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संत रविदास (1450-1520) महान आध्यात्मिक गुरु, समाज सुधारक और भक्ति आंदोलन के एक महत्वपूर्ण कवि थे
सुरेंद्र कुमार
संत रविदास (1450-1520) महान आध्यात्मिक गुरु, समाज सुधारक और भक्ति आंदोलन के एक महत्वपूर्ण कवि थे, जिन्होंने जाति और लैंगिक भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और दलितों के उत्थान के लिए काम किया था। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में रविदासी समुदाय के वह आराध्य हैं। उनकी जयंती पर विभिन्न राज्यों में निम्न जातियों के लोग भजन, कीर्तन, तथा लंगर जैसे कार्यक्रम करते हैं। पर आम तौर पर इसे न तो केंद्र और राज्य सरकारें उतना तवज्जो देती हैं और न ही मीडिया में प्रचार मिलता है। मगर इस साल ऐसा नहीं था।
करुणा हमें दूसरे व्यक्ति के नजदीक ले जाती है। इसमें कुछ भी दिखावटी नहीं हो सकता। दलाई लामा कहते हैं कि करुणा के बिना दुनिया का अस्तित्व नहीं हो सकता। मगर इस साल संत रविदास की जयंती पर 16 फरवरी को उनके प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए होड़ मच गई। पांच सौ बरस पहले धरती पर आए संत के प्रति सम्मान जताने में राज्य सरकारें एक दूसरे से पीछे नहीं थीं। उनकी जयंती से जुड़े विज्ञापन आकर्षक शीर्षकों के साथ प्रकाशित हुए।
हरियाणा सरकार ने अपने विज्ञापन में उन्हें संत शिरोमणि करार दिया; दिल्ली के मुख्यमंत्री ने उन्हें 'संत परंपरा का महान योगी और परम ज्ञानी बताया! पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी ने वाराणसी के सीरगोवर्धन में जाकर संत रविदास के प्रति सम्मान जताया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका ने वहां लंगर का आयोजन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न केवल दिल्ली के करोल बाग स्थित श्री गुरु रविदास विश्राम धाम गए, बल्कि उन्होंने भजन-कीर्तन में भी हिस्सा लिया। वह भक्तों के साथ झाल बजाते देखे गए।
अपनी चुनावी रैलियों में उन्होंने दावा किया, 'हमने अपनी सरकार की हर योजना और हर कदम में गुरु रविदास जी की भावना को आत्मसात किया है।' सीरगोवर्धन में रविदास के जन्मस्थान पर एक बड़े परिसर के निर्माण में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है। गृहमंत्री अमित शाह सहित अन्य नेताओं ने भी दलित संत का स्मरण किया। यही नहीं, राजनेताओं ने सोशल मीडिया पर संत रविदास से जुड़े आयोजनों की तस्वीरें साझा कीं, जिनमें उन्होंने शिरकत की थी।
संत रविदास के प्रति सम्मान जताकर संघ परिवार संभवतः दलितों के एक बड़े हिस्से को अंबेडकरवादियों से अलग करना चाहता है और धर्मांतरण को हतोत्साहित करना चाहता है। इन सबके बावजूद किसी ने भी एक साधारण-सा प्रश्न पूछने की जहमत नहीं उठाई कि आज भी वे सामाजिक बुराइयां क्यों मौजूद हैं, जिनके लिए संत रविदास लड़ते रहे? आजादी के 75 साल बाद भी भारत के हजारों गांवों में छुआछूत आज भी क्यों मौजूद है?
यही नहीं, हरियाणा जैसे राज्य में ऑनर किलिंग जारी है, जहां यदि निचली जाति का कोई लड़का उच्च जाति की लड़की से प्रेम करता है, तो उसे बर्बर सजा दी जाती है। उत्तर प्रदेश के हाथरस सामूहिक बलात्कार के मामले में अंतिम संस्कार से पहले मां को अपनी बेटी का चेहरा तक नहीं देखने दिया गया था! फिल्म आर्टिकल 15 ने पुलिस, प्रशासन और राजनीतिक आकाओं और बाहुबलियों की मिलीभगत से होने वाले दुष्कर्म के मामलों का चित्रण किया था।
संत रविदास की जयंती पांच राज्यों के चुनाव के दौरान नहीं पड़ती, तो क्या हम उनके प्रति उमड़ा ऐसा सैलाब देख पाते? क्या इससे यह नहीं लगता कि विभिन्न दल दलित समुदाय का वोट पाने के लिए कितने बेताब हैं? वही नेता जो चुनाव के दौरान उन्हें इतने उत्साह से लुभाने की कोशिश करते हैं, वे शायद ही कभी उनसे मिलते हैं। उनकी अधिकांश बुनियादी समस्याएं अनसुलझी रह जाती हैं। क्या किसी राजनीतिक दल का घोषणापत्र अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए समयबद्ध कार्य योजना का वादा करता है?
गरीबों के आंसू पोंछने के गांधी के सपने को पूरा करना और संत रविदास के छुआछूत को खत्म करने और दलित समुदायों को सम्मान व सुरक्षा देने का सपना गंभीर काम है; इसे सामयिक प्रतीकात्मकता से हासिल नहीं किया जा सकता।
Rani Sahu
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