सम्पादकीय

कृषि क्षेत्र की बढ़ती चुनौतियां

Subhi
22 Sep 2022 5:13 AM GMT
कृषि क्षेत्र की बढ़ती चुनौतियां
x
देश में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच भारत को कृषि में लगातार आगे बढ़ने के मद्देनजर अभी खाद्यान्न के अलावा अन्य सभी खाद्य उत्पादनों के मामले में आत्मनिर्भरता के लिए मीलों चलना पड़ेगा। खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार ने ग्यारह हजार करोड़ रुपए की लागत से जिस महत्त्वाकांक्षी तिलहन मिशन की शुरुआत की है, उसे पूर्णतया

जयंतीलाल भंडारी; देश में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच भारत को कृषि में लगातार आगे बढ़ने के मद्देनजर अभी खाद्यान्न के अलावा अन्य सभी खाद्य उत्पादनों के मामले में आत्मनिर्भरता के लिए मीलों चलना पड़ेगा। खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार ने ग्यारह हजार करोड़ रुपए की लागत से जिस महत्त्वाकांक्षी तिलहन मिशन की शुरुआत की है, उसे पूर्णतया सफल बनाने की जरूरत है।

इस बार पूरे देश में बारिश सामान्य से छह फीसद अधिक रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओड़ीशा, पश्चिम बंगाल, पंजाब और मणिपुर में सामान्य से कम बरसात होने के कारण परेशानियां खड़ी हो गई हैं। इन प्रदेशों में खरीफ की खेती प्रभावित हुई है और खासकर धान उत्पादन के लक्ष्य के साथ-साथ आगामी रबी फसलों के उत्पादन संबंधी चिंताएं दिखाई दे रही हैं।

गौरतलब है कि खरीफ सीजन की बुआई अंतिम दौर पर पहुंचने के बावजूद फसलों का कुल रकबा पिछले साल की अपेक्षा थोड़ा कम है। हाल ही में कृषि मंत्रालय और किसान कल्याण विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक दो सितंबर तक देश में खरीफ फसलों का कुल रकबा 1.6 फीसद घट कर 1045.14 लाख हेक्टेयर रह गया है, जबकि पिछले साल इस समय तक देश में 1061.92 लाख हेक्टेयर में फसलों की बुआई हुई थी।

उल्लेखनीय है कि धान उत्पादक राज्यों में बारिश कम होने के कारण चालू खरीफ सत्र में अब तक धान फसल का रकबा 5.62 प्रतिशत घट कर 383.99 लाख हेक्टेयर रह गया है। पिछले साल धान की बुआई 406.89 लाख हेक्टेयर में की गई थी। धान मुख्य खरीफ फसल है और इसकी बुआई जून से दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत के साथ शुरू होती है और अक्तूबर से कटाई की जाती है।

लेकिन धान की फसल के विपरीत कपास की बुआई में जोरदार बढ़ोतरी हुई है। अगस्त के अंत तक देश भर में कपास का रकबा 6.81 फीसद बढ़ कर 125.69 लाख हेक्टेयर पहुंच गया, जो पिछले साल समान अविध में 117.68 लाख हेक्टेयर था। धान के अलावा चालू खरीफ सत्र में अगस्त के अंत तक 129.55 लाख हेक्टेयर के साथ दलहन की बुआई में मामूली गिरावट आई है।

गौरतलब है कि 2022 में असमान मानसून और मानसून की बेरुखी ने आगामी रबी सीजन की फसलों के लिए भी गंभीर चुनौती पैदा कर दी है। मिट्टी में नमी की कमी देश के पूर्वी राज्यों में रबी की खेती और जलवायु परिदृश्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। ऐसे में मूडीज इनवेस्टर सर्विस (मूडीज) ने देश में बढ़ती ब्याज दरों और असमान मानसून के कारण भारत के आर्थिक विकास के अनुमान को घटा दिया है। इससे पहले मूडीज ने मई 2022 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 8.8 फीसद वृद्धि का अनुमान लगाया था, जिसे अब घटा कर 7.7 फीसद कर दिया है।

निश्चित रूप से इस बार देश की कृषि के सामने जो गंभीर चुनौतियां पैदा हो गई हैं, उनसे निपटने के लिए शीघ्र रणनीति बनाना जरूरी है। सरकार जलवायु परिवर्तन से कृषि की चुनौतियों से निपटने के लिए आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रही है। 7 सितंबर को रबी अभियान- 2022 पर राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन में केंद्रीय कृषिमंत्री ने देश में जलवायु परिवर्तन की वर्तमान और भावी परिस्थितियों का विश्लेषण कर आगे की कार्ययोजना बनाने और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर जोर दिया। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से सबसिडी दी जा रही है।

कई प्रदेशों में ऐसे स्थान हैं, जहां कभी कीटनाशक और यूरिया का इस्तेमाल ही नहीं किया गया है। वहां सिर्फ बारिश आधारित खेती होती है। ऐसे ब्लाक, स्थान या जिलों को चिह्नित किया जा रहा है, जिसका लाभ यह होगा कि आर्गेनिक फसल सर्टिफिकेट के लिए भूमि की तीन साल तक परीक्षण नहीं करना पड़ेगा और आर्गेनिक खेती के रकबे को बढ़ाया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि यह जलवायु परिवर्तन का दौर है। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों पर विचार करके केंद्र और राज्य कैसे आगे बढ़ सकते हैं, इसका विश्लेषण कर खुद को तैयार करने की जरूरत है।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 8 सितंबर को सहकारिता मंत्रियों के राष्ट्रीय सम्मेलन में केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री ने कहा कि मल्टी स्टेट कोआपरेटिव से जहां प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित किया जाएगा, वहीं कृषि क्षेत्र में प्राथमिक कृषि ऋण सहकारी समितियों (पेक्स) को मजबूत बनाकर छोटे किसानों की ऋण संबंधी चुनौतियों के समाधान से किसानों की आय में वृद्धि की जा सकेगी।

निश्चित रूप से असमान मानसून ने कृषि क्षेत्र के तेजी से बढ़ते रिकार्ड ग्राफ के सामने चुनौती खड़ी कर दी है। यद्यपि इस समय भारत में 8.33 करोड़ टन खाद्यान्न (गेहूं और चावल) का अतिरिक्त भंडार है। लेकिन नई कृषि चुनौतियों के बीच जहां एक ओर गेहूं उत्पादन के अधिक प्रयास करने होंगे, वहीं दूसरी ओर धान उत्पादन के लिए भी रणनीतिक कदम जरूरी होंगे। देश की कृषि के सामने जो गंभीर चुनौतियां निर्मित हो गई हैं, उनसे निपटने के लिए सरकार द्वारा शीघ्रतापूर्वक रणनीतिक तैयारी जरूरी है।

निश्चित रूप से इस समय सरकार ने छोटी जोत की चुनौती से निपटने के लिए सामूहिक खेती के विचार को लागू किए जाने के साथ-साथ कम लागत वाली खेती को प्रोत्साहित करते हुए प्राकृतिक और जैविक खेती को आगे बढ़ाने का जो अभियान चलाया है, उसे और कारगर तरीके से आगे बढ़ाना होगा। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि देश में दलहन और तिलहन की उन्नत खेती में 'लैब टू लैंड स्कीम' के प्रयोग और वैज्ञानिकों की सहभागिता के साथ नीतिगत समर्थन की नीति से तिलहन मिशन को तेजी से आगे बढ़ाना होगा।

इस समय देश भर में उन्नत प्रजाति के बीजों की आपूर्ति के लिए केंद्र सरकार दलहनों और तिलहनों के किसानों को मुफ्त मिनी किट बांट रही है। इसके लिए जलवायु आधारित चिह्नित गांवों को दलहन गांव घोषित किया गया है, जहां अनुसंधान केंद्रों के विज्ञानियों की देखरेख में दलहनी और तिलहनी फसलों की खेती की जा रही है। ऐसे प्रयासों को कारगर बनाना होगा।

इस समय डिजिटल एग्रीकल्चर पर केंद्र सरकार ने जिस तरह काम शुरू किया है, उसे रफ्तार देना होगा। इससे किसानों तक सरकार की और किसानों की सरकार तक पहुंच बनेगी और उन्हें योजनाओं का लाभ मिलेगा। चूंकि वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष के रूप में मनाया जाएगा, भारत पूरी दुनिया में इस कार्यक्रम का नेतृत्व करने वाला है। ऐसे में सरकार की कोशिश हो कि मोटे अनाज का उत्पादन और निर्यात बढ़े तथा किसानों की आमदनी बढ़े।

निश्चित रूप से देश में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच भारत को कृषि में लगातार आगे बढ़ने के लिए अभी खाद्यान्न के अलावा अन्य सभी खाद्य उत्पादनों में आत्मनिर्भरता के लिए मीलों चलना पड़ेगा। खाद्य तेलों का उत्पादन बÞढ़ाने के लिए सरकार ने ग्यारह हजार करोड़ रुपए की लागत से जिस महत्त्वाकांक्षी तिलहन मिशन की शुरुआत की है, उसे पूर्णतया सफल बनाने की जरूरत है। तिलहन फसलों का रकबा बढ़ाने के साथ उत्पादकता बढ़ाने हेतु विशेष जोर उन्नत प्रजाति के हाइब्रिड बीजों पर दिया जाना होगा। कृषि के डिजिटलीकरण को प्राथमिकता से बढ़ाना होगा।

उम्मीद है कि सरकार वर्ष 2022 में असमान मानसून की चुनौतियों के मद्देनजर विभिन्न कृषि विकास कार्यक्रमों और खाद्यान्न, तिलहन और दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए लागू की गई नई योजनाओं के साथ-साथ डिजिटल कृषि मिशन के कारगर क्रियान्वयन की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी। सरकार कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में आधुनिकीकरण और कृषि क्षेत्र में फसलों के विविधीकरण की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी।

इस समय असमान मानसून और मानसून की बेरुखी के कारण देश के कृषि मानचित्र पर जो चुनौतियां उभर रही हैं, उसमें बहुत कुछ सुधार हो सकेगा और भारतीय कृषि अपनी रफ्तार को बनाए रख सकेगी। भारत दुनिया भर में खाद्यान्न की आपूर्ति करने वाले प्रमुख देश के रूप में भी अपनी सार्थक और मानवीय भूमिका निभाते हुए दिखाई देगा।


Next Story