सम्पादकीय

विकास और सुधार : ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रफ्तार

Gulabi
8 Dec 2021 5:19 PM GMT
विकास और सुधार : ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रफ्तार
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ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रफ्तार
देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार और कृषि एवं ग्रामीण विकास की मजबूती के तीन प्रमुख आधार उभरते दिखाई दे रहे हैं। एक, कोविड-19 महामारी की मुश्किलों से राहत दिलाने के लिए देश में कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए घोषित की गई विभिन्न योजनाओं के तहत बड़े पैमाने पर किए गए व्यय से ग्रामीण भारत में तेजी से धन का प्रवाह बढ़ा है। दो, कृषि क्षेत्र में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के कार्यक्रमों से किसानों की आमदनी में वृद्धि हुई है।
तीन, ग्रामीण भारत में लोगों को रोजगार देने में मनरेगा की प्रभावी भूमिका बढ़ी है। निस्संदेह कोविड-19 की चुनौतियों के बीच जन-धन और कृषि विकास योजनाओं के माध्यम से छोटे किसानों और ग्रामीण गरीबों की क्रय शक्ति बढ़ाई गई हैं। देश के छोटे किसानों और भूमिहीन मजदूरों की मुट्ठियों में वित्तीय समावेशन की खुशियां तेजी से बढ़ी हैं। पीएम किसान योजना के अंतर्गत अगस्त 2021 तक 11.37 करोड़ किसानों के बैंक खातों में डायरेक्ट बेनिफेट ट्रांसफर (डीबीटी) के जरिये 1.58 लाख करोड़ रुपये जमा किए जा चुके हैं।
इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि कृषि क्षेत्र में उत्पादन और उत्पादकता वृद्धि से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में अनुकूल सुधार हुआ है। 30 नवंबर को सरकार द्वारा जारी किए गए चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 की दूसरी तिमाही यानी जुलाई से सितंबर में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 8.4 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। कृषि ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र पाया गया है, जिसमें तीन वर्षों की दूसरी तिमाहियों में लगातार विकास दर बढ़ी है। देश में वर्ष 2020-21 में खाद्यान्न उत्पादन करीब 3,086 लाख टन की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा है।
इसी तरह वर्ष 2020-21 के दौरान देश में कुल तिलहन उत्पादन रिकॉर्ड 361 लाख टन और दालों का रिकॉर्ड उत्पादन 257 लाख टन पर पहुंचा है। इसके साथ-साथ वर्ष 2021-22 के पहले अग्रिम अनुमान के मुताबिक, खरीफ फसल का रिकॉर्ड उत्पादन 15.050 करोड़ टन होने का अनुमान है। निश्चित रूप से छोटे किसानों को हरसंभव तरीके से प्रोत्साहन और कृषि विकास के विशेष कार्यक्रमों से भी कृषि क्षेत्र में लगातार जीडीपी बढ़ी है।
वर्ष 2021 में ग्रामीण भारत में लोगों को रोजगार देकर उनकी आमदनी बढ़ाने में महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) की प्रभावी भूमिका रही है। जहां मनरेगा ने गांवों में परंपरागत रूप से काम कर रहे लोगों को अधिक रोजगार दिया, वहीं कोरोना की दूसरी लहर के कारण शहरों से गांव लौटे प्रवासी श्रमिकों को भी बड़ी संख्या में रोजगार दिया है। लेकिन अब भी किसानों और ग्रामीण गरीबों की आय बढ़ाने की चुनौती सामने खड़ी है।
नीति आयोग की 26 नवंबर को प्रकाशित ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण भारत में गरीबी को कम करने के लिए अधिक कारगर प्रयासों की जरूरत है। वर्ष 2015-16 के दौरान ग्रामीण इलाकों में 32.75 आबादी और शहरी इलाकों में 8.81 फीसदी आबादी बहुआयामी गरीबी में पाई गई है। ऐसे में किसानों और ग्रामीण गरीबों की आमदनी बढ़ाने के नए उपाय सुनिश्चित किए जाने जरूरी हैं। एक दिसंबर 2021 को तीन कृषि कानून राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर के बाद औपचारिक रूप से वापस हो गए हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि कृषि को और प्रभावी बनाने, किसानों की मुश्किलों को कम करने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए नई कमेटी गठित की जाएगी। इसमें कोई दो मत नहीं है कि इस कमेटी द्वारा कृषि उत्पादन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाया जा सकता है। किसानों को मांगों के मद्देनजर पीएम आशा और भावांतर भुगतान जैसी योजना शुरू की जा सकती हैं। छोटे किसानों के जन-धन खातों में अधिक नकदी हस्तांतरण से उनकी तथा ग्रामीण गरीबों की आर्थिक मदद बढ़ाई जा सकती है। इन सबके बावजूद चूंकि देश के 80 फीसदी किसानों के पास जीविकोपार्जन के लिए पर्याप्त खेत नहीं है, इसलिए उनकी गैर कृषि आय बढ़ाने का विकल्प आगे बढ़ाना होगा।
अमर उजाला
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