सम्पादकीय

मान-अपमान से बड़ी त्रासदी

Triveni
31 May 2021 3:11 AM GMT
मान-अपमान से बड़ी त्रासदी
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पश्चिम बंगाल में हालिया विधानसभा चुनावों के दौरान दोनों प्रबल प्रतिद्वंद्वी पक्षों के बीच दिखी कड़वाहट चुनावों के बाद धीरे-धीरे खत्म होने के बजाय अप्रत्याशित ढंग से खिंचती चली जा रही है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | पश्चिम बंगाल में हालिया विधानसभा चुनावों के दौरान दोनों प्रबल प्रतिद्वंद्वी पक्षों के बीच दिखी कड़वाहट चुनावों के बाद धीरे-धीरे खत्म होने के बजाय अप्रत्याशित ढंग से खिंचती चली जा रही है। चुनाव नतीजों के ठीक बाद यह हिंसा की घटनाओं के रूप में सामने आई। फिर राज्यपाल और मुख्यमंत्री के रिश्तों में तनाव भरने लगी। केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच राज्य के मुख्य सचिव के डेप्युटेशन को लेकर बना ताजा टकराव भी इसी कड़वाहट के लगातार विस्तार का नतीजा है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस हालिया टकराव के केंद्र में वह बैठक है, जो यास तूफान से राज्य में हुई तबाही के मद्देनजर पीड़ितों को राहत पहुंचाने के उपायों पर विचार करने के लिए बुलाई गई थी। प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई उस बैठक में बीजेपी विधायक

शुभेंदु अधिकारी को आमंत्रित करने के पक्ष और विपक्ष में दी जा रही दलीलें अपनी जगह हैं, पर इस तथ्य से कोई कैसे इनकार कर सकता है कि वह नंदीग्राम से बीजेपी के टिकट पर जीत कर आए हैं। बीजेपी उन्हें नेता प्रतिपक्ष का पद दे रही है तो विधानसभा के इस पूरे कार्यकाल के दौरान वह सदन के अंदर और बाहर इस भूमिका में बने रहेंगे।
ममता बनर्जी की लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार उनकी मौजूदगी पर कहां-कहां आपत्ति करेगी। बेहतर होता, तृणमूल कांग्रेस की सरकार किसी खास व्यक्ति की मौजूदगी को अपने मान-अपमान से जोड़ने के बजाय राज्य के तूफान पीड़ितों के हितों को तरजीह देते हुए पूरी गंभीरता से उस बैठक में शामिल होती। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और केंद्र सरकार के सामने राज्य के तूफान पीड़ितों का पक्ष ढंग से रखने का एक मौका हाथ से चला गया। लेकिन इसके बाद केंद्र सरकार ने इस मामले पर जिस तरह से रिएक्ट किया, उसे भी परिपक्वतापूर्ण नहीं कहा जा सकता। किसी राज्य के मुख्य सचिव को केंद्र में डेप्युटेशन पर बुलाने के इस तरीके के कानूनी पहलू अपनी जगह हैं, प्रशासनिक और राजनीतिक लिहाज से भी यह कोई अच्छा कदम नहीं कहा जाएगा। मुख्य सचिव किसी राज्य के पूरे प्रशासनिक तंत्र का अगुआ होता है। उसके साथ अपमानजनक व्यवहार न केवल आईएएस अधिकारियों के बल्कि पूरे प्रशासन तंत्र के मनोबल पर असर डाल सकता है। फिर कहना होगा कि यह सब ऐसे समय हो रहा है, जब राज्य का प्रशासन कोरोना और तूफान की दोहरी चुनौती से जूझ रहा है। इन्हीं चुनौतियों के मद्देनजर मुख्य सचिव को तीन महीने का सेवा विस्तार इन्हीं सरकारों ने चंद दिनों पहले दिया है। साफ है कि केंद्र और राज्य की निर्वाचित सरकारें इस संकट काल में जिस तरह का रुख दिखा रही हैं, उससे कहीं बेहतर आचरण की उनसे उम्मीद की जाती है। और निश्चित रूप से वे आम देशवासियों की इस उम्मीद पर खरा उतरने की काबिलियत रखती हैं।


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