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ये सारा प्रकरण देश में चलाए जा रहे बड़े राजनीतिक कथानक का सिर्फ एक एपिसोड भर है
By NI Editorial
ये सारा प्रकरण देश में चलाए जा रहे बड़े राजनीतिक कथानक का सिर्फ एक एपिसोड भर है। ऐसे एपिसोड अलग-अलग रूपों में लगभग रोजमर्रा के रूप में चलते रहते हैँ। ये धारावाहिक कथा इतना शक्तिशाली है कि उसने बड़े हिस्से को रोजी-रोटी के प्रश्नों को भूल कर इस कथा में खोने के लिए प्रेरित कर रखा है।
दिल्ली के बुराड़ी में ऐसा आयोजन हुआ, जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों के खिलाफ नफरत फैलाने वाले उत्तेजक भाषण दिए गए। सबको मालूम है कि यह ऐसा पहला आयोजन नहीं है। इस बार इसमें एक मामला यह जुड़ा कि आयोजन में जुटी भीड़ ने पत्रकारों पर हमला किया। पहचान होने के बाद मुस्लिम पत्रकारों को खास निशाना बनाया गया। दूसरी अलग बात यह रही कि दिल्ली पुलिस ने इस आयोजन की सोशल मीडिया के लिए लगातार खबर देने वाले एक मुस्लिम पत्रकार और एक न्यूज पोर्टल पर ही मुकदमा ठोक दिया है। एफआईआर आयोजन में उत्तेजक भाषण देने वालों पर ही दर्ज हुई है। लेकिन खबर देने वालों को लपेटना आखिर पुलिस की किस नीति को दर्शाता है? सबसे उत्तेजक भाषण यति नरसिंहानंद सरस्वती ने दिया। यह वही नरसिंहानंद हैं, जिन्हें पिछले साल दिसंबर में हरिद्वार में आयोजित तीन दिवसीय "धर्म संसद" में भड़काऊ बयान देने के मामले में गिरफ्तार किया गया था। फिलहाल वे जमानत पर हैं। रविवार को दिल्ली की हिंदू महापंचायत में उन्होंने कहा- "अगर कोई मुसलमान भारत का प्रधानमंत्री बनता है तो 20 सालों में 50 फीसदी हिंदुओं का धर्मांतरण हो जाएगा।" फिर उन्होंने हिंदुओं का आह्वान किया कि वे अपने अस्तित्व को बचाने के लिए हथियार उठा लें। यह गौरतलब है कि इस महापंचायत के लिए दिल्ली पुलिस ने इजाजत नहीं दी थी।
इसके बावजूद ऐसा आयोजन करना अपने-आप में अपराध है। पुलिस के मुताबिक उसने भड़काऊ बयान के मामले में एफआईआर दर्ज की गई है। बहरहाल, ये सारा प्रकरण चाहे जितना आपत्तिजनक हो, इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि यह देश में चलाए जा रहे बड़े राजनीतिक कथानक का सिर्फ एक एपिसोड है। ऐसे एपिसोड अलग-अलग रूपों में लगभग रोजमर्रा के रूप में चलते रहते हैँ। ये धारावाहिक कथा इतना शक्तिशाली है कि उसने हिंदु समुदाय के एक बड़े हिस्से को रोजी-रोटी के मुद्दों और रोजमर्रा की अपनी समस्याओं को भूल कर इस कथा में खोने के लिए प्रेरित कर रखा है। इससे देश के सत्ताधारियों को तमाम तरह की लोकतांत्रिक जवाबदेहियों की अनदेखी करने की सुविधा मिली हुई है। इसलिए पुलिस के व्यवहार पर आक्रोश जताना भले जायज हो, लेकिन उससे कुछ हासिल नहीं होगा। असल सवाल है कि क्या इस ग्रैंड नैरेटिव का जवाब विपक्ष या उन लोगों के पास है, जिन्हें इस कथानक से परेशानी होती है?
Gulabi Jagat
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