- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- दक्षिण भारतीय सिनेमा...

x
लोकप्रियता और हिंदी पट्टी के दर्शक
लगभग डेढ़ दशक पहले, और लगभग इसी मौसम में, शाहरूख खान की एक नायाब मसाला फिल्म आई थी जिसका नाम था ओम शांति ओम। एक परिपूर्ण मनोरंजक फिल्म का हर मसाला इस फिल्म में मौजूद था। फिल्म का एक सीन याद कीजिए जिसमें ओम (शाहरूख खान) फिल्म की हिरोइन शांति (नवोदित दीपिका पादुकोण) को लुभाने के लिए एक दक्षिण भारतीय सुपरस्टार होने का स्वांग रचता है। और उसे अपनी फिल्म की शूटिंग देखने को आमंत्रित करता है।
अगले दिन जब नायिका लोकेशन पर पहुंचती है तो नायक को एक अजीबोगरीब वेशभूषा में पाती है जिसकी डायलॉग डिलीवरी से लेकर एक्शन तक सब कुछ 'ओवर द टॉप' था। यह फिल्म का सबसे मजेदार दृश्य था। दरअसल इस दृश्य में शाहरूख के किरदार ने वही दिखाया था, जिसके लिए दक्षिण भारत की फिल्में जानी जाती हैं। यानी की ओवर एक्टिंग से भरी संवाद अदायगी और अविश्वसनीय और विज्ञान से परे एक्शन दृश्य, लेकिन डेढ़ दशक बाद अब नजर घुमाइए तो मनोरंजन जगत का नजारा कुछ बदला-बदला सा है।
आज बॉलीवुड के परंपरागत दर्शकों के बीच दक्षिण भारतीय यानी कि तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम सिनेमा की स्वीकार्यता बढ़ी है। कभी सलमान शाहरुख और अक्षय पर मरने वाले सिनेप्रेमी अब महेश बाबू, रामचरण और यश में भी रुचि दिखाने लगे हैं। अब बॉलिवुड प्रेमी दिग्गज अभिनेताओं की सूची में मनोज बाजपेई और नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ प्रकाश राज और फहद फासिल को भी जगह देने लगे हैं, लेकिन दर्शकों के रुझान में ये परिवर्तन रातों-रात नहीं हुआ।
यादाश्त पे थोड़ा जोर डालिए तो याद आएगा कि एक दशक पहले तक दक्षिण भारतीय फिल्में, खासतौर पर उनका एक्शन बॉलीवुड दर्शकों के लिए मजाक का विषय भर थी। 90 और 2000 के दशक में कई कॉमेडी धारावाहिकों में दक्षिण भारतीय फिल्म संस्कृति का जम कर मजाक उड़ाया जाता था।
दशक भर पहले एस.एम.एस के जमाने में रजनीकांत जोक्स पर आप और हम खूब हंसे थे। लेकिन जल्द ही परिदृश्य बदल गया। सलमान खान ब्लॉकबस्टर फिल्म वांटेड के बाद मानो बॉलीवुड में दक्षिण भारतीय फिल्मों की रीमेक की बाढ़ सी आ गई। सिंघम, बॉडीगार्ड, रेडी, राऊडी राठौर जैसी फिल्मों ने ना सिर्फ बॉक्स-ऑफिस पर नोट छापे बल्कि दर्शकों में दक्षिण भारतीय फिल्मों के प्रति एक उत्सुकता जगाई। रही-सही कसर सैटेलाइट चैनल पर दक्षिण भारतीय फिल्मों के 24 घंटे प्रसारण ने कर दी।
अब दर्शकों की उत्सुकता रुचि में बदल चुकी थी। लेकिन सैटेलाइट चैनल ने दर्शकों को अभी तक दक्षिण भारतीय फिल्मों के सिर्फ पक्ष से रूबरू कराया था जो कि मनोरंजन के मसाले से लैस थी। लेकिन सस्ते इंटरनेट ने दर्शकों को बताया कि दक्षिण भारत सिर्फ मसाला ही नहीं बल्कि प्रयोगधर्मि फिल्मों का भी गढ़ है।
पहले हॉलीवुड की फिल्में देखते वक्त एक टीस सी उभरती थी काश इस तरह के अलग विषयों पर हमारे यहां भी फिल्में बनती तो कितना अच्छा होता। दक्षिण भारतीय फिल्मों ने भारतीय दर्शकों को इस दर्द से कुछ हद तक राहत दी है। हॉरर कॉमेडी से लेकर पीरियड ड्रामा तक और साइकोलॉजिकल थ्रिलर से लेकर साइंस फिक्शन तक, आज ऐसा कोई जॉनर नहीं जो दक्षिण भारतीय फिल्मों के लिए अछूता हो।
दक्षिण में फिल्म निर्माता-निर्देशक हों या लेखक या फिर अभिनेता, नए विषयों और अछूते विषयवस्तुओं को लेकर जोखिम उठाने का साहस दिखाते हैं और यही साहस फिलहाल बॉलीवुड में नजर नहीं आ रहा। बाहुबली ने हिन्दी पट्टी के दर्शकों में दक्षिण भारतीय फिल्मों को लेकर गजब का क्रेज पैदा किया फिर के जी एफ जैसी फिल्मों ने इस नए-नए पैदा हुए दीवानेपन को और विस्तार दिया। और अब जिस बेसब्री से हिन्दी फिल्मों के दर्शक केजीएफ 2, आर आर आर और राधेश्याम जैसी फिल्मों की प्रतीक्षा कर रहे हैं वो एक अलग ट्रेंड की ओर ही इशारा कर रहा है।
हाल ही में खबर आई कि आमिर खान की बहुप्रतीक्षित फिल्म लाल सिंघ चड्ढा की रिलीज डेट (क्रिसमस 2021) से आगे बढ़ा दी गई है क्योंकि उसी हफ़्ते तेलगु फिल्मों के सुपरस्टार अल्लू अर्जुन की फिल्म पुष्पा भी रीलीज होने को तैयार है और लाल सिंघ चड्ढा के मेकर्स बॉक्स ऑफिस पर किसी तरह का संभावित टकराव नहीं चाहते।
मुझे याद नहीं आखिरी बार ऐसा कब हुआ था जब आमिर खान की किसी फिल्म प्रदर्शन की तारीख किसी नुकसान के डर से आगे बढ़ा दी गई हो। ये ख़बर इसलिए भी चौंकाने वाली है क्यूंकि इससे पहले आमिर खान की गिनती उन सितारों में होती थी जो बॉलीवुड की किसी भी बड़ी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर पंगा लेने से हिचकिचाते नहीं थे। लेकिन आमिर दिग्गज अभिनेता के साथ ही चतुर व्यवसायी भी हैं। हवा के बदले रुख को वो भांप चुके हैं। आज आलम ये है की बॉलीवुड के बड़े सितारों की बड़ी फिल्में भी बॉक्स ऑफिस पर किसी बड़ी दक्षिण भारतीय फिल्म से टकराना नहीं चाहते।
इससे पहले भी इस तरह कि खबरें आई हैं कि बोनी कपूर और आर आर आर के निर्माताओं में रीलीज डेट को लेकर विवाद चल रहा है क्योंकि बोनी कपूर निर्मित बहुप्रतीक्षित बायोपिक मैदान और राजामौली कि मेगा बजट फिल्म आर आर आर की रीलीज डेट आपस में टकरा रही थी। फिलहाल आर आर आर अपने पूर्व घोषित रीलीज डेट यानी 7 जनवरी को आ रही है और फिलहाल खबर ये है कि मैदान मैदान छोड़ चुकी है।
दक्षिण भारतीय फिल्में सिर्फ घरेलू नहीं बल्कि अंतराष्ट्रीय टिकट खिड़की पर भी बॉलीवुड को जोरदार टक्कर दे रही हैं। मास्टर और बाहुबली जैसी फिल्मों के अंतराष्ट्रीय कलेक्शन इसका उदाहरण हैं। इससे ये बात तो साबित ही जाती है दक्षिण भारतीय फिल्मों के फलक का विस्तार तेजी से हो रहा है।
अब सिर्फ बॉलीवुड को ही भारतीय सिनेमा का पर्याय नहीं कहा जा सकता। कुछ सालों पहले तक जिस दक्षिण भारतीय सिनेमा को रीजनल मतलब प्रादेशिक सिनेमा कहा जाता था अब उसके दर्शकवर्ग में तेजी से इजाफा हो रहा है, जिस तेज़ी से दक्षिण भारतीय सिनेमा की लोकप्रियता बढ़ी है उससे फिलहाल तो दक्षिण भारतीय सिनेमा को प्रादेशिक सिनेमा कहने की हिमाकत तो शायद ही कोई करेगा, लेकिन इस नए ट्रेंड के दूरगामी परिणाम क्या होंगे? कंटेट को लेकर पहले से ही आलोचनाओं से घिरे बॉलीवुड पर अब विषयवस्तु को लेकर दबाव और बढ़ रहा है।
पहले हॉलीवुड से तुलना होने पर बॉलीवुड के करता धर्ता ये बोलकर पल्ला झाड़ लेते थे कि हॉलीवुड एक ताकतवर और अमीर देश की इंडस्ट्री है। एक विकासशील देश की फिल्म इंडस्ट्री इसका मुकाबला नहीं कर सकती, लेकिन दक्षिण भारत ने ये कर दिखाया। आज तेलुगू, मलयालम, तमिल और कन्नड़ सिनेमा भव्यता के साथ-साथ बेहतरीन कंटेंट भी परोस रहे हैं। दर्शकों को और क्या चाहिए? जिस तेजी से दक्षिण भारतीय फिल्मों के फलक का विस्तार हो रहा है कुछ सालों बाद अगर बॉलीवुड भी उसकी छाया के नीचे आ जाए तो हैरानी न होगी।
अमर उजाला
Next Story