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महेश परिमल: सूरज लगातार तप रहा है। भीषण गर्मी का दौर शुरू हो गया है। पारा लगातार ऊंचाई पर पहुंच रहा है। लोग बेहाल हैं। इस दौरान कुछ राज्यों में बिजली संकट भी शुरू हो गया है। सड़कों से पेड़ गायब होने लगे हैं। पेड़ काटने वाले भी छाया तलाश रहे हैं। इस भीषण गर्मी में एक राहतभरी खबर आई है।
आप ही सोचें, आपके पास फोन आए, जिसमें सामने वाला पूछे कि क्या आप अपने घर या दुकान के आसपास पौधे लगवाना चाहेंगे? आज जिस तरह के हालात बन रहे हैं, उसमें आप इनकार तो नहीं करेंगे न? हरियाणा वन विभाग के अधिकारियों ने नगरीय क्षेत्रों में हरीतिमा संवर्धन के लिए जो योजना शुरू की है, यह इसी का हिस्सा है। इसी योजना के तहत वन कर्मचारी लोगों से फोन पर पौधे लगाने की बात करते हैं। कितनी अच्छी पहल है यह!
आज जिस तरह पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है, उसके पीछे कई कारण बताए जाते हैं, पर आज भी पेड़ों की कटाई बदस्तूर जारी है। जितनी तेजी से पेड़ कट रहे हैं, उतनी तेजी से पेड़ लगाए नहीं जा रहे हैं। यही असंतुलन है, जो आज बढ़ रही बेतहाशा गर्मी के रूप में हमारे सामने है। इस गर्मी का मुकाबला न तो हमारे कूलर कर पाएंगे और न ही एसी। सब धरे के धरे रह जाएंगे, अगर हम न चेते तो।
केवल पेड़ हमें इस गर्मी से निजात दिला सकते हैं। अब तक जो पेड़ शेष हैं, वे हमारे पूर्वजों के पराक्रम के कारण हैं। हमने भावी पीढ़ी के लिए ऐसा कुछ भी शेष नहीं रखा है, जिसे वे उपलब्धि मानें। हमारे पूर्वजों ने हमें दिए हरे-भरे जंगल और हमने भावी पीढ़ी को दिए कंक्रीट के जंगल। एक जंगल हमें सुकून देता है, दूसरा जंगल हमें देता है गर्मी।
सूरज की प्रखरता हमें झुलसा रही है। वनस्पतियां उसके तेवर के आगे लाचार हो गई हैं। पेड़ों की सामूहिक शक्ति समाप्त हो गई है। पुराणों में तरु महिमा का उल्लेख मिलता है। आखिर क्या होती है यह तरु महिमा। कभी जानने की कोशिश की आपने? शायद भूल गए आप। बचपन में आंवला अष्टमी पर मां के साथ जंगल जाते थे। वहां आंवले के किसी पेड़ के नीचे हम सब जमा होते।
मां पेड़ की पूजा करती, पर हमें इंतजार होता मां के बनाए व्यंजनों का। हम छक कर पकवानों का स्वाद लेते। एक छोटी-सी पिकनिक ही हो जाती थी। तब हमें पता नहीं था कि आखिर यह क्या है? मां पेड़ों की पूजा क्यों करती है? आज पता चल रहा है कि सचमुच हम तो पेड़ों की पूजा करना ही नहीं जानते। या फिर भूल गए हैं तरु महिमा।
संस्कृत में तरु का आशय है आपदाओं से रक्षा करने वाला। भला किसे अच्छा नहीं लगता घना और हरियाला छायादार पेड़। चिलचिलाती धूप में पसीने से तरबतर, थके हारे किसी राहगीर को इस तरह का पेड़ दिखाई दे जाए, तो निश्चित ही वह उस पेड़ की ठंडी छांव में थोड़ी देर के लिए आराम करना चाहेगा। पेड़ का हरियालापन ही लोगों को आकर्षित करता है। अब अपने चारों ओर नजर घुमाएं, क्या है कोई छायादार हरियाला पेड़। जब आपदाओं से रक्षा करने वाले को ही हमने काट कर बैठक की शोभा बना ली है, तो वह हमारी रक्षा कैसे कर पाएगा? सोचा कभी आपने?
पेड़ का मानव से बरसों पुराना नाता है। मानव भी इसके महत्त्व को समझता है। पर आज वह अपने स्वार्थों में इतना लिपट गया है कि अपनी रक्षा करने वाले को ही काटने लगा है। जिस पेड़ की जड़ें जितनी गहरी होंगी, वह उतना ही विश्वसनीय होता है। इसी तरह जिस व्यक्ति के सद्विचारों की जड़ें जितनी गहरी होंगी, वह उतना ही परोपकारी होगा। इंसान ने पेड़ से यही सीखा।
लेकिन आज परिस्थितियां बदल गई हैं। अब व्यक्ति के विचारों की जड़ें इतनी गहरी नहीं हैं कि वह कुछ अच्छा सोचे। इसके साथ ही वह अपने इस तरह के विचारों को आरोपित करते हुए गहरी जड़ों वाले पेड़ों का अस्तित्व ही समाप्त करने में लग गया है। मानव की यह प्रवृत्ति उसे कहां ले जाएगी, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह सच है कि प्रकृति को अब गुस्सा आने लगा है। यही कारण है कि अब हमें समय-समय पर प्रकृति के रौद्र रूप के दर्शन कुछ अधिक ही होने लगे हैं।
हमें अब पेड़ों से दोस्ती कर ही लेनी चाहिए। वन विभाग के कर्मचारी हमारी दुकान या घर के आसपास पौधे तो लगा देंगे, पर उसकी देखभाल की जिम्मेदारी हमारी ही होगी। आखिर हम गमलों में तुलसी, मीठा नीम आदि औषधीय पौधे लगाते ही हैं। उसकी देखभाल भी करते हैं। हम पेड़ों की देखभाल करेंगे, तो हमारी पीढ़ी भी इसे ध्यान से देखेगी, वह भी समझेगी पेड़ों की महत्ता। अनजाने में हम उन्हें एक हरियाला संस्कार दे जाएंगे।