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विश्व बैंक ने दुनिया की आर्थिक स्थिति के बारे में अपने ताजा आकलन में कहा है कि इस वित्त वर्ष 2021-22 में दुनिया की अर्थव्यवस्था में 5.6 प्रतिशत की गति से बढ़ोतरी होगी। यह बढ़ोतरी अस्सी साल पहले की विराट मंदी के बाद अब तक की सबसे तेज बढ़ोतरी होगी। इसके बावजूद वैश्विक उत्पादन महामारी के पहले के स्तर से लगभग दो प्रतिशत कम होगा। लेकिन अर्थव्यवस्था में यह बढ़ोतरी कुछ बड़ी और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में ज्यादा होगी। दुनिया की ज्यादातर उभरती हुई और कम आय वाली अर्थव्यवस्थाएं अब भी कोरोना के प्रभाव से निकलने के लिए संघर्ष कर रही होंगी। कई विकासशील देशों में अब भी टीकाकरण नहीं पहुंच पाया है, इसलिए कोरोना का साया बना हुआ है। यहां पिछले समय में गरीबी से लोगों को उबारने में जो सफलता मिली थी, उस पर कोरोना महामारी ने पानी फेर दिया है। कम से कम इस वित्त वर्ष में तो इस नुकसान की भरपाई होना मुश्किल लगता है। विकसित देशों की अर्थव्यवस्था का तेजी से बढ़ना फिर भी इसलिए राहत की बात होगी कि भारत, बांग्लादेश व वियतनाम जैसी कई उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए निर्यात के मुख्य बाजार विकसित देशों में ही हैं और निर्यात बढ़ने से इनकी घरेलू अर्थव्यवस्था को भी गति मिल पाएगी। लेकिन विश्व बैंक का कहना है कि इस महामारी ने गरीब देशों पर और ज्यादा गरीबी व गैर-बराबरी थोप दी है और इसे मिटाने के लिए टीके के वितरण और नई टिकाऊ , पर्यावरण के लिए फायदेमंद टेक्नोलॉजी पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। जहां तक भारत के विकास का सवाल है, तो विश्व बैंक ने 11.2 प्रतिशत के अपने पहले के अनुमान को घटाकर 8.3 प्रतिशत कर दिया है। विश्व बैंक का कहना है कि बुनियादी ढांचे और ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश, स्वास्थ्य तंत्र पर खर्च वगैरह की वजह से विकास तो होगा, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने जो नुकसान पहुंचाया है, उसके मद्देनजर पहले के आकलन से काफी कम होने की आशंका है। रिजर्व बैंक ने पिछले दिनों अपने आकलन में विकास दर को 10.5 से 9.5 प्रतिशत घटा दिया था। विश्व बैंक का कहना है कि मौजूदा संकट की छाया वर्ष 2023 में भी कुछ हद तक बनी रहेगी, इसलिए उस वर्ष विकास दर 7.5 प्रतिशत ही रहेगी। वैसे देखने में ये आंकड़े अच्छे लग रहे हैं, लेकिन हमें ख्याल रखना है कि हम शुरुआत 2020-2021 में नकारात्मक विकास दर (-7.3) से कर रहे हैं, इसके मद्देनजर विकास के आंकडे़ उतने आकर्षित नहीं कर रहे हैं। चाहे हम भारतीय रिजर्व बैंक का आकलन मानें या विश्व बैंक का, यह स्वीकार करना होगा कि हम अर्थव्यवस्था के स्तर पर बहुत कठिन दौर से गुजर रहे हैं। यह दौर बहुत जल्दी और आसानी से खत्म नहीं होने वाला है। ऐसे में, सबसे बड़ा संकट गरीबों की आय को बनाए रखने या जरूरत के अनुरूप उसे बढ़ाने और रोजगार देने को लेकर है। चाहे बैंक हों या उद्योग या आम आदमी ,आर्थिक असुरक्षा की भावना सबको पैसा बचाने पर मजबूर कर देती है, जिससे आर्थिक गतिविधियां और धीमी हो जाती हैं। ऐसे में, समाज में आत्मविश्वास और सुरक्षा की भावना पैदा करना सबसे बड़ा काम है और सरकार को तुरंत युद्धस्तर पर इसमें जुट जाना होगा, अब ज्यादा वक्त नहीं है।