सम्पादकीय

ईश्वर से मनुष्य का संबंध जोड़ते महान संत

Rani Sahu
31 Oct 2021 6:59 PM GMT
ईश्वर से मनुष्य का संबंध जोड़ते महान संत
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ईश्वर एक है, यह बात हम सदियों से सुनते आए हैं। प्रत्येक संत-महात्मा ने यही बात बताई है

ईश्वर एक है, यह बात हम सदियों से सुनते आए हैं। प्रत्येक संत-महात्मा ने यही बात बताई है। फिर भी समाज में धर्म के नाम पर होने वाले युद्ध असमंजस की स्थिति पैदा करते हैं कि या तो प्रत्येक मनुष्य तक संतों की वाणी पहुंच नहीं पाई है या वे इसका सही अर्थ नहीं समझ पाए हैं। अफगानिस्तान के हालात और देश के भीतर जम्मू-कश्मीर के हालात यही दर्द बयां करते हैं कि मनुष्य के पास जब प्रेम करने के लिए ही पर्याप्त समय नहीं है तो वह नफरत के लिए समय कैसे निकाल लेता है। सदियों पहले संत कबीर ने भी कहा था कि हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे से पता नहीं क्यों लड़ते रहते हैं। जबकि दोनों ही अनेक आडंबरों को अपनाए हुए हैं। अनपढ़ होते हुए भी कबीर ने धर्मांधता के गढ़ को ध्वस्त करने का प्रयास किया। समता, अहिंसा और प्रेम को उन्होंने लोगों तक फैलाने का भरसक प्रयास किया। भक्ति काल को रोशन करने में संत कबीर की तरह रैदास, सुंदर दास, शिरड़ी के साईं बाबा, धन्ना, गुरु नानक देव जैसे अनेक संतों का नाम आता है। इन सबने मनुष्य को सब जीवों से प्रेम करने की शिक्षा दी है। जहां तुलसीदास और महर्षि वाल्मीकि जी ने राम भक्ति से सबको सराबोर किया, वहीं सूरदास और मीराबाई ने कृष्ण भक्ति के रंग में संसार को रंग दिया। संत तुलसीदास और महर्षि वाल्मीकि जी ने श्री राम भक्ति को जन-जन तक पहुंचाया और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जीवन चरित्र प्रस्तुत करते हुए उनकी शिक्षाओं को जीवन में धारण करने की प्रेरणा दी। इसी तर्ज पर श्री कृष्ण भक्ति में सूरदास और मीराबाई प्रसिद्ध हैं।

कुछ विद्वानों का मानना है कि सूरदास जन्मांध होते हुए भी श्री कृष्ण का इतना सजीव चित्रण अपने काव्य में करते थे कि हर कोई श्री कृष्ण के प्रेम में मगन हो जाता था। कृष्ण दीवानी मीरा ने तो प्रेम का इतिहास रचते हुए श्री कृष्ण की याद में भरी सभा में जहर पी लिया था। फिर भी उन्हें कुछ नहीं हुआ था। समय बदलता रहा, लोगों की आवश्यकताएं भी बदलती रहीं, परंतु संतों ने ईश्वर के प्रति लोगों में आस्था बनाए रखी। राजकुमार सिद्धार्थ ने अपना राजपाट और सुख वैभव त्याग कर ईश्वर प्राप्ति के लिए संन्यासी जीवन धारण करना बेहतर समझा, जिसने उन्हें महात्मा बुद्ध बना दिया। इस महात्मा ने न केवल बौद्ध धर्म की स्थापना की, अपितु दुनिया को प्रत्येक जीव के प्रति दया भाव और प्रेम रखने की शिक्षा भी दी। उनकी शिक्षाओं पर जिसने भी अमल किया उसका जीवन सुखमय हो गया। सम्राट अशोक ने तो उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए न केवल बौद्ध धर्म ही अपनाया, बल्कि जीवन भर कभी युद्ध न करने का भी प्रण लिया। इसके पश्चात उन्होंने सदा ही जनहित के कार्य किए और अपनी प्रजा का जीवन भी सुखमय बना दिया। कालांतर में बौद्ध धर्म का विस्तार चीन में भी होता गया। इस प्रकार भारत के संतों ने न केवल भारत, अपितु संपूर्ण विश्व को अपनी शिक्षाओं से धन्य कर दिया। भारत के संतों के नाम लिखे जाएं तो यह एक बहुत लंबी सूची बन जाएगी क्योंकि हमारे देश में महापुरुषों, वीरों, वीरांगनाओं और संतों की कमी नहीं है। इसी कड़ी में जब वेदों के ज्ञान और प्रचार की बात आती है तो स्वामी दयानंद सरस्वती जी का नाम स्मरण होता है। उन्होंने वेदों को ईश्वर द्वारा प्रदान ज्ञान न केवल माना, बल्कि सिद्ध भी किया। उन्होंने वेदों के ज्ञान द्वारा मानव-जाति का ईश्वर के साथ संबंध स्थापित करने में सफलता हासिल की। वह एक सफल विचारक, धार्मिक महापुरुष और देशभक्त व्यक्ति थे। वेदांत के ज्ञान और सनातन धर्म की बात आती है तो स्वामी विवेकानंद जी की ओर ध्यान स्वतः ही चला जाता है।
भारतीय वेदांत दर्शन को अमरीका तथा अन्य देशों में पहुंचाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। उन्होंने संपूर्ण विश्व को सनातन धर्म व विश्व बंधुत्व की भावना से ओतप्रोत किया। विश्व धर्म महासभा में जब उन्होंने भारत की ओर से शिकागो में प्रतिनिधित्व किया तो उनके ओजपूर्ण भाषण पर सर्वाधिक तालियां बजने का संस्मरण आज भी याद किया जाता है। वे अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से काफी प्रभावित थे। साथ ही उन्होंने युवाओं को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए सदा प्रोत्साहित किया। स्त्री सम्मान और समता के वह पक्षधर थे। उनके जन्मदिन को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने भी सभी धर्मों की एकता पर विशेष बल दिया था। ईश्वर प्राप्ति के लिए उन्होंने कठिन तपस्या और भक्ति की थी। सभी धर्मों को एकता के सूत्र में पिरोने वाले संतों में सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी का नाम भी आदर के साथ लिया जाता है। उनके अनुयायियों में दो शिष्य बाला और मर्दाना अलग-अलग धर्मों के होते हुए भी साथ-साथ रहते थे। मानवता को सबसे बड़ा धर्म मानने वाले गुरु नानक देव जी ने बचपन में अपने पिताजी से व्यापार के लिए प्राप्त धन को साधुओं को भोजन कराने में यह कहकर खर्च कर दिया था कि यह मैंने सच्चा सौदा किया है। कहते हैं कि यह संतों की ही महिमा है, जो यह धरती आज भी टिकी हुई है वरना इस धरती पर पाप और अत्याचार इतना बढ़ गया है कि कभी भी प्रलय हो सकती है। संतों ने यह संदेश दिया है कि परमात्मा केवल व्यक्ति का सच्चा हृदय देखता है। वह जाति-पाति नहीं देखता। वह तो सबका परमपिता है। इसलिए हमें भी बुराई, द्वेष, घृणा आदि त्याग कर सबके प्रति प्रेमभाव रखना चाहिए।
वर्तमान समय के संत भी मनुष्य को यही शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। फिर चाहे दक्षिण भारत के प्रसिद्ध सद्गुरु जी हों या उत्तर भारत के आर्ट ऑफ लिविंग संस्था के संस्थापक श्री श्री रविशंकर जी। जब हम सतगुरु के वचनों को सुनते हैं तो पाते हैं कि कैसे यह संत विश्व को एकता के सूत्र में बांधने का कार्य करते हैं। आर्ट ऑफ लिविंग संस्था के संस्थापक श्री श्री रविशंकर जी का सिद्धांत भी यही है कि संसार एक परिवार है। यह संस्था अनेक देशों में लोगों को जीने की कला सिखा रही है। यहां हिंसा रहित, वसुधैव कुटुंबकम की तर्ज पर मानवतावादी परिवेश तैयार किया जाता है। साथ ही लोगों को तनावमुक्त जीवन जीने की विधियां बताई जाती हैं। तनाव मुक्त जीवन जीने की बात आती है तो प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की बात स्वतः याद आ जाती है। यहां शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात व्यक्ति स्वयं में बहुत परिवर्तन अनुभव करते हैं। आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करने वाली ऐसी संस्थाओं का मानना है कि संसार का परिवर्तन स्वयं के परिवर्तन से प्रारंभ होता है। हम बदलेंगे, जग बदलेगा। हम सुधरेंगे, जग सुधरेगा। एक नवंबर को विश्व संत दिवस पर सभी को शपथ लेनी चाहिए कि वे पूरे संसार को एक परिवार मानेंगे तथा सबके कल्याण के लिए कार्य करंेगे।
यश गोरा
लेखक कांगड़ा से हैं


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