- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- अर्थव्यवस्था में...

x
By: divyahimachal
भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास-दर 13.5 फीसदी हो गई है। यह वित्त-वर्ष 2022-23 की अप्रैल, मई, जून की पहली तिमाही की बढ़ोतरी है। हमारी अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के दुष्प्रभावों के पार चली गई है और इसे 2019 के औसत स्तर पर आंका जा रहा है। यह बढ़ोतरी इसलिए भी सुखद, सकारात्मक और विकासपरक है, क्योंकि ढेरों चुनौतियों के बाद आज सभी क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियां स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। सेवा, होटल, व्यापार क्षेत्रों का इस बढ़ोतरी में अहम योगदान है, हालांकि अभी विकास को वह स्तर छूना है, जहां युवाओं के लिए नौकरी, रोजग़ार के समग्र आयाम खुलेंगे। होटल, व्यापार क्षेत्रों में 25.7 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि सेवा क्षेत्र की बढ़ोतरी 17.6 फीसदी रही है। ये क्षेत्र ही सर्वाधिक नौकरियां और रोजग़ार मुहैया कराते हैं। मनोरंजन, रेस्तरां, खेल, बैंकिंग, उद्योग, विनिर्माण, कृषि आदि क्षेत्रों में भी बढ़ोतरी हासिल हुई है। नतीजतन अब जीडीपी 36.85 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गई है, जबकि लॉकडाउन के दौर में यह 27.04 लाख करोड़ रुपए तक लुढक़ गई थी। हमारी अर्थव्यवस्था की यह बढ़ोतरी अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के आकलन के मुताबिक भी है, जिसने मौजूदा वित्त-वर्ष की विकास-दर 7.4 फीसदी आंकी थी। भारत सरकार के वित्त सचिव टी.वी. सोमनाथन ने अब भविष्यवाणी की है कि वर्ष के अंत में विकास-दर 7 फीसदी से अधिक होगी। कुछ अर्थशास्त्रियों के आकलन हैं कि अब अंतिम विकास-दर दहाई, यानी 10 फीसदी और ज्यादा, में होनी चाहिए। बेशक आर्थिक बढ़ोतरी के ये आंकड़े नई उम्मीदें जगाते हैं।
यह सत्य स्थापित करते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे सशक्त है और तेजी से बढ़ रही है। चीन की जीडीपी बढ़ोतरी दर 0.4 फीसदी है और करीब 25 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले, सबसे विकसित देश, अमरीका की विकास-दर -0.6 फीसदी, यानी ऋणात्मक है। जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्पेन सभी देश भारत की बढ़ोतरी से बहुत पीछे हैं। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था ऋणात्मक है। फिर भी कुछ पहलू ऐसे हैं कि हमें अपनी विकास-दर पर हुलहुलाना नहीं चाहिए। हमारी बढ़ोतरी भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के अनुमान 16.2 फीसदी और भारतीय स्टेट बैंक के अनुमान 15.7 फीसदी से कम रही है। यह विकास-दर 14 फीसदी से अधिक होनी चाहिए थी। बीते वित्त-वर्ष की इसी तिमाही के दौरान विकास-दर 20 फीसदी से ज्यादा रही थी। यह भी एक हकीकत है कि इसी साल जनवरी-मार्च की तिमाही में बढ़ोतरी 4.1 फीसदी थी। बहरहाल अब स्पष्ट है कि हमारा बाज़ार बढ़ रहा है, निजी खपत भी बढ़ रही है, निवेश का निरंतर आना भी सुखद संकेत है। गौरतलब यह है कि यह जीडीपी में दूसरी सबसे ऊंची बढ़ोतरी-दर है। अब 2022-23 में हमारी औसत विकास-दर 8 फीसदी से ज्यादा रहनी चाहिए।
बेशक हमारे उत्पादन क्षेत्र में बढ़ोतरी 4.8 फीसदी रही है, जबकि 2021-22 की पहली तिमाही में यह करीब 49 फीसदी थी। कृषि की विकास-दर 2.2 फीसदी रही है, जो बीते साल इसी तिमाही में 4.5 फीसदी थी। निर्माण, परिवहन, संचार क्षेत्रों में भी कम वृद्धि दर्ज की गई है। चूंकि निर्माण-कार्य शुरू हो चुके हैं, लिहाजा सीमेंट, लोहा, इस्पात आदि की मांग अच्छी होनी चाहिए, लेकिन संपूर्ण कोर क्षेत्र में बढ़ोतरी की गति धीमी है। इस क्षेत्र में कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, सीमेंट, इस्पात, ऊर्जा, उर्वरक, रिफाइनरी उत्पाद आदि आते हैं। इनकी विकास-दर छह माह में सबसे कम है। इनमें उतार-चढ़ाव आना भी अच्छा संकेत नहीं है। कच्चा तेल भी बीते कुछ दिनों में महंगा होकर 102 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है, लिहाजा संपर्क गहन क्षेत्रों का नुकसान होगा और मांग की बहाली भी अद्र्धसत्य-सी लगेगी। सरकार को इन पहलुओं पर गौर करना और मंथन करना अनिवार्य है। चूंकि कई संपर्क गहन क्षेत्रों की कोरोना-पूर्व की बहाली अभी नहीं हुई है, लिहाजा नौकरियों और रोजग़ार के संकट अभी मौजूद रहेंगे। नतीजतन बेरोजगारी की दर भी कम नहीं होगी। ये दोनों पहलू सरकार के लिए बेहद संवेदनशील हैं। बहरहाल अब अर्थव्यवस्था सुधर रही है, तो इसका सीधा लाभ उन तबकों को भी मिलना चाहिए, जो आज़ादी के 75 साल बाद भी गरीब हैं।

Rani Sahu
Next Story