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- विकास, सुख और खुशी
भारतवर्ष एक विकासशील देश है और जन-जन की इच्छा है कि हमारा देश विकसित देशों की श्रेणी में आ जाए। हर व्यक्ति विकास चाहता है और यह सही भी है, लेकिन विकास-विकास रटने के साथ हमें यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि विकास ऐसा हो जो स्थायी हो और लाभदायक हो। विकास के साथ 'सत्यम्, शिवम्, सुंदरम्' की अवधारणा का सामंजस्य अत्यंत आवश्यक है। आइए, इस पर जरा विस्तार से बात करें। आठ वर्ष पूर्व जब उत्तराखंड बाढ़ की त्रासदी से जूझ रहा था तो वहां बाढ़ खत्म हो जाने के काफी समय बाद तक मलबे से लाशें निकलती रही। उस समय उत्तराखंड में जगह-जगह बड़े-बड़े भवन उग आए थे जिनमें हर तरह का व्यवसाय चलता था और जनजीवन अपेक्षाकृत सुविधाजनक था, पर्यटकों को अपनी आवश्यकता की वस्तुएं आसानी से मिल जाती थीं और स्थानीय निवासियों के लिए रोज़गार के साधन उपलब्ध थे। वह भी विकास का एक रूप था, लेकिन विनाशकारी बाढ़ ने हम सबको सोचने पर विवश किया कि हम एकांगी विकास के बजाय संतुलित विकास का नज़रिया अपनाएं। विकास धनात्मक हो, मंगलकारी हो और स्थायी हो।