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एक ओर कोविड महामारी से उत्पन्न स्थितियों से क्वाड सदस्यों तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों की अर्थव्यवस्था के सामने चुनौतियां पैदा हुई हैं
By डॉ धनंजय त्रिपाठी.
जापान की राजधानी टोक्यो में आयोजित क्वाड समूह (भारत, अमेरिका, जापान एवं ऑस्ट्रेलिया) का शिखर सम्मेलन कई अर्थों में महत्वपूर्ण है. यह दूसरा अवसर है, जब चारों देशों के नेताओं ने आमने-सामने बैठकर विचार-विमर्श किया है. पिछले साल सितंबर में अमेरिका में ऐसी बैठक हुई थी. कुल मिलाकर, यह क्वाड का चौथा शिखर सम्मेलन है.
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता, जलवायु परिवर्तन, महामारी की रोकथाम के उपायों जैसे बुनियादी मुद्दों पर चर्चा के साथ इस बार आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए भी ठोस पहल हुई है. इसके तहत आर्थिक फोरम बनाने की घोषणा की गयी है. इस पहल से बहुत लंबे समय तक क्वाड का औचित्य और महत्व बना रहेगा.
एक ओर कोविड महामारी से उत्पन्न स्थितियों से क्वाड सदस्यों तथा हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों की अर्थव्यवस्था के सामने चुनौतियां पैदा हुई हैं, वहीं दूसरी ओर चीन इस क्षेत्र में अपने वर्चस्व को स्थापित करने के निरंतर प्रयत्नशील है. यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि क्वाड या इसके तहत बनाया जा रहा आर्थिक फ्रेमवर्क चीन-विरोधी कदम नहीं है.
इस फ्रेमवर्क के चार प्रमुख बिंदु हैं. इसमें मुक्त और खुले व्यापार की बात कही गयी है. आपूर्ति शृंखला को बेहतर करने का उद्देश्य रखा गया है ताकि कुछ जगहों पर केंद्रित होने के बजाय अलग-अलग देशों से आपूर्ति सुनिश्चित हो सके. आज दुनिया के सामने जलवायु परिवर्तन और धरती का बढ़ता तापमान सबसे बड़ी समस्याओं में एक है.
आर्थिक फ्रेमवर्क में सतत विकास के लिए ऊर्जा उपलब्धता बढ़ाने तथा कार्बन उत्सर्जन खत्म करने का संकल्प किया गया है. चौथा बिंदु कराधान प्रणाली को दुरुस्त करना और भ्रष्टाचार को रोकना है. उल्लेखनीय है कि जब क्वाड शिखर सम्मेलन में आर्थिक फ्रेमवर्क की घोषणा हुई तो, समूह के चार सदस्यों के अलावा कई देशों के प्रतिनिधि भी वहां उपस्थित थे.
मेरा मानना है कि यह पहल हिंद-प्रशांत क्षेत्र के भविष्य को निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभायेगी. अभी तक क्वाड को सामरिक दृष्टि से ही देखा जाता था. अब इसमें आर्थिक आयाम भी जुड़ गया है. दूसरी अहम बात है कि इस पहल के 50 अरब डॉलर के कोष की घोषणा हुई है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में खर्च किया जायेगा.
यह राशि किस तरह से खर्च की जायेगी, यह तो अभी देखना बाकी है, पर काफी समय से चीन की बेल्ट-रोड परियोजना के बरक्स एक वैकल्पिक इंफ्रास्ट्रक्चर पहल की बात हो रही थी और अब वह साकार होती दिख रही है. अगर हम इस शिखर सम्मेलन को भारत की दृष्टि से देखें, तो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारत को बहुत अधिक महत्व दिया है और कहा है कि वे भारत के साथ बेहद गहरे संबंधों के आकांक्षी हैं.
इस बैठक में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की उल्लेखनीय भूमिका को फिर से रेखांकित किया गया है. इससे स्पष्ट है कि अमेरिका और अन्य सदस्य देश भारत की भावी भूमिका को भी समझ रहे हैं. कुछ विश्लेषकों का आकलन था कि रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत का जो रूख रहा है, उसका असर क्वाड समीकरण पर भी पड़ सकता है. इस बैठक में ऐसे आकलन गलत साबित हुए हैं.
वैसे तो क्वाड के किसी दस्तावेज या घोषणा में यह नहीं कहा गया है कि यह कोई चीन-विरोधी पहल है, पर चीन क्वाड पर लगातार सवाल उठाता रहा है. इस लिहाज से भी देखा जाए, तो जो बदलती हुई विश्व राजनीति है, उसमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र और क्वाड की बड़ी भूमिका होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस सकारात्मकता को रेखांकित किया है.
उनका कहना उचित है कि क्वाड ने बहुत कम समय में अपनी सार्थकता स्थापित की है और यह सबकी बेहतरी के एजेंडे के साथ अग्रसर है. उन्होंने भारत की भूमिका को भी स्थापित किया है तथा यह आश्वासन भी दिया है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए भारत हर संभव सहयोग देगा.
इस सम्मेलन ने अनेक ऐसे आलोचकों को भी जवाब दे दिया है, जो यह मानते थे कि क्वाड का अस्तित्व अधिक समय तक नहीं रह सकेगा, पर जैसी चर्चाएं हुई हैं और जो घोषणाएं की गयी हैं, वे स्पष्ट इंगित कर रही हैं कि यह समूह न केवल बना रहेगा, बल्कि इसके साथ कई और देशों के जुड़ने की संभावनाएं भी पैदा हुई हैं.
सामुद्रिक सुरक्षा और निर्बाध व्यापार को सुनिश्चित करने के साथ शुरू हुए क्वाड के एजेंडे में वे सभी बड़े मुद्दे शामिल होते जा रहे हैं, जो न केवल हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए, बल्कि समूची दुनिया के लिए चिंता के कारण हैं. इस शिखर बैठक में आर्थिक दृष्टि से जो निर्णय हुए हैं, वे क्वाड समूह को निश्चित ही स्थायित्व प्रदान करेंगे. सुरक्षित सामुद्रिक मार्गों का नक्शा बनाने का प्रस्ताव भी आगे बढ़ा है.
जैसा कि पहले उल्लेख किया है कि आर्थिक फ्रेमवर्क की बैठक में कई देश शामिल हुए हैं. इसका सीधा मतलब है कि क्वाड की प्रासंगिकता और स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है. जब इस फ्रेमवर्क की रूप-रेखा सामने आयेगी और इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने की योजनाओं का खुलासा होगा, तो कई और देश भी सहभागिता करना चाहेंगे.
जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने रेखांकित किया है, क्वाड ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, समृद्धि और स्थिरता सुनिश्चित किया है. यह भूमिका आगामी दिनों में बेहद अहम होगी क्योंकि वैश्विक भू-राजनीति में परिवर्तन हो रहा है.
(बातचीत पर आधारित).
Gulabi Jagat
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