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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आखिरकार काफी जद्दोजहद के बाद सरकार ने कर्जधारकों के लिए बड़ी राहत का एलान कर दिया। पूर्णबंदी के दौरान जिन लोगों ने अपने कर्ज की किस्तें नहीं चुकाई थीं, अब उन पर लगने वाले ब्याज का भुगतान सरकार अपनी ओर से करेगी। लोगों को राहत देने के मकसद से रिजर्व बैंक ने घोषणा की थी कि मार्च से अगस्त तक अगर लोग अपने किसी भी प्रकार के कर्ज की किस्त का भुगतान नहीं कर पाएंगे, तो उन पर बैंक दबाव नहीं बनाएंगे और न ही उस रकम पर किसी प्रकार का ब्याज वसूलेंगे।
मगर बैंकों ने इस नियम का पालन करने के बजाय न सिर्फ बकाया किस्तों को मूलधन में जोड़ दिया, बल्कि उस पर चक्रवृद्धि ब्याज भी लगाना शुरू कर दिया। इस पर स्वाभाविक ही ग्राहकों ने आपत्ति जताई और रिजर्व बैंक के फैसले के समांतर बैंकों के ब्याज वसूलने के कदम को अदालत में चुनौती दी। तब सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्व बैंक से कहा कि वह बैंकों से अपने फैसले का पालन करने को कहे। हालांकि इस पर रिजर्व बैंक ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश की, पर उपभोक्ता हितों के मद्देनजर उसे इस विषय पर गंभीरता से विचार करना पड़ा। आखिरकार सरकार ने चक्रवृद्धि ब्याज के दुश्चक्र से राहत देने की घोषणा करके इस दिवाली पर उपभोक्ताओं को बड़ी राहत दी है।
दरअसल, पूर्णबंदी के दौरान सारी औद्योगिक, वाणिज्यिक गतिविधियां रुक गई थीं। कंपनियों के लिए अपने कर्मचारियों को वेतन देना, रोजमर्रा के खर्चे वहन करना कठिन हो गया था। जिन उद्यमों ने बैंकों से कर्ज लेकर कारोबार शुरू किया था या उसे आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे थे, उनके सामने कर्ज की मासिक किस्तें चुकाने की मुश्किल पैदा हो गई थी। जिन लोगों की नौकरी चली गई या उनके वेतन में कटौती कर दी थी, उनके लिए अपने आवास, वाहन, क्रेडिट कार्ड आदि के कर्जों की किश्तें चुकाना कठिन हो गया था।
ऐसे में रिजर्व बैंक ने उन्हें राहत देने के लिए घोषणा की थी कि लोग अपने कर्ज की मासिक किश्तें बाद में भी चुका सकते हैं। उन पर ब्याज नहीं लगेगा। मगर बैंकों पर किश्तों की वसूली न करने और उन पर ब्याज न लेने की वजह से भारी बोझ पड़ रहा था। इसलिए उन्होंने किस्त वसूली के मामले में तो राहत दे दी, पर ब्याज न लेने से इनकार कर दिया था। अब बैंकों को इस वजह से जो भी नुकसान होगा, उसे सरकार वहन करेगी।
हालांकि पूर्णबंदी की वजह से आर्थिक संकट झेल रहे उद्यमों को राहत देने के मकसद से सरकार ने पैकेज की घोषणा की थी। कर्मचारियों के भविष्यनिधि आदि में उद्यमियों के अंशदान को वहन करने का फैसला किया था, मगर फिर भी सूक्ष्म, लघु और मंझोले उद्यमों के सामने संकट अब भी बना हुआ है। पूर्णबंदी के दौरान बहुत सारे उद्योग बंद हुए तो फिर खुल नहीं पाए, क्योंकि उनके कारोबार का चक्र टूट गया था। इस तरह उन पर कर्ज का बोझ बना ही रहा। अब बंदी खत्म हो गई है, पर कारोबारी गतिविधियां सामान्य रफ्तार से नहीं चल पा रही हैं।
ऐसे में अगर बैंक केवल कुछ महीनों के लिए सिर्फ मासिक किस्तों की वसूली में राहत देते और उस पर चक्रवृद्धि ब्याज वसूलते रहते, तो उनका आर्थिक संकट कम नहीं हो पाता। इस लिहाज से सरकार ने दो करोड़ रुपए तक के सभी तरह के कर्जों की मासिक किस्तों पर लगने वाले ब्याज की भरपाई खुद करने का एलान कर निश्चय ही बड़ी राहत दी है।