सम्पादकीय

बढ़ता खतरा

Subhi
8 Feb 2022 3:58 AM GMT
बढ़ता खतरा
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यूक्रेन का संकट गहराता जा रहा है। खबरें आ रही हैं कि रूस कभी भी यूक्रेन पर धावा बोल देगा। रूसी सैनिकों ने हमले के लिए जैसी मोर्चाबंदी कर ली है, उससे यह आशंका और गहरा गई है।

Written by जनसत्ता: यूक्रेन का संकट गहराता जा रहा है। खबरें आ रही हैं कि रूस कभी भी यूक्रेन पर धावा बोल देगा। रूसी सैनिकों ने हमले के लिए जैसी मोर्चाबंदी कर ली है, उससे यह आशंका और गहरा गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने भी खुफिया सूचनाओं के हवाले से चेतावनी दी है कि रूस कभी भी यूक्रेन पर हमला कर सकता है। इसके लिए उसने सत्तर फीसद हथियार और साजो-सामान यूक्रेन की सीमा पर जमा कर लिए हैं। वैसे भी यूक्रेन को लेकर रूस और नाटो की सेना जिस तरह से तैयार बैठी हैं, उससे भी सुलिवन की आशंका की पुष्टि होती है।

हालात की गंभीरता इसी से पता चलती है कि अमेरिका ने भी यूक्रेन का साथ देने के लिए अपने सैनिक भेज दिए हैं। यूक्रेन संकट को लेकर पिछले कुछ दिनों में रूस और अमेरिका के बीच जैसी धमकियों और चेतावनी भरी बयानबाजी सुनने-देखने को मिली है, वह गंभीर खतरे की ओर इशारा कर रही है। हालांकि युद्ध को टालने के लिए फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों मास्को में है। फ्रांस, जर्मनी जैसे यूरोपीय देश समझ रहे हैं कि अगर युद्ध शुरू हो गया तो इसके कितने भयावह परिणाम निकलेंगे। पर रूस और अमेरिका की हठधर्मिता संकट को बढ़ा रही है।

अब से पहले ऐसा नहीं देखा गया था जब यूक्रेन को लेकर रूस ने इस तरह के आक्रामक तेवर दिखाए हों और नाटो व अमेरिका भी मैदान में आ गया हो। पर अब यह क्षेत्र दुनिया के लिए नए खतरे का अखाड़ा बन गया है। हालत यह है कि रूस यूक्रेन की सीमा पर सैन्य जमावड़ा बढ़ा कर उस पर रूस में शामिल होने का दबाव बना रहा है। इसी सैन्य रणनीति के तहत उसने बेलारूस की सीमा के पास एस-400 मिसाइलें तैनात कर दी हैं।

यहां बड़ी संख्या में रूसी सैनिक तैनात हैं। जाहिर है, यह बेहद खतरनाक स्थिति बन गई है। इससे ज्यादातर देश डरे हुए हैं। हर कोई चाह रहा है कि किसी भी सूरत में युद्ध टल जाए। अब हालात तभी सामान्य हो सकते हैं जब सभी संबंधित पक्ष बैठ कर बातचीत करें और सैन्य गतिविधियां रोकें। वरना युद्ध छिड़ गया तो लाखों लोग विस्थापन के शिकार हो जाएंगे। इससे गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा।

दरअसल, यूक्रेन नहीं चाहता कि हजारों मील दूर स्थित अमेरिका इस विवाद में कूदे। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदयमयर जेलेंस्की तो इस मुद्दे पर अमेरिका को आड़े हाथों ले भी चुके हैं। उन्होंने साफ कहा कि अमेरिका रूस के हमले का डर दिखा कर यूक्रेन की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहा है। इससे यह तो स्पष्ट है कि यूक्रेन अमेरिका की मदद या सहानुभूति नहीं चाहता। वह समझ रहा है कि मदद की आड़ में अमेरिका यहां भी उसी तरह पैर जमा लेगा जैसे अफगानिस्तान और दुनिया में दूसरी जगह करता आया है। हालांकि रूस भी यूक्रेन पर हमला नहीं करने की बात कह रहा है।

जहां तक सवाल है यूक्रेन के नाटो में शामिल होने का, तो इसका फैसला करने का अधिकार यूक्रेन को ही है। रूस उसे नाटो में जाने नहीं देना चाहता और अमेरिका व नाटो देश उसे यूरोपीय संघ में शामिल करना चाहते हैं। सबके अपने हित हैं। पर यह नहीं भूलना चाहिए कि ऐसे हितों की कीमत सिर्फ निर्दोष नागरिकों को चुकानी पड़ती है। लड़ाई में बेगुनाह मारे जाते हैं और लाखों शरणार्थी बन जाते हैं। इसलिए बेहतर है कि महाशक्तियां अपना हित के लिए युद्ध से बाज आएं।


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