राजस्थान प्रवास के दौरान कभी-कभी गुलेर गांव में आकर ठहरते थे।
गुलेरी जी के पौत्र डॉ. पीयूष गुलेरी ने चंद्रधर शर्मा गुलेरी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर शोध करके पीएचडी डिग्री हासिल की थी तथा उनके दूसरे भाई डॉ. प्रत्यूष गुलेरी ने चंद्रधर शर्मा की सभी रचनाओं को एक वृहदग्रंथ के रूप में संरक्षित किया है जिसे भारत की प्रतिष्ठित संस्था भारतीय साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित किया गया है। उन्होंने ‘उसने कहा था’ कहानी की हस्तलिखित तथा गुलेरी जी से संबंधित कई दुर्लभ चित्रों को अमूल्य धरोहर के रूप में संभाला हुआ है। यह बात किसी कौतुक से कम नहीं है कि चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने ज्यादा लेखन निबंध विधा में किया था। सम्पूर्ण जीवन में उन्होंने मात्र चार कहानियां ही लिखीं। तीन पूरी तथा एक अधूरी। उसने कहा था, सुखमय जीवन तथा बुद्धू का कांटा। चौथी अधूरी कहानी है ‘हीरे का हार’, जिसे हिमाचल के ही प्रसिद्ध कथाकार डॉ. सुशील कुमार फुल्ल ने पूरा करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। मात्र तीन कहानियां लिख कर ही चंद्रधर शर्मा गुलेरी हिन्दी कथा जगत में अमर हो गए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राज्यों के बंटवारे के कारण यह विरासत हिमाचल के हिस्से में चली गई है, लेकिन जब यह कहानी लिखी गई और इस पर फिल्म बनी तथा विश्वप्रसिद्धी प्राप्त हुई तब गांव गुलेर का लेखक महापंजाब का ही मूल निवासी था। यह मान पंजाब की •ारखे•ा धरती को ही जाता है। इस कहानी की पृष्ठभूमि अमृतसर (पंजाब) की ही है। हिमाचल प्रदेश कला तथा संस्कृति विभाग द्वारा चंद्रधर शर्मा गुलेरी के नाम पर प्रतिष्ठित पुरस्कार स्थापित किया गया है। गांव हरिपुर गुलेर के राजकीय महाविद्यालय का नाम भी चंद्रधर शर्मा गुलेरी के नाम पर ही रखा गया है। गुलेर गांव एक ऐसी अन्य विशेषता के कारण प्रसिद्ध है, जिसका उदाहरण शायद ही विश्व भर में कहीं मिलेगा। यह कि गुलेर गांव में सभी धर्मों, जातियों, गोत्रों के लोग रहते हैं।
उनकी जातियों के हिसाब से अलग-अलग मोहल्ले भी हैं, लेकिन सारे गांववासी विश्व प्रसिद्ध चंद्रधर शर्मा गुलेरी के कारण अपने नाम के साथ अपना गोत्र या जाति लिखने की बजाय ‘गुलेरी’ लिखने में ही मान महसूस करते हैं। यह रुझान नयी पीढ़ी में भी कायम है। एक लेखक की कृति ने कितने बड़े सामाजिक परिवर्तन को अं•ााम दिया कि लोग अपनी जान-पहचान जाति-पाति से कायम रखने के स्थान पर लेखक के उपनाम ‘गुलेरी’ से अपनी पहचान स्थापित कराने हेतु प्रेरित हुए। इस महान लेखक की वर्तमान पीढ़ी ने अपनी मेहमाननवाजी, मिलनसारता, मीठे वचनों, सादगी, सरलता व सहयोग से हमें अपना बना लिया। गुलेर गांव में गुलेरी जी की स्मृति में वार्षिक एकत्रताएं आयोजित होती हैं तथा देश-विदेश से शोधार्थी, विद्वान, पर्यटक तथा साहित्यिक यात्री यहां आते है। गांव गुलेर एक साहित्यिक तीर्थ स्थान का दर्•ाा प्राप्त कर चुका है।
डा. धर्मपाल साहिल
साहित्यकार
By: divyahimachal
Rani Sahu
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