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फूलने-फलने से बीमा कंपनी, सरकार, ग्राहक, अर्थव्यवस्था सभी को फायदा होगा।
भारत में रीलोकेशन उद्योग, यानी सामान के स्थानांतरण से जुड़े उद्योग का विकास तेजी से हो रहा है, लेकिन अब भी इस क्षेत्र की निगरानी के लिए कोई नियामक नहीं है। आज यह उद्योग लगभग पांच अरब डॉलर का हो गया है और इसके जरिये लगभग 50 लाख लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिला हुआ है, जबकि अप्रत्यक्ष रूप से करोड़ों लोग इस उद्योग की मदद से जीवकोपार्जन कर रहे हैं। इस उद्योग की सबसे बड़ी खासियत यह है कि मुश्किल समय में भी इसकी मांग कमोबेश बनी रहती है।
मसलन, कोरोना काल में सिर्फ पूर्ण तालाबंदी के दौरान ही इसकी मांग में कमी आई थी, क्योंकि पूरे देश में कर्फ्यू जैसे हालात थे, पर जैसे ही तालाबंदी में ढील दी गई, इसकी मांग में तेजी आने लगी। यह ऐसा उद्योग है, जिसमें नौकरी जाने पर भी सामान को स्थानांतरित करने की जरूरत होती है और जब नौकरी मिलती है, तब भी इस सेवा की जरूरत होती है। एक अनुमान के अनुसार, भारत 2030 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है और इस अवधि में रीलोकेशन उद्योग के विस्तार की अपूर्व संभावना है, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना के दुष्प्रभावों से लगभग उबर चुकी है।
इस उद्योग में वृद्धि इसलिए भी हो रही है, क्योंकि लोगों के रहन-सहन के तरीके में बदलाव आ रहा है, शहरीकरण में तेजी आई है, लोग एकल परिवार पसंद कर रहे हैं, कोरोना काल के बाद लोग काम पर वापस लौट रहे हैं और गांव से शहर पलायन करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। आजकल घरेलू सामान के अलावा कार्यालय के सामान को भी स्थानांतरित किया जा रहा है, जिसमें गाड़ियां भी शामिल हैं। आज कई दूसरे उद्योग भी इस पर निर्भर हैं, जिसमें फिल्म उद्योग भी शामिल है। यह आपूर्ति शृंखला का आधार है।
इसके ठप पड़ने से आम जीवन और अर्थव्यवस्था, दोनों चरमरा सकती है। सामान का स्थानांतरण स्थानीय और अंतर्राज्यीय स्तर पर तो होता ही है, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हो रहा है। कई भारतीय संस्थानों के विदेशों में कार्यालय हैं, जहां कर्मचारियों का स्थानांतरण होता रहता है। उदाहरण के तौर पर भारतीय बैंकों की विदेशों में कई शाखाएं और कार्यालय हैं। भारत में सस्ती दर पर मानव संसाधन उपलब्ध होने के कारण हमारे देश में कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां काम कर रही हैं।
कई पेशेवर सिर्फ किसी खास परियोजना को पूरा करने के लिए विदेश जाते हैं या फिर विदेश से भारत आते हैं। दोनों स्थिति में पैकर्स ऐंड मूवर्स कंपनी की सेवा लेने की जरूरत पड़ती है। रीलोकेशन उद्योग को पश्चिमी, उतरी, दक्षिण और पूर्वी भारत में बांटा जा सकता है। पूर्वी राज्यों में सामान को स्थानांतरित करने की मांग कम है, क्योंकि वहां उद्योगीकरण का प्रतिशत देश के दूसरे हिस्सों से कम है, लेकिन उत्तरी, पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में इसकी मांग ज्यादा है।
शहरों के मामले में दिल्ली, मुंबई, बंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद, नोएडा, अहमदाबाद आदि शहरों में सामान को बड़ी संख्या में स्थानांतरित किया जाता है। अगर इस उद्योग को योजनाबद्ध तरीके से विकसित किया जाए, तो इससे सरकार को भी फायदा हो सकता है, क्योंकि इस क्षेत्र में कर वसूली की अपार संभावना है। नियामक नहीं होने की वजह से कर की चोरी हो रही है। डिजिटलाइजेशन के बाद फर्जी पैकर्स ऐंड मूवर्स कंपनियों की बाढ़ आ गई है, जिसे रिलोकेशन उद्योग के लिए बहुत बड़ा खतरा माना जा सकता है।
हालांकि 2017 में स्थापित मूवर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एमएफआई) इस क्षेत्र में शिकायतों को दूर करने का काम कर रहा है। यह कोई सरकारी संस्थान नहीं है, लेकिन यह अपना काम बहुत ही जिम्मेदारी के साथ कर रहा है। यह फेडरेशन कुछ युवाओं की पहल है। यह कर्मचारियों और ग्राहकों, दोनों को जागरूक करने का काम कर रहा है। आगामी वर्षों में यह उद्योग और भी मजबूत होने वाला है, साथ ही साथ देश में रोजगार सृजन का भी यह एक बड़ा माध्यम बनने वाला है। देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होने वाली है। इस उद्योग के फूलने-फलने से बीमा कंपनी, सरकार, ग्राहक, अर्थव्यवस्था सभी को फायदा होगा।
सोर्स: अमर उजाला
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