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- ईश्वर से मनुष्य का...
ईश्वर एक है, यह बात हम सदियों से सुनते आए हैं। प्रत्येक संत-महात्मा ने यही बात बताई है। फिर भी समाज में धर्म के नाम पर होने वाले युद्ध असमंजस की स्थिति पैदा करते हैं कि या तो प्रत्येक मनुष्य तक संतों की वाणी पहुंच नहीं पाई है या वे इसका सही अर्थ नहीं समझ पाए हैं। अफगानिस्तान के हालात और देश के भीतर जम्मू-कश्मीर के हालात यही दर्द बयां करते हैं कि मनुष्य के पास जब प्रेम करने के लिए ही पर्याप्त समय नहीं है तो वह नफरत के लिए समय कैसे निकाल लेता है। सदियों पहले संत कबीर ने भी कहा था कि हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे से पता नहीं क्यों लड़ते रहते हैं। जबकि दोनों ही अनेक आडंबरों को अपनाए हुए हैं। अनपढ़ होते हुए भी कबीर ने धर्मांधता के गढ़ को ध्वस्त करने का प्रयास किया। समता, अहिंसा और प्रेम को उन्होंने लोगों तक फैलाने का भरसक प्रयास किया। भक्ति काल को रोशन करने में संत कबीर की तरह रैदास, सुंदर दास, शिरड़ी के साईं बाबा, धन्ना, गुरु नानक देव जैसे अनेक संतों का नाम आता है। इन सबने मनुष्य को सब जीवों से प्रेम करने की शिक्षा दी है। जहां तुलसीदास और महर्षि वाल्मीकि जी ने राम भक्ति से सबको सराबोर किया, वहीं सूरदास और मीराबाई ने कृष्ण भक्ति के रंग में संसार को रंग दिया। संत तुलसीदास और महर्षि वाल्मीकि जी ने श्री राम भक्ति को जन-जन तक पहुंचाया और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जीवन चरित्र प्रस्तुत करते हुए उनकी शिक्षाओं को जीवन में धारण करने की प्रेरणा दी। इसी तर्ज पर श्री कृष्ण भक्ति में सूरदास और मीराबाई प्रसिद्ध हैं।