सम्पादकीय

Gujrat New CM Bhupendra Patel: राजनीति में सरप्राइज किंग बन गए हैं पीएम मोदी

Rani Sahu
13 Sep 2021 8:05 AM GMT
Gujrat New CM Bhupendra Patel: राजनीति में सरप्राइज किंग बन गए हैं पीएम मोदी
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रविवार सुबह अहमदाबाद के उपनगर बोपल में सड़क के नज़दीक विधायक भूपेंद्र पटेल हरियाली बढ़ाने के लिए पेड़ लगा रहे थे

कल्पक केकरे। रविवार सुबह अहमदाबाद के उपनगर बोपल में सड़क के नज़दीक विधायक भूपेंद्र पटेल हरियाली बढ़ाने के लिए पेड़ लगा रहे थे तो उन्हें शायद आभास भी नहीं था कि दिल्ली के लोककल्याण मार्ग से बतौर मुख्यमंत्री उनका नाम गुजरात आ चुका है. गुजरात की राजनीति में विजय रूपाणी के इस्तीफे से आए भूचाल के बाद बतौर सीएम भूपेंद्र पटेल के नाम की घोषणा सभी के लिए चौंकाने वाली थी. पीएम नरेंद्रभाई मोदी को राजनीति में सरप्राइज़ देने का उस्ताद माना जाता है. जो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में हो उससे अलग अचानक एक ऐसा नाम सामने आता है जो टॉप 20 संभावित की लिस्ट में भी नहीं था.

भूपेंद्र पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाये जाने से साफ़ है कि देश की कमान संभाल रहे प्रधानमंत्री मोदी अपने गृहराज्य को लेकर आज भी कितने संजीदा हैं. गुजरात पर मोदी की मजबूत पकड़ बरकरार है. पटेल को चुनकर मोदी ने एक दांव से कई निशाने लगा लिए हैं.
पाटीदार पावर!
खुद नरेन्द्रभाई के दौर में भी पटेल समुदाय के एक तबके ने बीजेपी से बगावत के सुर निकाले थे, गुजरात की नब्ज़ से वाकिफ मोदी ने तब आसानी से मामला निपटा दिया था. यही नहीं उनके दिल्ली जाने और आनंदीबेन पटेल को सीएम पद से हटाए जाने के दौरान हुए पाटीदार आंदोलन की आंच को मोदी लहर ने ठंडा कर दिया. लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी सीटें बीजेपी की झोली में जाना मोदी की पटेल समाज में लोकप्रियता अडिग होने का परिचायक था, और विधानसभा चुनावों में मोदी फैक्टर ने ही पटेल आंदोलन के थपेड़ों से पार्टी की नैया को बचाकर सत्ता के किनारे पहुंचाया. गुजरात यदि बीजेपी की प्रयोगशाला है तो इसके आइंस्टीन नरेन्द्रभाई मोदी ही हैं, पटेल समुदाय परम्परागत रूप से पिछले ढ़ाई दशक से बीजेपी के साथ रहा है.
गुजरात के नए सीएम होंगे भूपेंद्र पटेल
पार्टी के पहले सीएम केशुभाई के दौर में संगठन नरेंद्रभाई के गणित से ही सरकार बनाने का लक्ष्य हासिल कर पाया. बीजेपी की रीढ़ माने जाने वाले इस समुदाय का 15-20 फीसदी वोट पर वर्चस्व है, राजनीतिक रूप से जागरूक पटेल समाज आरक्षण की मांग को लेकर अड़ गया, वहीं से बीजेपी के साथ उनके रिश्तों में खटास शुरू हुई. 2021 के विधानसभा चुनाव में पाटीदारों का गुस्सा मोल लेना पार्टी को भरी पड़ सकता था, वो भी तब जब कोरोना की चुनौती और कार्यकर्ताओं में अधिकारी राज को लेकर सुगबुगाहट तेज हो रही थी. मोदी ने पार्टी के कथित बड़े पाटीदार नेताओं की असफलता को ध्यान में रखते हुए कुछ साल पहले सामान्य कार्यकर्ता से पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल को चुना.
पटेल मोदी के सीएम कार्यकाल में अहमदाबाद नगरपालिका के पार्षद, स्टैडिंग कमिटी चेयरमेन रह चुके हैं, वे दो बार मेमनगर नगर पालिका के प्रमुख भी थे. पार्टी नेताओं का मानना है की पेशे से बिल्डर भूपेंद्र पटेल की छवि आम आदमी वाली रही है. पटेल समाज की महत्वपूर्ण संस्थाओं सरदार धाम और विश्व उमिया फाउंडेशन में उनकी सक्रिय भूमिका है. उनका चयन पाटीदार समाज के लिए सीधे पीएम की ओर से आई सौगात है.
गुटबाजी से ऊपर
राज्य बीजेपी में एक अरसे से पीएम मोदी के दो नज़दीकी नेताओं अमितभाई शाह और आनंदीबेन पटेल के समर्थकों के बीच खेमेबाज़ी और खींचतान की चर्चा होती रही है. भूपेंद्र पटेल के चयन से पीएम ने इस मुद्दे पर भी विराम लगा दिया है, अमितभाई के पुराने विधानसभा क्षेत्र घाटलोडिया से 2017 में चुनकर आये पटेल को उनकी सहमति तो हासिल है ही, साथ ही भूपेंद्र पटेल को आनंदीबेन पटेल का नज़दीकी भी माना जाता है. बेन जब सीएम थीं तब भूपेंद्र पटेल AUDA यानि अहमदाबाद शहरी विकास प्राधिकरण के मुखिया बनाये गए थे. सत्ता के गलियारों में उनका चयन पीएम की सूझबूझ का परिणाम बताया जा रहा है.
क्या है चुनौती
पटेल के सामने चुनौती रहेगी पार्टी के पाले में पाटीदार समाज का साथ सुनिश्चित करने की. उन्हें संगठन से तालमेल पर भी ध्यान देना होगा, सीधे पीएम की पसंद के तौर पर आये पार्टी अध्यक्ष सीआर पाटिल अनुभव और राजनीति में उनसे सीनियर हैं. पार्टी नेताओं की एक बड़ी फ़ौज है जो भूपेंद्र पटेल से कहीं ज्यादा वरिष्ठ हैं इन नेताओं को साथ लेकर चलना चुनौती भरा होगा. राज्य स्तर पर प्रशासन के अनुभव की कमी के चलते वो गुजरात में अधिकारी राज की छवि मिटा कर किस तरह सख्त प्रशासक बनेगें देखना दिलचस्प होगा. पीएम का आशीर्वाद तो मिला है पर पीएम के दिए लक्ष्यों को हासिल करना सबसे बड़ी परीक्षा होगी.
विजय रूपाणी के बाद गुजरात का सीएम कौन इस सवाल पर आखरी समय तक नेताओं और राजनीतिक विश्लेषकों को कयास में उलझे रहना पड़ा और अप्रत्याशित रूप से भूपेंद्र पटेल को आगे कर नरेंद्र मोदी ने फिर साबित कर दिया कि सरप्राइज देने के मामले में उनका कोई सानी नहीं.


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