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हिमाचल की सत्ता मिलने से हौसला बढ़ेगा, लेकिन उसके लिए जूझने और लड़ने का स्वयं में जुनून पैदा करने का संदेश भी इसमें छिपा हुआ है।
हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभाओं के नतीजे आ चुके हैं। गुजरात में जहां भाजपा ने अपनी बादशाहत कायम रखी है, वहीं हिमाचल प्रदेश में उसे अपनी सत्ता गंवानी पड़ी है, जहां कांग्रेस ने थोड़े-से अंतर से बहुमत हासिल कर लिया है। चुनाव के इन नतीजों से एक बात जो स्पष्ट होती है, वह यह कि गुजरात में नरेंद्र मोदी अजेय हैं। सत्ताइस साल के सत्ता विरोधी रुझान के बावजूद विधानसभा चुनाव में इस तरह का प्रदर्शन कोई सामान्य बात नहीं है। और वह भी तब, जब भाजपा को तीन बार अपने मुख्यमंत्री बदलने पड़े। अगर भाजपा के मुख्यमंत्रियों से जनता नाराज नहीं रहती, तो भाजपा अपने मुख्यमंत्रियों को क्यों बदलती! हालांकि भाजपा का गुजरात में जीतना लगभग तय था, क्योंकि वह प्रधानमंत्री और गृहमंत्री, दोनों का गृह प्रदेश है, फिर भी मोदी ने वहां अपनी सारी ताकत झोंक दी और 30 से ज्यादा रैलियां कीं।
उनका मकसद था कि माधव सिंह सोलंकी के 149 सीटें जीतने का रिकॉर्ड तोड़ा जाए, और उन्होंने वह रिकॉर्ड तोड़ दिया। गौरतलब है कि वर्ष 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के नेता माधव सिंह सोलंकी ने सोशल इंजीनियरिंग करके 149 सीटों पर जीत हासिल की थी, जो एक रिकॉर्ड था। इस बार भाजपा ने लगातार सातवीं बार गुजरात में जीत हासिल की है। इससे पहले वामपंथी दलों ने पश्चिम बंगाल में लगातार सातवीं बार जीत हासिल की थी। यह भी भाजपा के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। अगर भाजपा ने सिर्फ सीटें ही जीती होतीं और उसका वोट शेयर पिछली बार के मुकाबले नहीं बढ़ता, तो कहा जा सकता था कि विपक्षी दलों में वोटों का बंदरबांट हो गया, इसलिए भाजपा जीत गई है। लेकिन भाजपा ने सिर्फ सीटें ही नहीं जीती हैं, बल्कि लगभग चार फीसदी उसका वोट शेयर भी बढ़ा है। सीटों से ज्यादा महत्वपूर्ण वोट शेयर का बढ़ना है। यह भी तय है कि तमाम शिकायतों के बावजूद लोगों ने मोदी का मान रखा है। कुछ लोगों ने तो यह भी कहा कि अगर मोदी नहीं होते, तो भाजपा वहां हार जाती।
एक और बात है कि मोदी भाजपा के लिए तुरुप का पत्ता तो हैं ही, और इस बार मोदी मैजिक चला भी है। लेकिन हर बार यह काम कर जाए, यह जरूरी नहीं है, क्योंकि हरेक राज्य की परिस्थितियां बहुत अलग-अलग होती हैं। दिल्ली और हिमाचल प्रदेश के अलावा इससे पहले भी कई राज्यों-पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र में मोदी मैजिक नहीं चला था। हां, यह जरूर कह सकते हैं कि मोदी मैजिक भाजपा की कमियों की भरपाई करता है, इसलिए दिल्ली नगर निगम और हिमाचल प्रदेश में भाजपा बेशक चुनाव हार गई, लेकिन उसका प्रदर्शन उतना बुरा नहीं रहा है। यदि हिमाचल में मोदी फैक्टर नहीं होता, तो भाजपा और भी बुरी तरह से हार जाती। हो सकता है, मोदी फैक्टर ने भाजपा को बुरी हार से बचा लिया।
सत्ता विरोधी रुझान तो गुजरात में भी था, लेकिन नतीजे से लगता है कि आक्रोश उतना ज्यादा नहीं था कि लोग घरों से निकलें और कांग्रेस को वोट देकर भाजपा को हराएं। हिमाचल प्रदेश में सत्ता विरोधी रुझान तो था ही, लोग परेशान थे और नई पेंशन एवं पुरानी पेंशन का मसला वहां एक बड़ा मुद्दा बन गया। भाजपा ने पुरानी पेंशन प्रणाली खत्म करके नई पेंशन प्रणाली लागू की, जबकि सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन चाहते हैं। कांग्रेस ने पुरानी पेंशन प्रणाली का वादा किया, जिसका उसे लाभ मिला, क्योंकि सरकारी कर्मचारी जिस पार्टी के विरोध का मन बना लेते हैं, फिर उस पार्टी के लिए जीतना मुश्किल हो जाता है। हालांकि हिमाचल में कांग्रेस ने नेतृत्व का एलान नहीं किया था, पर वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह तो चुनाव प्रभाव का नेतृत्व कर ही रही थीं। वहां कांग्रेस का संगठन भी मजबूत है, इसलिए उसने अच्छी लड़ाई लड़ी।
कांग्रेस भले ही हिमाचल प्रदेश जीत गई है, लेकिन गुजरात में उसका जो हश्र हुआ है, वह उसकी निष्क्रियता के कारण हुआ है। पिछली बार उसे 77 सीटें मिली थीं और भाजपा को 99, लेकिन कांग्रेस ने अपनी कमियों को सुधारने के लिए कुछ किया ही नहीं। पिछली बार जो लोग उसके साथ थे, उनका भी वह ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाई, नतीजतन वे भाजपा के पाले में चले गए। ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस ने हथियार डाल दिए थे कि गुजरात में तो हम जीत ही नहीं पाएंगे। और 'भारत जोड़ो यात्रा' का समय भी ऐसा चुना गया, जब इधर दो राज्यों में चुनाव हो रहे थे। यह यात्रा तो 2023 में भी हो सकती थी। हालांकि इस यात्रा से लोगों से जुड़ाव हो रहा है, लेकिन अगर लोगों का जुड़ाव वोटों में तब्दील न हो, तो बिना सत्ता के आप लोगों का क्या हित कर सकते हैं!
जहां तक इन परिणामों के 2024 के चुनावों पर पड़ने वाले प्रभावों की बात है, तो हमें ध्यान रखना होगा कि अगले वर्ष 2023 में नौ राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, और जिन राज्यों में नवंबर-दिसंबर में चुनाव होंगे, उनके नतीजे 2024 के लिए मतदाताओं के मानस को प्रभावित करेंगे। तब तक गुजरात का चुनाव परिणाम एक साल पुराना हो जाएगा, लेकिन गुजरात के नतीजे से मोदी को जो मजबूती मिली है, वह फैक्टर रहेगा। इन नतीजों का एक और स्पष्ट संदेश है कि जब तक विपक्षी दलों में एकजुटता नहीं होगी, तब तक वर्ष 2024 में भाजपा को हरा पाना मुश्किल होगा। ऐस में विपक्ष की एकजुटता का होना और भी जरूरी हो गया है।
हो सकता है कि राष्ट्रीय स्तर पर किसी एक चेहरे का एलान नहीं हो, क्योंकि कोई एक चेहरा चुनने के चक्कर में आम सहमति बनेगी नहीं। लेकिन चेहरे से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि लोकसभा क्षेत्र में विपक्ष का एक उम्मीदवार भाजपा को सीधे टक्कर दे। भाजपा के खिलाफ यदि विपक्ष का एक उम्मीदवार खड़ा होगा, तो विपक्ष की एकजुटता दिखेगी और उसका उसे फायदा होगा। कुल मिलाकर, इन नतीजों से जहां गुजरात में नरेंद्र मोदी की अजेयता सिद्ध होती है, वहीं कांग्रेस का भी हिमाचल की सत्ता मिलने से हौसला बढ़ेगा, लेकिन उसके लिए जूझने और लड़ने का स्वयं में जुनून पैदा करने का संदेश भी इसमें छिपा हुआ है।
सोर्स: अमर उजाला
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