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- वृद्धि और समृद्धि
Written by जनसत्ता: चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में बढ़ोतरी से स्वाभाविक ही सरकार उत्साहित है। कोविड काल के दौरान बंदी और फिर कारोबारी गतिविधियों में सुस्ती के चलते विकास दर निराशाजनक स्तर तक पहुंच चुकी थी। ऐसे में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के लिए तेजी से प्रयास शुरू हुए। अब स्थिति सुधरती नजर आने लगी है। मगर कई विशेषज्ञ अभी इस वृद्धि से संतुष्ट नहीं हैं। दरअसल, रिजर्व बैंक का अनुमान था कि इस तिमाही में विकास दर पंद्रह से सोलह फीसद तक रहेगी। मगर ताजा विकास दर उससे करीब तीन फीसद कम दर्ज हुई है।
फिर कुछ लोगों का यह भी मानना है कि कोविड काल में गतिविधियां रुकी होने के कारण आधार प्रभाव कम होने के कारण यह वृद्धि दर अधिक नजर आ रही है। जबकि कोविड पूर्व की आर्थिक स्थिति की तुलना में यह दर बहुत कम है। कोविड पूर्व भी विकास दर संतोषजनक स्तर पर नहीं थी, उसमें वृद्धि पर जोर दिया जा रहा था। उससे तुलना करने पर यह जरूर कुछ बेहतर नजर आ सकती है। हालांकि समग्र रूप से देखें तो कुछ क्षेत्रों जैसे निर्माण, खनन आदि में बेहतरी दर्ज हुई है, पर विनिर्माण, होटल व्यवसाय, परिवहन आदि के क्षेत्र में स्थिति अब भी निराशाजनक बनी हुई है, जबकि कोविड काल के बाद कारोबारी गतिविधियां सामान्य हो चली हैं।
इस तिमाही में कुछ और उत्साहजनक चीजें दर्ज हुई हैं, जिनमें निजी व्यय का बढ़ना और सरकारी खर्च में कटौती शामिल हैं। चालू वित्त वर्ष में निजी व्यय में करीब छब्बीस फीसद की बढ़ोतरी दर्ज हुई है, जो कि बाजार में रौनक लौटने का संकेत देती है। इसी तरह सरकारी खर्च महज 1.3 फीसद बढ़ा है, यानी सरकार ने अपने हाथ रोक कर इसमें संतुलन लाने का प्रयास किया। इससे महंगाई पर काबू पाने की दिशा में सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति जाहिर होती है। मगर महंगाई को संकेतित करने वाले आंकड़े फिर निराश करते हैं।
स्थिर कीमत पर आधारित सकल मूल्य वृद्धि यानी जीवीए पहली तिमाही में 12.7 फीसद बढ़ा है, जबकि सामान्य जीडीपी में 26.7 फीसद दर्ज की गई, जो कि मुद्रास्फीति की ऊंची दर को संकेतित करती है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि आधार प्रभाव के धीरे-धीरे समाप्त होने के बाद विकास दर में नरमी आएगी, जो कि जोखिमभरी हो सकती है। फिर भी विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगली तिमाहियों में यह दर कम होगी और वृद्धि का यही रुख बरकरार रहा तो इस साल के अंत में विकास दर सात फीसद तक रह सकती है।
छिपी बात नहीं है कि अर्थव्यवस्था अभी पटरी पर नहीं लौट पाई है। कोविड के दौरान लंबे समय तक पूर्णबंदी और फिर कर्ज उपलब्ध कराने के तमाम प्रयासों के बावजूद बहुत सारे छोटे, मंझोले और सूक्ष्म उद्योग बंद हुए तो फिर खुले ही नहीं। इस तरह उनसे जुड़े रोजगार खत्म हो गए। नए रोजगार सृजित नहीं हो पा रहे। लोगों की क्रयशक्ति काफी घट गई है। अभी जो निजी व्यय थोड़ा बढ़ा हुआ दिख रहा है, वह पिछले दो सालों में लोगों के हाथ रोके रहने और फिर एकदम से खोलने की वजह से दिख रहा है। वह हमेशा ऐसा नहीं रहने वाला। डालर के मुकाबले रुपए की गिरती कीमत, निर्यात में वृद्धि न होना, अपेक्षित प्रत्यक्ष विदेशी निवेश न आ पाना, वैश्विक आर्थिक स्थितियों का अनुकूल न होना आदि कुछ ऐसे गंभीर कारण हैं, जिसकी वजह से अर्थव्यवस्था को उचित गति नहीं मिल पा रही।