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कोरोना की महामारी और लॉकडाउन की वजह से भारत समेत कई देशों की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है
विराग गुप्ता
कोरोना की महामारी और लॉकडाउन की वजह से भारत समेत कई देशों की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है. रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार पिछले तीन साल में भारत की अर्थव्यवस्था में 50 लाख करोड़ से ज्यादा का उत्पादन घाटा हुआ है. इसे ठीक करने में 12 साल से ज्यादा लग सकते हैं. देश में 100 करोड़ से ज्यादा मोबाइल हैं. लोगों के पास राशन भले ही नहीं हो, लेकिन इन्टरनेट है. बीमारी, पढ़ाई, शादी आदि की जरूरत के लिए लोगों ने डिजिटल साहूकारों से भारी ब्याज दर पर अल्प अवधि के लिए छोटी रकम के लोन लिए हैं जो उनके जी का जंजाल बन गए हैं. बगैर वैध समझौते के हुए लोन के एवज में लाचार लोगों ने अपने मोबाइल डाटा और आधार आदि का विवरण इन सूदखोर कंपनियों के हवाले गिरवी रख दिया. रोजगार और व्यापार खोने वाले आपदाग्रस्त लोग अब डिजिटल एप्स के शिकंजे में फंसकर अवसाद और आत्महत्या के शिकार हो रहे हैं.
भारी ब्याज के बोझ और डाटा के फर्जीवाड़े से आत्महत्या कर रहे लोग
लोन के मूलधन के भुगतान के बावजूद भारी ब्याज को वापस करने में लोग फेल हो रहे हैं. मनमाना ब्याज नहीं चुका पाने के कारण इन एप्स के साहूकार लोन लेने वाले शख्स को धमकाने के साथ उसे ऑफिस, परिवार और रिश्तेदारी में बदनाम करने लगे हैं. फोटो के साथ छेड़खानी करके व्हाट्सएप में दुष्प्रचार, धमकी वाले कॉल और फर्जी कानूनी नोटिस भी कर्जदारों और उनके परिचितों को भेजी जा रही हैं. इससे देश के कई राज्यों में आत्महत्या के साथ परिवार टूटने के मामले बढ़ रहे हैं.
मुंबई में पिछले हफ्ते रिकवरी एजेंटों ने फोटो को मॉर्फ़ करके लोन लेने वाले व्यक्ति के परिवार और ऑफिस में सरकुलेट कर दिया. शर्मिंदगी और जलालत से बचने के लिए मलाड के युवक ने आत्महत्या कर ली. पिछले महीने हैदराबाद में भी ऐसे ही उत्पीडन का शिकार होकर एक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली थी. अभी हाल ही में मुंबई में एक व्यक्ति ने 3800 रूपये का लोन लिया. 6 दिनों में 7 हज़ार रूपये के ब्याज की मांग होने पर पीड़ित व्यक्ति ने पुलिस का दरवाजा खटखटाया है
लोन एप्स की आपराधिकता और चीनी गिरोह का खुलासा
देश में गरीबों की मदद के लिए हजारों योजनाएं चल रही हैं. लेकिन जरूरतमंदों को समय पर बैंक लोन मिलने में अनेक झंझट रहते हैं. इसलिए बगैर कागज-पत्तर के झटपट लोन देने वाले इन एप्स का कारोबार खूब चल निकला. भारत में एप्स के माध्यम से लोन देने वाले ऑपरेटर्स अधिकांशतः गैरकानूनी तरीके से कारोबार कर रहे हैं. लोन वसूली के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हथकंडे तो पूरी तरह से आपराधिक हैं.
दो साल पहले तेलंगाना पुलिस की शुरुआती जांच के अनुसार, लोन एप के गोरखधंधे में चीनियों का भी गिरोह काम कर रहा है. पुलिस की जांच में लगभग 1.4 करोड़ लेन-देनों से 21 हजार करोड़ के कारोबार का खुलासा हुआ था. लोन घोटाले की भारी रकम चीन और दूसरे देशों में ट्रांसफर होने के सबूत आने पर केंद्रीय एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी आपराधिक मामला दर्ज कर लिया. उसके बावजूद लोन एप्स के कारोबार पर प्रभावी लगाम नहीं लग पायी है. इन कंपनियों से लोन लेने वाले कमजोर और गरीब लोग इन डिजिटल प्लेटफॉर्म के खिलाफ पुलिस में शिकायत करने से घबराते हैं. इसके अलावा छोटे कस्बों और शहरों में पुलिस का साइबर सेल भी नहीं होता. कुछ हजार लोन लेने वाले पीड़ित लोगों को राहत देने के लिए थकाऊ और महंगी अदालती व्यवस्था के पास भी सही समाधान नहीं है.
रिज़र्व बैंक की कारवाई केबावजूद स्थिति में सुधार नहीं
मनी लेंडिंग कानून के तहत राज्यों में लोन का कारोबार करने के लिए अलग-अलग नियम हैं, लेकिन रिजर्व बैंक के नियमों के अनुसार, बैंक और एनबीएफसी कंपनियां ही लोन का कारोबार कर सकती हैं. रिजर्व बैंक ने जून, 2020 को इस बारे में एक आदेश जारी करने के बाद इस बारे में एक समिति भी बनायी थी. रिज़र्व बैंक के आदेश के अनुसार बैंकों और एनबीएफसी कंपनियों की वेबसाइट में सभी डिजिटल लोन एप्स का पूरा विवरण हो, जिससे किसी भी गलत काम के लिए उन्हें भी जवाबदेह बनाया जा सके. रिजर्व बैंक के अनुसार, कर्ज देते समय ग्राहकों को लिखित स्वीकृति पत्र देना जरूरी है, जिसमें कानूनी सीमा के भीतर ब्याज दरों के विवरण के साथ बैंक और एनबीएफसी कंपनी का पूरा खुलासा जरूरी है. रिजर्व बैंक के अनेक आदेश और चेतावनियों से साफ है कि डाटा के दुरुपयोग और कर्ज वसूली के लिए लोन एप्स द्वारा अपनाए जा रहे हथकंडे गैर-कानूनी है. इसके बावजूद ये लोन एप्स अपनी नाजायज हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं.
समाधान के लिए आईटी क़ानून और नियमों का पालन हो
गूगल और एपल के प्लेटफॉर्म पर लगभग 47 लाख एप्स से सोशल मीडिया समेत कई तरह के कारोबार हो रहे हैं. लोन एप्स ने ग्रामीण क्षेत्रों में कारोबार और वसूली के लिए पुणे, बंगलूरू, नोएडा, हैदराबाद और चेन्नई जैसे आईटी हब्स में अपने कॉल सेंटर खोल रखे हैं. एप्स और वेबसाइट आदि के लिए वर्ष 2000 में आईटी कानून बनाया गया था. उसके तहत इन एप्स का भारत में रजिस्ट्रेशन, नियमन और टैक्सेशन के लिए प्रभावी व्यवस्था बनाने की जरूरत है. गूगल और एपल के प्ले स्टोर से बिक रहे इन एप्स की डेवलपर पॉलिसी में बैंक और एनबीएफसी कंपनियों का पूरा खुलासा नहीं होने से पूरी गफलत हो रही है. गूगल और एपल प्ले स्टोर के माध्यम से भारत में कारोबार कर रहे हर लोन एप में रिजर्व बैंक की अनुमति प्राप्त बैंक और कंपनियों का पूरा विवरण आ जाए, तो ठगी करने वाले एप्स बेनकाब हो जाएंगे. रिजर्व बैंक के नियमों को लागू करने के लिए गूगल और एपल जैसी बड़ी कंपनियों पर सरकार को दबाव बनाना होगा, तभी स्वर्ण मृग का झांसा देने वाले लोन एप्स के मारीचों से आम जनता को मुक्ति मिल सकेगी.

Rani Sahu
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